शिमला।। बीते कुछ दिन शिमला जिले की राजनीति के लिए काफी हलचल भरे रहे। पहले से ही लग रहा था कि शिमला ग्रामीण सीट को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपने बेटे के लिए छोड़ सकते हैं। उस दिशा में वीरभद्र एक कदम और बढ़ गए। ब्लॉक कमिटी ने प्रस्ताव पास करते हुए शिमला ग्रामीण सीट से विक्रमादित्य के लिए संगठन से टिकट की बात की। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने भी अपने बेटे की जमकर तारीफ करते तय कर दिया कि विक्रमादित्य शिमला रूरल सीट से ही दावेदार हैं। वैसे भी विक्रमादित्य की शिमला ग्रामीण में बढ़ रही सक्रियता भी इस ओर इशारे कर रही थी। मगर अब तो सब साफ हो गया है।
इसके साथ ही जो नया सवाल प्रदेश की राजनीति में उमड़कर आया, वह कि मुख्यमंत्री अगर शिमला ग्रामीण को छोड़ देंगे तो किस सीट का रुख करेंगे। इसमें अर्की का नाम भी आता रहा है। मगर ध्यान देने की बात है कि लोकसभा के लिए मंडी से कई बार सांसद चुने जा चुके वीरभद्र सिंह ने विधानसभा चुनाव में कभी भी जिला शिमला के बाहर की किसी सीट से चुनाव नहीं लड़ा। फिर वह रामपुर हो, जुब्बल-कोटखाई या फिर रोहड़ू या फिर शिमला ग्रामीण।
रोहड़ू और रामपुर तहसील उसी रियासत का हिस्सा रहे हैं, जहां कभी वीरभद्र सिंह के पूर्वजों का राज चला करता था। मगर दोनों सीटें रिजर्व हुईं तो वीरभद्र सिंह शिमला ग्रामीण से लड़ने आए थे। रही बात जुब्बल-कोटखाई की, यहां से उनका अनुभव कड़वा रहा था।
तो फिर अगला चुनाव वह कहां से लड़ेंगे? इस सवाल के जवाब का इशारा मिला शिमला से ही। वीरभद्र सिंह ने शिमला जिले के ठियोग-कुमारसैन में शिलान्यासों और उद्घाटनों की झड़ी लगा दी। इस मौके पर जिस चीज़ ने हैरान किया, वह यह कि ठियोग कुमारसैन से विधायक और वीरभद्र सरकार में मंत्री विद्या स्टोक्स ने मुख्य कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। स्टोक्स नारकंडा में कुछ देर के लिए मुख्यमंत्री के साथ नजर आई थीं, मगर कुमारसैन में रैली और मुख्य कार्यक्रम से नदारद थीं। इस रैली में विक्रमादित्य भी थे। वीरभद्र ने अपने बेटे की यहां जमकर तारीफ की। ध्यान देने की बात यह है कि ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष और उनकी टीम भी इस रैली में नहीं थी। विद्या स्टोक्स और वीरभद्र के पुराने मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं, मगर मुश्किल समय में दोनों नेता साथ खड़े रहे हैं। ऐसे में उनका सीएम के इस दौरे में न होना हैरान करने वाला रहा।
सूत्रों की मानें तो वीरभद्र सिंह ने शिमला ग्रामीण को बेटे के लिए छोड़कर ठियोग कुमारसैन से लड़ने का विचार बहुत पहले से ही सोचकर रखा था। क्योंकि माना जा रहा था कि उम्र के इस पड़ाव पर विद्यो स्टोक्स चुनाव नहीं लड़ेंगी। मगर जैसे ही वीरभद्र की रणनीति की भनक स्टोक्स को साल भर पहले लगी थी, उन्होंने कह दिया था कि मैं चुनाव लड़ूंगी। हालांकि स्टोक्स के करीबियों का कहना है कि मैडम स्टोक्स इस सीट से अपने किसी ख़ास सिपहसालार को मौका देना चाहती हैं। और अगर वह ऐसा नहीं कर पाती हैं तो कुछ चुनावी मैदान में कूदेंगी। मगर ऐसा करना उनकी उम्र के लिहाज़ से आसान भी नज़र नहीं आता। पिछली सीट पर बहुत कम अंतर से जीत पाई थीं।
