आदर्श राठौर।। जब कभी मैं जान गंवाने वाले जवानों, उनके माता-पिता, पत्नी और बच्चों वगैरह के बारे में सोचता हूं, आत्मा हिल जाती है। शहादत, कुर्बानी, गर्व… ये सब बेकार के जुमले लगने लगते हैं।
वे एक ही सपना लिए अपने परिवार से दूर मुश्किल हालात में ड्यूटी करते हैं। यह सपना होता है- परिवार के सपनों को पूरा करना। अम्मा-बापू की दवा-दारू में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, पत्नी कभी उदास नहीं होनी चाहिए, बच्चों की पढ़ाई में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए, फलां रिश्तेदार की शादी में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, वगैरह-वगैरह।
इनसे अलग एक और ख्वाहिश- एक छोटा सा घर बनाना है, जहां रिटायरमेंट के बाद आराम से रहा जाएगा। फुरसत में जवान सोचता होगा कि रिटायर होने पर बूढ़े मां-बाप की सेवा करूंगा, पत्नी और बच्चों को जो वक़्त नहीं दे पाया, उसकी भरपाई करूंगा। जिस जगह बचपन बीता था, वहीं पर बुढ़ापा गुज़ारूंगा। उन्हीं खेतों में घूमूंगा, उन्हीं पेड़ों पर चढूंगा, उन्हीं रास्तों से गुजरूंगा।
मगर अचानक एक गोली, एक धमाका और सब ख़त्म। सब सपने भी गायब। आखिर में तिरंगे में लिपटकर वह फिर उसी आंगन में आता है, उन्हीं गलियों से गुजरता है; मगर कुछ देख नहीं सकता, महसूस नहीं कर सकता। ज़िन्दगी ख़त्म, तो सब ख़त्म। किसी चीज़ का कोई मतलब नहीं होता। बंदूक की फायरिंग के साथ सलामी और ‘अमर रहे’ जैसे नारों का भी नहीं। कभी शहीद जवान की जगह खुद को या अपने किसी करीबी को रखकर सोचिए, मेरी बात समझ आ जाएगी।
मेरी गुज़ारिश है कि गर्व करना बंद कीजिए, दर्द को महसूस करना शुरू कीजिए। ओ नेताओ, अब तक जो होता रहा, वो तो हो गया। आगे हम क्या और कैसे सही कर सकते हैं, यह सोचिए। इतिहास की नहीं, भविष्य की चिंता कीजिए। निपटाइए ये झगड़े, सुलझाइए ये विवाद। यथास्थिति बनाए रखकर आप जवानों की ज़िन्दगी से खेल रहे हैं। अपनी नाकामी और अक्षमता की बलि चढ़ा रहे हैं आप उन्हें।
(हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के जोगिंदर नगर से ताल्लुक रखने वाले पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता Aadarsh Rathoreकी फेसबुक टाइमलाइन से साभार। )