वॉट्सऐप पर देखा कि इंडिया से एक दोस्त ने स्क्रीनशॉट भेजा है, जिसमें #ShameOnAnuragThakur हैशटैग के साथ एक ट्वीट था। जिसमें कहा गया था कि अनुराग ठाकुर दोगली बातें करने से बाज आए। झट से मैंने ट्विटर खोलकर देखा। यह टैग ट्रेंड कर रहा था और लोग अनुराग ठाकुर की आलोचना कर रहे थे। इस बात के लिए कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने और इस जरिए अन्य रास्ते खोलने की संभावनाओं पर विचार करने की जरूरत बताई थी। यह कोई खराब बात नहीं थी, मगर फिर भी अनुराग की आलोचना हो रही थी। लोग कह रहे थे कि जब तक पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता, तब तक क्रिकेट की बात करना सही नहीं है। ऐसे में अनुराग का पाकिस्तान से क्रिकेट मैच का समर्थन करना लोगों को रास नहीं आ रहा था।
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अनुराग ठाकुर |
जहां तक मेरे निजी विचार हैं, मैं मानता हूं कि खेल निस्संदेह अन्य मसलों से अलग रहना चाहिए। पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते कभी ठीक नहीं रहे और इसी प्रतिद्वंद्विता या यूं कहिए कि नफरत की भावना ने दोनों देशों के बीच क्रिकेट को रोमांचक बना दिया। कई तनापूर्ण संबंधों के दौर के बीच दोनों मुल्क क्रिकेट खेलते रहे। आज भी अगर वे क्रिकेट खेलें तो भला इसमें क्या आपत्ति। क्रिकेट अपनी जगह है और कूटनीति अपनी जगह। यह तो रही मेरी निजी राय। मगर अनुराग ठाकुर की बातें इसलिए चौंकाने वाली ज्यादा हैं, क्योंकि उन्होंने कम ही वक्त में अपनी राय बदल ली।
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अनुराग का पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने का विरोध करता ट्वीट (22 अगस्त) |
कुछ दिन पहले तक अनुराग यह कहते नजर आए थे कि जब तक दाऊद कराची में है, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट कैसे खेला जा सकता है।
आज वही शख्स क्रिकेट के जरिए अन्य संभावनाएं तलाशने की बात कर रहा है? दरअसल अनुराग ठाकुर तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें करना क्या है। उन्हें एक राजनेता बने रहना है या क्रिकेट प्रशासक। वह समझते हैं कि हिमाचल प्रदेश में क्रिकेट स्टेडियम बनवाकर उन्होंने जिस तरह से राजनीतिक माइलेज लिया, वैसा केंद्र में रहते हुए भी हो जाएगा। वह क्रिकेट प्रशासक और एक सांसद के तौर पर अलग-अलग भूमिकाएं निभाने में नाकामयाब रहे। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि मह्तवूर्ण मुद्दों पर उनकी राय इस आधार पर नहीं देखी जाएगी कि वह किस पद के आधार पर ऐसा कह रहे हैं। बल्कि यह एक शख्सियत के तौर पर उनकी राय होनी चाहिए।
अनुराग ठाकुर को लगता है कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना सही है, तो उन्हें इसका समर्थन करना चाहिए। अगर उन्हें लगता है गलत है तो इसका विरोध होना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि बीसीसीआई के दफ्तर में बैठकर पर इसका समर्थन करें और भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रेजिडेंट के तौर पर इसका विरोध करने लगें। आपकी पहचान आपके पद से नहीं, आपकी शख्सियत, आपके विचारों और आपके काम से होनी चाहिए। अगर आप सोचते हैं कि पूरे देश को आप गोलमोल बातें करके उल्लू बना लेंगे तो यह संभव नहीं है।
अनुराग को चाहिए कि वह अपनी रुचि की पहचान करें और शत प्रतिशत उसी में दें। राजनीति करनी है तो क्रिकेट के प्रपंचों से बाहर निकलें और क्रिकेट पर ध्यान देना है तो राजनीति से किनारा करें। वरना ऐसी दिक्कतें भविष्य में आती रहेंगी और आप कोई स्टैंड न ले पाने की वजह से न सिर्फ अपनी, बल्कि पार्टी की भी फजीहत करवाएंगे और अपनी संस्था (बीसीसीआई) की भी। मैं तो वैसे भी उन्हें एक औसत राजनेता मानता हूं, जिसमें कोई करिश्मा नहीं है। मगर एक अच्छा क्रिकेट प्रशासक जरूर मानता हूं, जिसने भले ही अपने पिता की वजह से एचपीसीए पर नियंत्रण किया, मगर धर्मशाला में स्टेडियम बनवाने से लेकर बीसीसीआई सचिव के पद का रास्ता तय किया।
क्रिकेट अलग चीज़ है और कूटनीति अलग, दोनों को साथ लेकर चलना आसान नहीं होगा। उम्मीद है कि वह वक्त रहते सही चुनाव करेंगे, वरना दो नावों पर सवार रहने वाले व्यक्ति का डूबना तय है।
(लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
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