स्टोक्स का अपनी विधानसभा में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम से इस तरह दूरी बनाना कई अटकलों और सवालों को जन्म दे रहा है। इसका यह भी मतलब निकल रहा है कि बेटे के लिए शिमला ग्रामीण छोड़ने की सार्वजानिक घोषणा के बाद वीरभद्र ने यह तय कर लिया है कि व ठियोग कुमारसैन से ही लड़ेंगे और इससे मैडम स्टोक्स नाराज मानी जा रही हैं।
वीरभद्र सिंह के करीबी और तथाकथित ‘ऊपरी हिमाचल’ से ही सबंधित कांग्रेस के एक युवा नेता ने ‘इन हिमाचल’ को बताया कि वीरभद्र सिंह इस मामले में पूरी तैयारी कर चुके है। और अगर पार्टी के अंदर के अंदर के उनके विरोधियों ने उनपर दबाब बनाया कि परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलेगा, तब भी वीरभद्र सिंह ने रणनीति तैयार रखी है। इस रणनीति के तहत वह शिमला ग्रामीण और ठियोग कुमारसैन, दोनों सीटों से पर्चा भरेंगे। दोनों सीटें जीत जाने की स्थिति में ठियोग कुमारसैन सीट को विक्रमादित्य के लिए छोड़ेंगे।
उक्त नेता ने बताया कि फिलहाल तो वीरभद्र सिंह बेशक विक्रमादित्य की पैरवी शिमला ग्रामीण से कर रहे है, मगर लंबी राजनीतिक पारी के लिए वह इस सीट को बेटे के लिए सेफ नहीं मानते। इसलिए ठियोर कुमारसैन को अपने नाम करने की रणनीति के तहत वह अगले (संभवत: 2022 के) चुनाव में विक्रमादित्य को शिमला ग्रामीण से ठियोग कुमारसैन शिफ्ट करने की प्लानिंग कर चुके हैं।
हालांकि वीरभद्र सिंह के अर्की से हटने का कारण बीजेपी की वह रणनीति भी बताई जा रही है, जिसके तहत केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा को बीजेपी अर्की सीट से चुनाव उनके खिलाफ लड़वाने की फिराक में है। ऐसे में वीरभद्र सिंह इस वक़्त परिवार के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। संयोगों पर भरोसा रखने वाले मुख्यमंत्री अपने राजनीतिक जीवन के इतिहास को जारी रखते हुए शिमला जिला से बाहर कहीं भी चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। हालांकि अगर वह किन्नौर सीट से लड़ते हैं, तब भी उनकी जीत लगभग निश्चित ही है। मगर वीरभद्र सिंह की पूरी रणनीति इस समय कांग्रेस के लिए सीटों की गिनती बढ़ाने पर नहीं बल्कि बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए ऐसी राजनीतिक नींव रखने की है, जो उनके राजनीतिक करियर को लंबा बनाए।
ऊपरी शिमला में दशकों पहले से एक नारा चलता रहा है कि सत्यानंद स्टोक्स हिमाचल में सेब लेकर आए और विद्या स्टोक्स हिमाचल प्रदेश की राजनीति में वीरभद्र को लेकर आईं। अब वीरभद्र अगर ठियोग कुमारसैन से लड़ते हैं तो यह नारा ठियोग कुमारसैन के लोगों की जुबान पर फिर चढ़ सकता है। मगर हो सकता है कि इस बार वीरभद्र को लाने में मैडम स्टोक्स की मर्जी न हो।