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किन्नौर में बढ़ती भूस्खलन की घटनाओं पर क्या है विशेषज्ञों की राय

किन्नौर।। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में एक महीने के भीतर भूस्खलन की दो बड़ी घटनाएं देखने को मिली हैं। पहले 25 जुलाई को सांगला-छितकुल मार्ग पर बटसेरी के पास भूस्खलन से बड़ा हादसा हुआ था। अब इसके 16 दिन बाद ही जिले के निगुलसरी में बड़ा भूस्खलन हुआ है। इन दोनों घटनाओं में कई लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।

अंधाधुंध जल विद्युत दोहन हो रहा है। इस वजह से किन्नौर के पहाड़ दरकने लग गए हैं। भूकंप की दृष्टि से भी यह क्षेत्र सिस्मिक जोन पांच के तहत आता है। ऐसे में जान और माल का नुकसान लगातार बढ़ रहा है। सतलुज नदी यहां की मुख्य नदी है। यही किन्नौर की जीवन रेखा है। लेकिन यही जीवन रेखा अब अंधाधुंध विद्युत दोहन के कारण 150 किलोमीटर में दम घोटकर भूमिगत सुरंगों में बह रही है।

किनौर जिले में भूस्खलन की घटनाएं लगातर बढ़ रही हैं। इन बढ़ती घटनाओं पर विशेषज्ञों समेत अन्य लोगों ने चिंता जताई है। हिमाचल प्रदेश के प्रथम डीजीपी रहे 89 वर्षीय विद्वान-चिंतक आईबी नेगी ने इन घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। नेगी मूल रूप से किन्नौर जिले के सांगला के रहने वाले हैं, मगर शिमला के खलीणी में उनकी अपनी कोठी है।

किन्नौर में बढ़ती भूस्खलन की घटनाओं पर आईबी नेगी का कहना है कि शांत किन्नौर ने विकास के नाम पर बहुत कुछ खोया है। नेगी ने किन्नौर में हो रही इन घटनाओं को ब्लास्टिंग का नतीजा बताया है। आईबी नेगी कहते हैं कि जब ये सब कुछ नहीं था तो विकास बेशक कम था। मगर उस दौरान इस तरह के बड़े हादसे नहीं होते थे। नेगी ने यह भी कहा कि पहाड़ों के दरकने से किन्नौरवासी भयभीत हैं। और इसे ही उन्होंने किन्नौरवासियों के विस्थापन का कारण बताया है।

हिमाचल के पहले डीजीपी आईबी नेगी ने यह बात बुधवार को एक समाचार पत्र से विशेष बातचीत में कही है। नेगी ने कहा कि निगुलसरी का यह हादसा बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने किन्नौर जिले के बड़े-बड़े बिजली प्रोजेक्टों को इसका इसका कारण बताया। नेगी ने कहा कि बिजली प्रोजेक्ट यहां की पारिस्थितिकी का ठीक से अध्ययन कर नहीं लगाए गए हैं।

उन्होंने कहा कि यहां स्विट्जरलैंड की तर्ज पर तीन या पांच मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट लगाने चाहिए थे। लेकिन इसके विपरीत यहां हजारों मेगावाट के बड़े प्रोजेक्ट लगाए जा रहे हैं। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि थोड़े से पैसों के लिए बहुत बड़ा नुकसान किया गया है। लाहौल स्पीति वाले इस बारे में ठीक विरोध कर रहे हैं कि वे किन्नौर की तरह पहाड़ों को खत्म नहीं करना चाहते।

नेगी ने कहा कि पिछले कुछ सालों में किन्नौर बहुत बदला है। यहां सड़कें बननी हैं, ये तो सही है। पर अब वहां फोरलेन बनाए जाने की बातें होने लगी हैं, जिसकी जरूरत नहीं है। यहाँ जो सड़कें हैं उन्हें ठीक से मेंटेन किया जाना चाहिए। उन्होंने पुराने समय का ज़िक्र करते हुए कहा कि पचास-साठ साल पहले किन्नौर बहुत शांत क्षेत्र था। यहाँ कभी भी इस तरह के हादसे नहीं होते थे। उन्होंने कहा कि सतलुज के साथ जो सड़क बनी है, इसमें काफी लोगों की मृत्यु हुई थी और यह उस समय का बड़ा हादसा था।

उन्होंने उस समय का भी ज़िक्र किया जब वह पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उस समय तो यह सड़क थी ही नहीं। उन्हें सांगला से शिमला पहुंचने में पांच दिन लगते थे। तीन दिन में वह सांगला से रामपुर पहुंचते थे। वहां से दो दिन शिमला पहुंचने में लगते थे। उन्होंने कहा यह अच्छी बात है कि सड़के बनने से किन्नौर की दूरी घट गई है। इससे समय बच रहा है। विकास हुआ है। लोग भी पढ़-लिख गए हैं। बिजली प्रोजेक्टों से रोजगार भी मिला है। पर अब किन्नौर पहले जैसा नहीं रहा है। ब्लास्टिंग ने इसे बहुत कमजोर कर दिया है।

इस बारे पन बिजली विशेषज्ञ और बिजली बोर्ड से सेवानिवृत्त अतिरिक्त अधीक्षक अभियंता इंजीनियर आरएल जस्टा लिखते हैं कि किन्नौर के पहाड़ कच्चे, खुरदरे और संवेदनशील हैं। इस कारण ये अपनी वास्तविक अवस्था से हिल-ढुल गए हैं। पन बिजली परियोजनाओं के बारे में शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट को सरकार को ठंडे बस्ते से निकाल लेना चाहिए। उस पर सरकार को अमल करना चाहिए। इस रिपोर्ट के मुताबिक ट्री लाइन से ऊपर कोई भी पन विद्युत परियोजनाएं नहीं बननी चाहिए। प्रोजेक्टों के बीच में भी एक निश्चित दूरी होनी चाहिए।

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