तरुण गोयल।। सुन्दरनगर में कुछ दिन पहले टूरिज्म डिपार्टमेंट ने एक नया होटल खोल दिया – दी सुकेत।
बिल्कुल उसके सामने एक पौराणिक काल से चला आ रहा हमसफ़र होटल है और उसके साथ पूर्व CPS सोहन लाल ठाकुर का होटल पोलो रीजेंसी। उसके थोड़ा आगे बसीलियो ग्रैंड और उसके साथ आशियाना होटल। बस अड्डे के आस पास भी 2-3 बड़े होटल हैं
सरकार किसी बियाबान जंगल मे होटल चलाये जहां कोई इन्वेस्टर न आता हो, या किसी नई जगह को प्रमोट करने के लिए सब्सिडी पर होमस्टे चलाए या कैंपिंग साइट चलाये, वहां होटल चलाने का मतलब समझ आता है , भरे शहर में बीच बाज़ार एक नया हाथी पालने का क्या मतलब??
9 अक्टूबर को अपना वहां लंच करने गए, रेस्टॉरेंट के नाम पर वहां एक छोटा सा कमरा है जिसमें 4 कुर्सी-टेबल हैं, और उसके बिल्कुल सामने मूत्रालय।
मतलब आप बेखुदी में कभी किसी की पार्टी में ज्यादा मुफ्त का माल खा लो और एकदम से पेट खराब हो जाए तो बिना कष्ट उठाये अपनी कुर्सी से लुढ़कते हुए ही आप सीधे मूत्रालय में पहुंच जाओगे और निपट कर राउंड टू के भोजन के लिए फिर से तैयार
मूत्रालय में तौलिया नहीं था, और खाने के टेबल पर टिशू पेपर नहीं था, चिकन में नमक नहीं था
हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में इस तरह के होटल चलाने का क्या मतलब?
अरे भाई लोग, तुम हमारी सड़क पक्की करवा कर दो, खाना हम चंडीगढ़ जाकर ही खा लिया करेंगे।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से हैं और ट्रैवल ब्लॉगर हैं। यह लेख उन्होंने फेसबुक पर भी पोस्ट किया है।)
ये लेखक के निजी विचार हैं