आई.एस. ठाकुर।। 25 जनवरी, 2012. रात के लगभग 2 बजे सोमालिया के गांव गलकायो के लोग एक अनोखी आवाज से चौंक उठे। ये हेलिकॉप्टरों की गड़गड़ाहट थी। रात के घुप अंधेरे में अमरीकी नेवी सील्स के दो दर्जन सदस्यों वाली टीम निकल चुकी थी अपने उन दो नागरिकों को सोमाली डाकुओं से छुड़ाने के लिए, जो पिछले तीन महीनों से बंधक थे।
कमांडो हेलिकॉप्टर से उतरे, दो मील की दूरी तय की, बंधकों को छुड़ाया और उन्हें सुरक्षित ले आए। नौ सोमाली समु्द्री लुटेरे मारे गए और नेवी सील्स के किसी सदस्य को आंच तक नहीं आई थी। अपने नागरिकों को मुश्किल से मुश्किल हालात से निकालने के अमरीका के कारनामों की लिस्ट बनाने लगें तो घंटों लग जाएंगे।
ऐसा शानदार काम सिर्फ अमरीका ही कर सकता है। इसलिए, क्योंकि उसके नेतृत्व के पास इच्छाशक्ति है, उसके सुरक्षा बलों के पास अनुभव और तकनीक है और सबसे बड़ी बात- पश्चिमी देशों में हर नागरिक की जान मायने रखती है।
सरकार को क्या आपकी कद्र है?
इधर भारत में तो अपने देश के अंदर ही लोग मर रहे हैं, सरकार को चिंता नहीं है। फिर विदेश में फंसकर तड़प रहे या मर रहे भारतीयों की परवाह कौन करेगा? ज्यादा से ज्यादा सरकार इतना ही कर सकती है कि देरी से जागे और मुश्किल में फंसे लोगों के मर जाने के बाद उनके शव घर ले आए। वह भी चुनाव करीब आने पर शायद यह दिखाने के लिए कि हमें अपने नागरिकों की परवाह है। मगर हकीकत यह है कि जिंदा लोगों की हमारी सरकारों को कोई कद्र नहीं।
हिमाचल के तीन बेटे छोटे से अफ्रीकी देश नाइजीरिया में बंधक बनाए हुए हैं। उनके परिजन हर दर पर अपने बच्चों को बचाने की गुहार लगा चुके हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बात कर चुके हैं। सांसदों समेत कई नेता चिट्ठियां लिख चुके हैं, अखबार खबरें छाप चुके हैं और लोग सोशल मीडिया पर असंख्य पोस्ट्स डाल चुके हैं। मगर अब तक किसी को नहीं पता कि उन बच्चों को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है। हर कोई यही दुआ कर रहा है कि बंधक बनाने वाले कहीं कुछ गलत न कर दें।
उनकी जगह खुद को रखिए
आप उन माता-पिता की बेबसी का अंदाजा लगाइए, जो अपने लाल को छोटी सी दिक्कत में फंसा देखकर भी बेचैन हो जाया करते थे, वे आज खुद को कितना मजबूर और लाचार पा रहे होंगे। न उन्हें नींद आती होगी, न खाने का मन करता होगा। हर वक्त अनहोनी की आशंका छाई रहती होगी और रह-रहकर भगवान से प्रार्थना होती होगी कि उनका लाल सलामत रहे। परिजनों की जगह आप खुद को रखकर सोचेंगे तो शायद उनका दर्द महसूस कर पाएंगे।
भारत सरकार चाहे तो चुटकियों में संकट का समाधान कर दे। ये दो देशों का मामला है। हिंदुस्तान और नाइजीरिया के बीच अच्छे रिश्ते हैं। कई साझा कार्यक्रम चलते हैं दोनों के बीच। भारत अपनी जरूरत का लगभग पच्चीस प्रतिशत तेल नाइजीरिया से लेता है जो नाइजीरिया के उत्पादन का लगभग तीस फीसदी है। भारतीय कंपनियों ने निवेश किया है वहां।
भारत में पचास हजार से ज्यादा नाइजीरियन रहते हैं और करीब चालीस हजार भारतीय नाइजीरिया में हैं। अगर इतने गहरे संबंध होने पर भी आप उस देश में फंसे अपने नागरिकों को नहीं ला पाते तो क्या फायदा? और अगर नाइजीरिया का प्रशासन या सुरक्षा बल हिमाचल के बेटों को छुड़ाने में अक्षम हैं तो भारत अपनी सुरक्षा एजेंसियों से मदद की पेशकश करे।
मगर यह सब तो तब होगा न जब कोई सरकार कुछ करना चाहेगी। यहां तो सरकार 2019 के चुनावों की तैयारियों में जुटी हुई है। 1 करोड़ 30 लाख की आबादी में तीन लोगों को कौन पूछता है?
यह अमरीका या इजरायल जैसे देशों के अंदर ही दम है कि किसी भी देश को अपने नागरिकों को बचाने के लिए मजबूर करें और अगर वह देश न माने तो दनदनाता हुआ घुसे और सुरक्षित निकाल लाए। बाकी, अपने देश के नेताओं को बेटों की नहीं, वोटों का चिंता है। कोई जीता है तो जिए, मरता है तो मरे। सरकारों के पास और भी बहुत काम हैं। अगर सरकारों ने पहले से इस तरह के मामलों पर गंभीर कार्रवाई की होती तो आज कोई भी भारतीय नागरिकों को हाथ लगाने से पहले शायद सौ बार सोचता।
(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं, उनसे kalamkasipahi @gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)