लेख: CM का पुतला फूंकने वाली ‘भेड़ों’ को कौन हांक रहा है?

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आई.एस. ठाकुर।। नई सरकार बनने के बाद मैंने तय किया था कि इस सरकार को कम से कम छह महीने दूंगा, फिर उसके काम के आधार पर इसकी समीक्षा वाला लेख लिखूंगा। पिछले कई दिनों से जुंजैहली वाला घटनाक्रम देख रहा था, मगर खुद को रोकता रहा। कल जैसे ही खबर पढ़ी कि एसडीएम कार्यालय की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे लोगों ने मुख्यमंत्री की शवयात्रा निकाली और श्मशानघाट जाकर उसे आग भी लगाई तो हैरान रह गया।

 

मैंने तस्वीरों को गौर से देखा। समझने की कोशिश की कि भीड़ में कौन लोग शामिल थे। इस भीड़ को मैंने भेड़ों की सांकेतिक उपमा इसलिए दी है कि जैसे भेड़-बकरियां कहीं भी हांक दिए जाने पर वहीं जाने लगती हैं, जुंजैहली का मामला भी वैसे ही लग रहा है। यहां लोग खुद कम, किसी के उकसावे पर ज्यादा हुड़दंग मचा रहे हैं। पहले आप जरा इस वीडियो को देखें:

गांव के एकदम भोले-भाले लोग नजर आ रहे हैं आगे। महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। कोई विसल बजा रहा है, कोई मुस्कुराते हुए विक्ट्री साइन बना रहा है। यह आक्रोश या गुस्से भरा प्रदर्शन था या किसी धार्मिक उत्सव का जुलूस? हर आंदोलन की एक प्रकृति होती है। विषय क्या है, इस पर बाद में आते हैं। पिछले कई दिनों के प्रदर्शनों की तस्वीरों और वीडियो से निष्कर्ष में पहुंचा हूं कि ये प्रदर्शन स्वत: स्फूर्त नहीं बल्कि सुलगाया गया है। वरना आप गुस्से में होते तो ठहाके लगाते हुए शवयात्रा नहीं निकालते।

 

एसडीएम कार्यालय में होता क्या है?
इस भीड़ में चल रहे आधे से ज्यादा लोगों को यह तक पता नहीं होगा कि एसडीएम कार्यालय में होता क्या है। फिर भी वे इस आंदोलन में शरीक हो गए हैं। एसडीएम कार्यालय कोई स्कूल या कॉलेज भी नहीं होता कि किसी को वहां हर रोज़ जाना पड़े। इस बात में कोई शक नहीं कि एसडीएम कार्यालय काफी अहम दफ्तर होता है और कई तरह के प्रशासनिक कार्य करवाने होते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं कि वह आपके यहां से 11 से 15 किलोमीटर दूर खुले तो आपको दिक्कत हो जाए। और वैसे भी जब कहा है कि एसडीएम ज्यादातर समय जुंजैहली में भी बैठेगा, फिर आपको क्या दिक्कत है?

 

विरोध का मतलब समझ से परे
जुंजैहली में एसडीएम कार्यालय पिछली कांग्रेस सरकार ने खोला था। वह भी एक तरह से कांग्रेस ने कोर्ट को गुमराह किया था। इसी कारण इस साल की शुरुआत में कोर्ट ने अधिसूचना को रद्द कर दिया और फिर नई सरकार ने थुनाग में एसडीएम ऑफिस खोलने का ऐलान किया। ध्यान रहे कि जुंजैहली और थुनाग में दूरी 14 किलोमीटर है। फिर भी जुंजैहली में प्रदर्शन हो रहे हैं। सुविधा तो आप ही लोगों को मिल रही है न, फिर दिक्कत क्या है?

