कब तक होती रहेंगी हिमाचल में सड़क दुर्घटनाएं?

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विवेक अविनाशी।।
हिमाचल प्रदेश में  सड़क दुर्घटनाओं  में मरने वालों की तादाद प्रति वर्ष लगातार बढती ही जा रही है। पहाड़ों की सर्पीली सडकों पर यातायात का एक मात्र साधन हैं बसें और यदि थोड़ी सी भी चूक हो जाए तो दुर्घटनाओं की सम्भावनाएं ज्यादा बन जाती हैं। उपलब्ध आंकड़ों पर यदि गौर करें तो प्रदेश में प्रतिदिन 9 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें चार लोग प्रतिदिन हताहत होते हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार इन दुर्घटनाओं को रोक नहीं पा रही क्योंकि अधिकांश दुर्घटनाएं मानवीय चूक के कारण होती हैं।वर्ष 1982 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने बस दुर्घटनाओं के कारणों की जांच के लिए कौल सिंह की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में अधिकांश बस दुर्घटनाएं चालकों की लापरवाही से होती हैं। यह अजीब संयोग है इस समिति की रिपोर्ट ठन्डे बस्ते में डाल दी गयी थी। यह भी चौंका देने वाला तथ्य है कि हिमाचल में 97.84 प्रतिशत बस दुर्घटनाएं चालकों के शराब पीने के बाद ही मानवीय चूक के कारण होती हैं।

मानवीय भूल की वजह से होते हैं अधिकतर हादसे

इन बस दुर्घटनाओं का कारण प्रदेश की बदहाल सडकें भी हैं।  हिमाचल प्रदेश में 30,000 किलोमीटर से अधिक मोटर योग्य सडकें हैं, लेकिन सचाई यह है कि केवल 60 प्रतिशत सडकें ही पक्की और तारकोल युक्त हैं। इन कच्ची सडकों पर थोड़ी सी भी बारिश हो जाए तो यातायात भू-स्खलन के कारण रुक जाता है या फिर जोखिम भरा हो जाता है। प्रदेश सरकार ने हिमाचल की सडकों पर सारे राज्य में ऐसे 314 स्थान चिन्हित किए हैं जहां दुर्घटनाओं  की सम्भावनाएं बराबर बनी रहती हैं।

चंडीगढ़-मनाली सड़क पर तो ऐसे बहुत से स्थल है जहां हर साल कोई न कोई सड़क दुर्घटना अवश्य होती है। कई बार तो ऐसा लगता है जैसे इन स्थलों को किसी देवता ने शाप दे रखा हो। लोगों ने इन स्थलों पर प्रदेश में देवताओं के  मन्दिर भी बनाए हैं और उधर से गुजरते हुए ट्रक अथवा बस-चालक इन देव-मन्दिरों में शीश नवा कर आगे बढ़ते हैं। यह भ्रम है या असलियत, यह तो विचारणीय विषय है लेकिन ऐसे मन्दिर हिमाचल की बहुत सी सड़कों के किनारे देखे जा सकते हैं।

हादसे वाली जगहों पर इस तरह के मंदिर देखने को मिल जाते हैं Courtesy: tarungoel.in

हिमाचल सरकार ने प्रदेश की सड़कों की नियमित जांच के लिए कोई भी कारगर तरीका अभी तक लागू नही किया है। सड़कों के रख-रखाव, नियमित मरम्मत आदि के लिए जो भी एजेंसीज काम करती हों, उन्हें एकसाथ मिलकर काम करने के लिए एक अलग से प्राधिकरण की आवश्यकता है, जो पहाड़ की सड़कों को जलवायु व अन्य मानकों के आधार पर नियमित रूप से संवार सके। हिमाचल सरकार यदि समय रहते सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम नही उठाएगी तो इसका विपरीत असर  हिमाचल के  पर्यटन उद्योग पर भी पड़ सकता है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)