- आई.एस. ठाकुर
गुरुवार को बीजेपी को लेकर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अजीब टिप्पणी की। बीजेपी द्वारा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल पर चार्जशीट तैयार करने की बात पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ये गंदगी उठाने वाले लोग हैं, यही काम करेंगे। इन्हें चाहिए कि म्यूनिसिपल कमेटी में नौकरी के लिए दरख्वास्त दें। मुख्यमंत्री ने किस हिसाब से यह बात कही, यह समझ से परे है। मगर उनकी न मिसाल न सिर्फ अप्रासंगिक, बल्कि खराब भी है।
मन में मुख्यमंत्री जी के लिए कुछ सवाल उमड़ रहे हैं। पहला तो यह कि गंदगी उठाने के काम में और सफाई कर्मचारियों के काम में ऐसा क्या बुरा है, जो आप अपने राजनीतिक विरोधियों पर भड़ास निकालने के लिए उन्हें सफाई कर्मचारी गंदगी उठाने वाला बता रहे हैं? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ये काम बुरे हैं और राजनीतिक विरोधियों का स्तर इन कामों लायक ही है? मुख्यमंत्री जी, अगर ऐसा है तो मुझे शर्म आती है आपकी सोच पर। यह दिखाता है कि आप कितना भी आधुनिक और विकसित मानसिकता वाला शख्स होने का दावा करें, आपकी सोच सामंतवादी है। ऐसी सोच, जो समाज में लोगों की पहचान उनके काम से करती है।
यह बात छिपी नहीं है कि हमारे समाज की मानसिकता कैसी है। हम आज भी जातिवाद और वर्ण व्यवस्था से जूझ रहे हैं। लगातार कोशिश की जा रही है कि लोगों के मन से यह भेदभाव खत्म हो। किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति या उसके काम के आधार पर जज न किया जाए। एक अध्यापक का काम जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण काम एक सफाई कर्मचारी का है। भूमिकाएं और काम की प्रकृति बेशक अलग हैं, मगर उनके महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। मैं सम्मान करता हूं उन सफाई कर्मचारियों और गंदगी उठाने वाले कर्मचारियों का, जिनकी वजह से जनता स्वस्थ रहती है।
मैं खुद यहां आयरलैंड में कम्यूनिटी सर्विस वॉलंटियर हूं और महीने में दो-तीन बार काम से वक्त निकालकर विभिन्न जगहों पर सैनिटेशन और अन्य सफाई काम में योगदान देता रहता हूं। इस काम में हमारे साथ डॉक्टर, प्रफेसर, ऐडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर और न जाने-जाने किन-किन पदों पर बैठे अधिकारी साथ होते हैं। उनके मन में कभी यह विचार नहीं आया कि कैसे यह काम किया जाए। उन्हें सफाई करने और कुछ खराब जगहों को साफ करने में शर्म महसूस नहीं होती और न ही यहां का समाज किसी को इस दृष्टि से देखता है। मेरे से नीचे वाले अपार्टमेंट में रहने वाले वाले मिस्टर मार्क क्लीनिंग जॉब में हैं और उनकी पत्नी लिंडा वकील। उन दोनों के बीच कभी उनका काम आड़े नहीं आया। और यहां किसी को फर्क भी नहीं पड़ता कि कौन क्या काम करता है। लोगों को यहां उनकी फैमिली बैकग्राउंड या पेशे से नहीं बल्कि उनके व्यवहार और व्यक्तित्व से आंका जाता है। क्या यह अच्छी बात नहीं है? क्या इस अच्छी बात को हमें अपनाना नहीं चाहिए?
जिस दौर में एक नेता की जिम्मेदारी बनती है कि वह सामाजिक भेदभाव को खत्म करने की कोशिश करे, उस दौर में उसका इस तरह की टिप्पणी करना दुखद है। यह बात छिपी नहीं है कि जातिगत भेदभाव अभी भी इतना है कि सफाई कर्मचारियों वाले खाली पदों के लिए कभी भी सवर्ण जातियों के लोग आवेदन नहीं करते, क्योंकि उन्हें ये काम अपने हिसाब से ठीक नहीं लगते। उन्हें लगता है कि इससे मान घट जाएगा। मगर जो लोग इस महत्वपूर्ण काम को कर रहे हैं, मुख्यमंत्री का यह बयान उनपर आघात है। भले ही यह जुबान फिसली हो या कुछ और हुआ हो, इतने जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसी बात भूलकर भी न करनी चाहिए। अगर आप समाज को जोड़ने के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो कम से कम इसे तोड़ने की बातें न करें। और अगर आपको पता नहीं चलता कि कहां क्या कहना है, क्या नहीं; कृपया रिटायरमेंट लेकर घर पर बैठें। अब तक की आपकी सेवाओं के लिए धन्यवाद, अब अपनी सेवा करवाएं। राजनीति में बने रहने की अपनी जिद के चक्कर में प्रदेश और समाज को नुकसान न पहुंचाएं।
(लेखक हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में रहते हैं। हिमाचल प्रदेश से जुड़े मसलों पर लिखते रहते हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
DISCLAIMER: यह लेखक के अपने विचार हैं, इन हिमाचल इनके लिए उत्तरदायी नहीं है।