‘बिना नहाए मैले-कुचैले बदबूदार कपड़ों में स्कूल आएं अध्यापक’

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अब अध्यापकों को बिना नहाए, फटे-पुराने, बदबूदार और मैले-कुचैले कपड़ों में स्कूल आना होगा। स्कूलों में बढ़ती छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाओं को देखते हुए यह फैसला किया गया है।

आई.एस. ठाकुर।। इस आर्टिकल का शीर्षक और ऊपर की ये पंक्तियां व्यंग्यात्मक हैं मगर वह दिन दूर नहीं जब कोई अधिकारी ऐसा ही फरमान जारी कर देगा। हो सकता है कि आने वाले दिनों में उन अध्यापक-अध्यापिकाओं को नौकरी से हटाने का फरमान जारी हो जाए जो देखने में अच्छे हों। हो सकता है कि भर्ती का भी नया नियम बना दिया जाए जिसके तहत गुड लुकिंग व्यक्ति टीचर न बन पाए क्योंकि उनके कारण स्कूल का माहौल खराब हो सकता है। ये बातें आपको अतिशयोक्ति लग रही होंगी मगर नीचे स्क्रीनशॉट में जो आप पढ़ेंगे, वह बाकायदा खबर है और कई अखबारों में प्रकाशित हुई है।

सवाल उठता है कि खबरों में जो लिखा गया है कि सज-धजकर न आएं, उसका मतलब क्या है? क्या अध्यापक स्कूलों में सेहरा बांधकर पहुंचते हैं या फिर अध्यापिकाएं ब्राइडल मेकअप लेकर आती हैं? यही नहीं, जब इस खबर को लेकर उच्च शिक्षा निदेशक की आलोचना हुई तो एक ही दिन बाद अब अध्यापकों के लिए ड्रेस कोड लाने का शिगूफा छेड़ दिया गया।

कुतर्क न दिया जाए
दरअसल उच्च शिक्षा निदेशक की ओर से अध्यापकों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान दी गई नसीहत बताती है कि उन्हें शायद यह पता ही नहीं है कि यौन अपराध होते क्या हैं और उन्हें रोकने के लिए क्या किया जा सकता है। वह शायद कुछ नया करने के लिए अपनी पुरातन सोच के हिसाब से यह कदम उठाने के लिए आमादा हैं।

स्कूली अध्यापकों का ड्रेस कोड तय करना है तो कर दीजिए। कई सालों से कई लोग यह शिगूफा समय-समय पर छोड़ते रहे हैं। वैसे भी सरकार कुछ भी कर सकती है और सरकारी कर्मचारी उसे मानने के लिए बाध्य होते हैं। मगर इस ड्रेस कोड लागू करने के लिए ये कुतर्क न दिए जाएं कि यौन अपराधों को रोकने के लिए ऐसा किया जा रहा है क्योंकि दोनों बातों में कोई संबंध ही नहीं है।

अध्यापकों की ड्रेस से यौन शोषण का क्या संबंध?
मामला है कुछ अध्यापकों द्वारा बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं का। तो इसका अध्यापकों के पहनावे से क्या संबंध? क्या शिक्षा निदेशक को यह लगता है कि अध्यापकों के सज-धजकर आने से बच्चे उनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं और फिर यौन आचरण के लिए आमंत्रित करते हैं या अपने साथ यौन शोषण होने पर कुछ कहते नहीं हैं? या फिर वह यह कहना चाहते हैं कि वेल ड्रेस्ड अप टीचरों का इरादा ठीक नहीं होता? उनकी बात का तो यही मतलब निकलता नजर आता है।

बच्चों के प्रति, बच्चियों के प्रति गलत निगाह रखने और उन्हें आसान शिकार समझ निशाना बनाने वाले लोग समाज में हर जगह हैं। वे परिवारों में हैं, गांवों में हैं, स्कूलों में हैं, दफ्तरों में हैं, कहां नहीं हैं? इससे निपटने के लिए क्या हर किसी को चोला पहना दिया जाए? और अगर कोई ऐसा अपराधी है, जिसकी सोच गंदी है तो क्या सादे कपड़े पहनने से उसकी सोच बदल जाएगी? क्या वह ऐसी हरकत नहीं करेगा?

जो करना है, वह करना नहीं है और फालतू के काम करने हैं। यौन अपराधों को लेकर स्कूलों में बच्चों को अवेयर करने के लिए एक प्रयास अब तक गंभीरता से नहीं किया गया। गुड टच, बैड टच सिखाने की बात नहीं की गई। स्कूलों में अध्यापकों को एक-दूसरे पर सजग होकर नजर रखने की जिम्मेदारी निभाने और शिकायतों पर तुरंत ऐक्शन के लिए कार्य योजना बनाने की बात नहीं की गई। बस अध्यापकों पर फरमान थोप दो वह भी कुतर्क के आधार पर और जिसका कोई असर होना भी नहीं है।

बच्चों के रोल मॉडल अध्यापक
यह बात सही है कि अध्यापक बच्चों के आदर्श होते हैं वे उनसे बहुत कुछ सीखते हैं। मगर यह बात ध्यान में रखिए कि वेल ड्रेस्ड अप होना आपको आत्मविश्वास देता है। अगर कोई अध्यापक या अध्यापिका खुद को अच्छे से कैरी करके स्कूल आते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वे बच्चों को या किसी और लुभाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। बल्कि यह उन्हें आत्मविश्वास देता है। ठीक उसी तरह, सरकारी स्कूलों में आपने प्राइवेट स्कूलों की तरह टाई इसीलिए लगाई ताकि वे खुद को हीन न समझें।

रही बात फैशन की ओर आकर्षित होने की, तो जनाब! स्कूल से बाहर बच्चों को क्या फैशन को लेकर एक्सपोजर ही नहीं है? क्या वे टीवी, मोबाइल, बड़े भाई-बहनों से कटे हुए हैं जो उन्हें फैशन पता अध्यापकों से ही चलेगा? और वैसे भी फैशन का यौन अपराधों के क्या संबंध? आपकी यह हिदायत उसी सोच का एक हिस्सा है जिसके तहत यौन अपराधों के लिए दोषियों के बजाय पीड़ितों के पहनावे को जिम्मेदार बता दिया जाता है। और आप तो उससे भी उलट यह कह रहे हैं कि सज-धजकर आने वाले यौन अपराधों को अंजाम दे सकते हैं। इससे हास्यास्पद बात और क्या हो सकती है?

अगर अध्यापकों पर आपको नकेल कसनी है, खुद की उपयोगिता दिखानी है तो आप ड्रेस कोड लागू कर दीजिए, किसी ने आपको नहीं रोका। मगर कम से कम यह कुतर्क न दीजिए कि यह कदम रेप रोकने के लिए उठाया जा रहा है। इससे अध्यापकों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा मगर सभ्य समाज में आपकी खिल्ली जरूर उड़ जाएगी कि देखिए, कैसे ऊंचे पद पर बैठे अधिकारियों को बुनियादी चीजों तक की समझ नहीं है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं, उनके kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

ये लेखक के निजी विचार हैं