ट्रैफिक रोककर जबरन पानी पिलाने से कौन सा पुण्य मिलेगा?

0

क्या है पाप, पुण्य क्या है? (मुक्तकंठ कश्यप ‘प्रेत’ की फेसबुक टाइमलाइन से साभार)

प्रेतावस्था को प्राप्त हुए अरसा बीत गया। अनूप जलोटा को सुनता रहा, ‘चदरिया झीनी रे झीनी’ फिर कुमार गंधर्व की लत लग गई। फिर जयपुर वाले अफ़ज़ल हुसैन साहब के साहबज़ादों अर्थात हुसैन बंधुओं को सुना। गाइये गणपति जगवंदन…. पता नहीं कितना पुण्य मिला, कितना नहीं।

धर्मभीरु कभी नहीं रहा। जो मन को ठीक लगा, किया। कई बार नुसरत साहब का तुम एक गोरखधंधा हो को सुनते हुए ट्रांस में जाकर भगवान से बहस भी की। बहस इसलिये हो सकी क्योंकि भगवान है। जो हो ही नहीं, उससे बहस कौन करे।

ज़र्रे ज़र्रे में मुझे नूर नज़र आया है…..
अरे! मैने शाम ढलने के बाद पत्ता तक नहीं तोड़ा। पत्तों में भी जान होती है।
प्रेत को इस बात पर गर्व है कि मेरा धर्म जीवन शैली है।
लेकिन भाई एक बात बताओ यार। निर्जला एकादशी हो या कुछ और, यह क्या ट्रेफिक को रोक कर बैठ जाते हो?
कटे हुए मख्खियों वाले तरबूज के टुकड़े जबरदस्ती खिलाते हो। पुण्य के नाम पर इतना करते हो, यह भी सोचा कि तँग सड़क पर आपकी छबील यातायात में अराजकता फैलाती है? रामायण का पाठ करोगे तो लाउड स्पीकर इतनी जोर से चिंघाड़ेगा कि राम भी नहीं सुनना चाहेंगे। अब ये खिलाने पिलाने का काम, यातायात को रोकने का काम क्यों? स्वर्ग में सीट चाहिए?

प्रेत की सलाह है, ये काम करो, सीट पक्की:

1, जितने शादी या धार्मिक त्योहार हैं, उनमें डीजे बजाना बन्द करो। लाउड स्पीकर बन्द करो। कई बार माइक ऐसा लगाते हो जो बीच में अज़ान देने लगता है।

2, निर्जला एकादशी पर इतने निर्लज्ज न बनो कि पानी को गंवाओ। जानते हो, जबरदस्ती पानी पिलाने के वक्त, या तरबूज और खरबूजे या खट्टे आम का टुकड़ा खिलाते वक्त जो अहंकार तुम्हारे चेहरे पर होता है, उससे बहुत बदसूरत लगते हो तुम।

3, नाबालिग को गाड़ी चलाने को न दो। यह भी बचेगा और दूसरे भी। कहीं गाड़ी ठोक देगा तो कई ठुकेंगे।

4, जितनी गाय हैं, इनको पानी पिलाओ, धूप में गश खा जाते हैं ये हमारे स्वार्थ के सताए हुए प्राणी। इंसान कर लेंगे इंतज़ाम पानी का। ये हमारे ही ठुकराए प्राणी बेघरबार हैं, इन्हें पिलाओ क्यों नहीं पिलाते पानी? पता है न बाल्टियों में पशुओं को पानी पिलाने में अपना पानी निकल जायेगा!!! वह बड़ा पुण्य है भाई, अगर पुण्य ह्यी करना है तो। यह अहंकार प्रदर्शन बन्द करो यार।

5, भांग और घोटा से बचो, न तुम शिव हो न हो सकते हो। शिव और शव में बहुत अंतर है यार।

(लेखक साहित्य और समाज से जुड़े विषयों पर तीखी टिप्पणियों के लिए सोशल मीडिया पर चर्चित हैं)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)