आईएस ठाकुर।। कठुआ और उन्नाव गैंगरेप मामलों को लेकर देश उबल रहा है, हर कोई इन घटनाओं के विचलित है, समाज और सरकारों के रवैये पर सवाल खड़े हो रहे हैं, मगर जिस समय देश के सबसे बड़े नेता को जनता के साथ खड़े होना चाहिए, उस समय न जाने वह मौन व्रत लिए कहां गायब है।
प्रधानमंत्री मौनेंद्र मोदी…. क्या हुआ? आपको बुरा लग रहा कि प्रधानमंत्री को नरेद्र मोदी को मौनेंद्र मोदी कहा जा रहा है? बुला लग रहा है तो लगता रहे, मगर उनके लिए यही व्यंग्यात्मक नाम सही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए जब प्रचार चल रहा था, तब नरेंद्र मोदी जगह-जगह भाषण देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मजाक उड़ाते हुए उन्हें ‘मौनमोहन सिंह’ कहते थे।
मोदी उन्हें मौनमोहन इसलिए कहते क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वक्त-बेवक्त गप्पें हांकना, जुमले बनाना, कहानियां सुनाना पसंद नहीं करते थे। जब कभी वह भाषण देते थे, टु द पॉइंट बात करते थे। वे जलेबियां नहीं बनाते थे। यही नहीं, देख की हर बड़ी घटना पर उनकी प्रतिक्रिया आती थी और देश का सुप्रीम लीडर होने के नाते एक आश्वासन भी देते थे कि इस घटना में सरकार क्या करने जा रही है।
मगर जो नरेंद्र मोदी मनमोहन को मौनमोहन करते थे, आज खुद असल में मौनेंद्र यानी मौन+इंद्र यानी चुप्पी के राजा बन गए हैं। देश में एक से एक ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें बीजेपी या इससे संबंधित विचारधाराओं से जुड़े लोग घटिया से घटिया अपराधों में शामिल रहे। उस समय पूरा देश देख रहा था प्रधानमंत्री की तरफ, इस उम्मीद में कि वह कुछ बोलेंगे। मगर वह नहीं बोले।
वैसे तो वह हर छोटे-बड़े मौके पर बोलते हैं। मन की बात पर बोलते हैं, ट्विटर पर ट्वीट्स की झड़ी लगा देते हैं। मगर सांप्रदायिक हिंसा, विचारकों की हत्या, बीजेपी नेताओं की बदजुबानी, कार्यकर्ताओं के हुड़दंग, बीजेपी सरकारों की अक्षमताओं और लोगों द्वारा बलात्कार जैसी घटनाओं को जस्टिफाई किए जाने की कोशिशों पर कुछ नहीं बोलते।
चुनाव से पहले तो बड़ी-बड़ी बातें की जाती थीं कि मैं चौकीदार बनूंगा, ऐसा होगा वैसा होगा। जो-जो दावे मौनेंद्र जी ने किए, सब उसका उल्टा ही हुआ। काले धन को लेकर नोटबंदी की मगर वह सरकार के ही आंकड़ों के मुताबिक बेअसर रही। विदेश से काला धन नहीं आया, तेल के दाम आसमान छू रहे हैं, पाकिस्तान आए दिन भारतीय जवानों को निशाना बनाता रहता है, मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया की क्या स्थिति है, परमात्मा ही जाने।
इससे बढ़िया तो मौनमोहन सिंह ही थे। कम से कम उनके कार्यकाल में देश तरक्की की राह पर तो था। बातें करना आसान है, मौन रहकर काम करना मुश्किल। आज कठुआ रेप केस में आठ साल की बच्ची का रेप होता है और स्थानीय लोग उसे जस्टिफाई करते हैं कि मुस्लिम बच्ची थी और उसके समुदाय को सबक सिखाने के लिए ऐसा किया गया। यही नहीं, तिरंगे के साथ आरोपियों के समर्थन में रैलियां निकाली जाती हैं। समाज का यह पतन हो गया है।
प्रधानमंत्री सिर्फ चुना गया प्रतिनिधि नहीं होता, वह नेता होता है। वह लोगों का नेतृत्व करता है। वह परिवार के मुखिया की तरह होता है। उसके पद का अपना प्रभाव होता है। अगर प्रधानमंत्री कहे कि शर्मनाक घटना है और इसे धर्म के नाम पर जस्टिफाई नहीं करना चाहिए, तो इसका अपना प्रभाव होगा। जो लोग मोदी को अपना सबकुछ मानते हैं, उनमें से कुछ पर तो असर होगा।
मगर नहीं, प्रधानमंत्री जी किसी को सही राह पर लाने में फायदा नहीं देखते शायद। वह तो चाहते हैं कि लोग ऐसे ही धर्म के नाम पर ध्रुवीकृत रहें। अगर उन्होंने ढंग की टिप्पणी कर दी और आसिफा के बलात्कार को जस्टिफाई करने वालों की आलोचना कर दी, तो उन्हें शायद डर है कि मुझे ही लोग कहीं प्रो-मुस्लिम न समझ लें। और इसका सीधा नुकसान 2019 में होगा।
यूपी के उन्नाव में एक महिला का गैंगरेप होता है और आरोप विधायक पर लगता है। पुलिस मामला दर्ज नहीं करती, पीड़िता को कोर्ट जाना पड़ता है और वहां से एफआईआर के आदेश जारी होते हैं, इस बीच विधायक के गुंडे कथित तौर पर पीड़िता के पिता की पिटाई करते हैं। उल्टा पीड़िता के पिता को जेल में बंद कर दिया जाता है और उनकी मौत हो जाती है।
न तो हिंदुत्व के झंडाबरदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार इस पर कुछ करती है और न ही मौनेंद्र मोदी इसपर कुछ बोलते हैं। बेटी बचाओ नाम का नारा बाकी नारों की तरह सिर्फ दिखावे के लिए दिया था क्या?
वैसे 2019 में दोबारा आना क्यों चाहते हैं मौनेंद्र मोदी जी? इन पांच सालों में ऐसा क्या किया आपने जो आपको दोबारा लाया जाए? कोई एक उपलब्धि बता दें अपने कार्यकाल की, जिससे पूरा देश सहमत हो कि भई हां, यह काम तो हुआ है। यह कहेंगे कि भ्रष्टाचार नहीं हुआ?
भ्रष्टाचार का मतलब आर्थिक गड़बड़ी करना ही नहीं होता। भ्रष्ट आचरण को भ्रष्टाचार कहते हैं और हकीकत किसी से छिपी नहीं है कि पूरे देश में केंद्र से राज्यों तक कितनी ही योजनाओं में यह खेल चल रहा है, कितने ही नेताओं का आचरण भ्रष्ट है। जिस टूजी के नाम पर भ्रष्टाचार का हौव्वा खड़ा करके यूपीए सरकार पर आरोप लगाए थे, वही मामला कोर्ट में फुस्स साबित हुआ और पता चला कि यह घोटाला ही नहीं हुआ था, सिर्फ अनुमानित नुकसान था।
बातें बड़ी-बड़ी, काम रत्ती भर नहीं। अगर यही सब होना था तो मौनमोहन सिंह का कार्यकाल ही भला था। कम से कम देश में शांति, प्रेम और भाईचारा तो था।
(लेखक इन हिमाचल के लिए लंबे समय से लिख रहे हैं, उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)