तुष्टीकरण खतरनाक
पिछली सरकार के दौरान मैं वीरभद्र सरकार की तुष्टीकरण की नीतियों की आलोचना कर रहा था। वीरभद्र ऐसा कर रहे थे कि स्थानीय नेता जो मांग रहे थे, आंख मूंदकर हां कर दे रहे थे। स्कूल, कॉलेज, अन्य सरकारी दफ्तर खोलने में प्रासंगिकता नहीं देखी गई, व्यावहारिकता नहीं देखी गई, किसी ने मांगा दे दिया। यह तुष्टीकरण प्रदेश को महंगा पड़ा है। जुंजैहली कांड इसी की एक देन है। ऐसी परंपरा स्थापित हो गई है कि हर कोई चाहेगा कि उसके यहां दफ्तर खुल जाएंगे। मगर क्या ऐसा किया जा सकता है?

 

कांग्रेस शर्म करे
वीरभद्र के पुतले कहीं जल जाते थे तो पुलिस अधिकारियों के तबादले हो जाया करते थे। पिछली सरकार के दौरान पुलिसकर्मियों को ऊपर से कार्रवाई का इतना खौफ होता था कि वीरभद्र के पुतलों से चिपक जाया करते थे, मगर उन्हें आग नहीं लगने देते थे। मगर मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र में शवयात्रा निकाली गई फिर खड्ड किनारे पुतला फूंका गया, कुछ नहीं हुआ। यह प्रदर्शन कांग्रेस के जिन नेता के नेतृत्व में हो रहा है, उसने कोर्ट को गुमराह किया था और क्षेत्रवाद के लिए अपनी राजनीति चमकाने के लिए ही जुंजैहली में एसडीएम ऑफिस खुलवाया था। वही आज इस प्रदर्शन को हवा दे रहा है, लोगों को उकसा रहा है, महिलाओं को आगे कर रहा है। जबकि इस समस्या के लिए वह खुद जिम्मेदार है। कांग्रेस के नेताओं की चुप्पी दिखाती है कि राजनीति का स्तर कितना गिर गया है।

 

मुख्यमंत्री जी, नरमी से काम नहीं चलेगा
मुख्यमंत्री को लगता होगा कि मेरा इलाका है, अपने लोग हैं, इन्हें क्या कहें। मगर यह ढीला रवैया अगर वोट खोने के डर से है तो समझ लीजिए कि आप अगर बिना वजह इस प्रदर्शन के आगे झुक गए तो आपको वोट तो वैसे भी नहीं मिलेंगे इनके, अपने वोट भी जाएंगे। इसलिए बिना दबाव में आए फैसला लें और जिसमें जनहित हो, वही फैसला लें।

 

प्रदर्शनकारी अपने नेता से पूछें
प्रदर्शनकारी अपने नेता से पूछें कि इस समस्या को पैदा किसने किया। जुंजैहली से एसडीएम ऑफिस कोर्ट के आदेश पर हटा है। तो जरा अपने नेता से पूछें कि कोर्ट ने ऐसा फैसला क्यों किया? दरअसल वह नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए अपनी गलती का ठीकरा मुख्यमंत्री पर फोड़ने की कोशिश कर रहा है। मुख्यमंत्री की इस मामले में भूमिका बाद में आती है, पहले उस शख्स की, जो खुद कोर्ट जाकर गोलमोल बातें कर आया था। भीड़ को देखकर लग रहा था यह वही भीड़ है जो आंख मूंदकर कहीं भी चली जाती है। ठीक भेड़ों की तरह, कहां भी हांक दिया जाए, चल पड़ती हैं।

गांव के भोले लोग हैं, उन्हें फुसलाना आसान है। ध्यान रहे सराज क्षेत्र की गिनती हिमाचल के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में होती है। अब लोगों को गुमराह करना कितना आसान है, यह अंदाज़ा लगाना आसान है। मगर मुख्यमंत्री को चाहिए कि इन लोगों से सीधा संवाद करें। भले कांग्रेस के हों या किसी और के, उन्हें समझाएं कि मामला क्या है। भोले लोग समझते भी जल्दी हैं।

(लेखक विभिन्न विषयों पर लिखते रहते हैं, उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

ये लेखक के निजी विचार हैं