जयराम ठाकुर से इतनी नफरत क्यों करते हैं मुकेश अग्निहोत्री?

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आई.एस. ठाकुर।। सुजानपुर में आज कांग्रेस की रैली थी। वक्ता कई थे लेकिन सुर्खियां बटोरीं नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने। वैसे तो वह एक साल से घिसी पिटी बातें कर रहे हैं, लेकिन आज उन्होंने वह बात दोहराई जो कुछ दिन पहले सुजानपुर के विधायक राजिंदर राणा ने कही थी- जयराम मुख्यमंत्री बन सकता है तो प्रदेश में कोई भी मुख्यमंत्री बन सकता है।

यह बयान ठीक पांच साल पहले मुकेश अग्निहोत्री के राजनीतिक गुरु और प्रदेश के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के उस बयान की याद दिला रहा है, जिसमें उन्होंने बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती को लेकर कहा था कि सत्ती अध्यक्ष है तो क्या हुआ, गद्दी सभा का भी अध्यक्ष होता है

वीरभद्र का आशय था कि सत्ती की हैसियत तो गद्दी सभा के अध्यक्ष से भी नीचे है, उस पर मैं क्या बोलूं। इस पर खूब हंगामा हुआ था। लेकिन वीरभद्र सिंह ने कभी गलती नहीं मानी। ऐसा ही कुछ मुकेश अग्निहोत्री कह रहे हैं कि जयराम बन सकता है तो कोई भी व्यक्ति बन सकता है। ध्यान यह भी देने लायक है कि सकते हैं नहीं कहा जा रहा, वो बोल रहे हैं- सकता है। अफसोस कि मुकेश अग्निहोत्री के कहने का आशय नहीं है कि एक आम आदमी के सीएम बनने के बाद अब सीएम पद की कुर्सी किसी पर सो कॉल्ड शाही लोगों का अधिकार नहीं रहा। उनके शब्द जयराम ठाकुर को साफ तौर पर इस पद के लिए कमतर बताने की कोशिश लगते हैं।

लेकिन सवाल उठता है कि जयराम ठाकुर से नफरत क्यों? जयराम ठाकुर से इतनी खुन्नस क्यों? जयराम ठाकुर के प्रति ऐसी भाषा क्यों? जयराम ठाकुर पर निजी हमले क्यों? हर मंच से सिर्फ जयराम ठाकुर पर निशाना क्यों? क्या इसलिए कि जयराम अपर बेल्ट से है? उस बेल्ट से, जिसे सो कॉल्ड आधुनिक कहलाने वाले कुछ लोग पिछड़ा मानते हैं और खुद को वहां के लोगों से ज्यादा सभ्य?

जब जयराम ठाकुर पर राजिंदर राणा ने यह बयान दिया था तो मेरी अपने एक मित्र से चर्चा हुई थी जो नीरमंड से हैं। उन्होंने कहा कि ‘ऐसा लगता है कि जब एक आम परिवार का पहाड़ी आदमी मुख्यमंत्री बन गया, एक पिछड़े क्षेत्र में पैदा हुआ आदमी आगे बढ़कर प्रदेश का नेतृत्व करने लग गया तो उन लोगों का खून खौलना स्वाभाविक है जो खुद को ज्यादा काबिल, ज्यादा एलीट, ज्यादा योग्य मानते थे।’ मेरे मित्र का कहना था कि ‘यही जलन, यही ईर्ष्या इनके दिलो-दिमाग पर हावी हो गई है जो इनकी जुबान और इनके व्यवहार के रास्ते बाहर आ रही है।’

लेकिन सवाल यह है कि इससे नुकसान किसका हो रहा है? अगर वाकई ऐसा है तो नुकसान उन लोगों का ही होगा, जो किसी तरह की हीन भावना से ग्रस्त होकर खुद अपनी सेहत को बर्बाद किए जा रहे हैं। मगर मेरा बस इतना सा कहना है कि ऐसे बयान देने की नौबत ही क्यों आई? मुख्यमंत्री पद की गरिमा का भले विपक्षी नेताओं को ख्याल न हो, एक इंसान की गरिमा का तो ख्याल रखें। मानवीय मूल्यों का तो ख्याल रखें।

(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश के विषयों पर लिख रहे हैं। उनके kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

DISCLAIMER: ये लेखक के निजी विचार हैं।