संजीव शर्मा: कर्मचारी राजनीति में ‘व्यवस्था परिवर्तन’ करता कर्मचारी नेता

देवेंद्र।। सचिवालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने कर्मचारियों की मांगें को लेकर सरकार पर हल्ला बोल कर सरकार की इस गलतफहमी को दूर कर दिया कि प्रदेश के कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर मुखर नहीं होंगे। शायद लंबे अर्से बाद कोई ऐसा कर्मचारी नेता सामने आया जिसने प्रदेश के कर्मचारियों की दबी पीड़ा को जुबान दी। पिछले कई वर्षों से कर्मचारी व शिक्षकों के कई संगठन बने हुए हैं लेकिन सभी जानते हैं ये कर्मचारी नेता जिन शिक्षकों व कर्मचारियों के बलबूते संगठनों की बागडोर संभालते हैं अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उनके हितों की बलि दे देते हैं। कोई इनसे समस्या उठाता है तो समाधान करने की बजाए उल्टा उन्हें हडका डरा कर चुप करा देते हैं। पिछले कुछेक समय में तो इतनी गंदी राजनीति हो गयी है कि यदि कोई सोशल मीडिया पर अपनी मांगों के बारे में लिख दे या आलोचना कर दे तो ये तरह-तरह के हथकंडे अपना कर उनपर दबाव बनाते हैं।

शिक्षक नेताओं का तो कहना ही क्या खुद निदेशालय, उप-निदेशक कार्यालय, या यहां-वहां डेपुटेशन लेकर खुद सत्ता का सुख भोगते हैं जबकि प्रदेश में सैंकड़ों शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। लेकिन मजाल है ये शिक्षक नेता शिक्षकों की समस्याओं के बारे में आवाज़ उठाएं। सरकार ने आते ही ट्रांसफर के नाम पर clubbing नामक जिन्न से चुन-चुन कर शिक्षकों की ट्रांसफरे की, अच्छा होता सबकी की होती परंतु चहेतों की दो-तीन किलोमीटर के भीतर म्यूचुअल ट्रांसफर की और कईयों पर राजनीतिक टैग लगाकर उन्हें उठा दिया जबकि भूल गए इस सरकार को लाने में कर्मचारियों व शिक्षकों का कितना बड़ा हाथ था फिर भी शिक्षकों को clubbing के नाम पर निशाना बनाया गया। अच्छा होता सरकार सभी के लिए बदला नीति की बजाए तबादला नीति बनाती फिर कोई भी होता उसके साथ भेदभाव नहीं होना था।

बेरोजगार पिछले दो वर्षों से सरकार से नौकरियों की आस में टकटकी लगाए बैठे हैं। लेकिन उनके पास संजीव शर्मा जैसा कोई नुमाइंदा नहीं फिर भी जिस तरह संजीव शर्मा ने सरकार की कार्यप्रणाली की परत दर परत पोल खोली उससे उन्हें भी लगा कि कोई तो है बेरोजगारी का दर्द समझने वाला।
यह आक्रोश केवल सचिवालय कर्मचारियों का नहीं यह आक्रोश वह है जो हर कर्मचारी में कहीं न कहीं एक लावे के रूप में धधक रहा था पर डर के मारे ज्वालामुखी नहीं बन पा रहा था।
सचिवालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने जिस बेबाकी और निडरता से इस आक्रोश को भांपा और कर्मचारियों के लिए न्याय की आवाज़ उठायी उसके लिए प्रदेश का हर कर्मचारी अंतर्मन से उनका अहसानमंद हो गया। उनकी कही बातें उनकी कोई निजी खुन्नस नहीं थी यह तो कर्मचारियों की आवाज़ व पीड़ा थी जिसे उनके चेहरे के रूप में एक मंच मिला। सबसे बड़ी बात शायद प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी कर्मचारी ने सरकार की फिजूलखर्ची की पोल खोलकर रख दी जबकि यह काम विपक्ष का था जिसमें विपक्ष नाकामयाब रहा, विपक्ष ने शायद एक ही मन बनाया होगा कि सत्र के दौरान वाक आऊट करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेंगे। पहले 26 जनवरी फिर 15 अप्रैल और अब 15 अगस्त को मंहगाई भत्ते की घोषणा न होने से कर्मचारी इतने आक्रोशित हो जाएंगे सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

कर्मचारियों की मुख्य मांग है मंहगाई भत्ता व पे कमीशन का एरियर्स केंद्र सरकार के कर्मचारी लगभग 50% डीए ले रहे हैं इसी तरह प्रदेश में यह 38% है मतलब 12% की तीन किश्तें पेंडिंग हैं। जब सेवा नियमों में भत्ता मिलना जरूरी है तो सरकार मात्र यह कह कर अपना पल्ला नहीं छुडा सकती कि हमारे पास वित्तीय संसाधन नहीं। प्रश्न यह भी है कि केवल कर्मचारियों व बेरोजगारों के लिए ही वित्तीय संसाधन नहीं? रही सही कसर सरकार के काबीना मंत्री राजेश धर्माणी ने कर्मचारियों के विरुद्ध बयानबाजी करके पूरी कर दी वे भूल गए कि भाजपा शासन में पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के एक ब्यान ने उन्हें सत्ता से बाहर करने का काम कर दिया था।

सरकार व्यवस्था परिवर्तन की बात करती आयी परंतु किसी ने सोचा तक नहीं था कर्मचारी राजनीति में संजीव शर्मा नामक कर्मचारी नेता इतनी बेबाकी व तथ्यों से अपनी बात रख कर्मचारी राजनीति में भी व्यवस्था परिवर्तन कर देगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। उनसे Writerdevender@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है)