वीरभद्र सिंह को जब दो हफ्तों में छोड़ना पड़ा था मुख्यमंत्री पद

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शिमला।। यह बात सभी जानते हैं कि वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि वीरभद्र सिंह का एक मुख्यमंत्री कार्यकाल चंद दिनों का ही था। यह घटनाक्रम बिल्कुल वैसा ही था जैसा कुछ समय पहले महाराष्ट्र में देखने को मिला था। जिस तरह का सियासी उलटफेर 2019 में महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के साथ देखने को मिला था। ठीक वैसा ही सियासी उलटफेर कुछ साल पहले हिमाचल प्रदेश में भी देखने को मिला था, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।

इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कब और कैसे वीरभद्र सिंह बने थे कुछ दिन के सीएम।

साल 1998 की बात है। हिमाचल प्रदेश में 65 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा, कांग्रेस के साथ हिमाचल विकास कांग्रेस भी मैदान में थी। कांग्रेस से बाहर निकाले गए पंडित सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया था। इसी हिमाचल विकास कांग्रेस ने हिमाचल की राजनीति को नया मोड़ देने के साथ-साथ कांग्रेस को भी सत्ता से दूर कर दिया।

इन चुनावों में भाजपा ने 29 और कांग्रेस ने 31 सीटों पर जीत हासिल की। 4 सीटों पर हिमाचल विकास कांग्रेस ने जीत हासिल की और 1 सीट पर निर्दलीय का दबदबा रहा। ये निर्दलीय थे रमेश धवाला। वही रमेश धवाला जो जीवन भर भाजपा के कार्यकर्ता रहे। जब ज्वालामुखी सीट से टिकट मांगा और पार्टी ने नहीं दिया तो निर्दलीय लड़ गए। 3 जनजातीय सीटों लाहौल-स्पीति, भरमौर और किन्नौर में चुनाव नहीं हुए थे। चुनाव नतीजे आने से पहले ही परागपुर से भाजपा के वीरेंद्र कुमार का निधन हो जाने से भाजपा के पास 28 विधायक ही बचे।

सरकार बनाने के लिए 33 विधायक चाहिए थे। कांग्रेस ने धवाला को अपने साथ लेकर 5 मार्च, 1998 को सरकार बनाने का दावा पेश किया। लेकिन धवाला ने पाला बदल दिया और भाजपा का दामन थाम लिया।

धवाला के पाला बदलते ही भाजपा ने हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। धवाला को मिलाकर भाजपा-हिविकां गठबंधन के 33 विधायक हो गए। वीरभद्र सिंह सदन पहुंचे, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए। नाटकीय घटनाक्रम में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया।

24 मार्च, 1998 को भाजपा की सरकार बन गई। प्रेम कुमार धूमल सीएम बने। ठाकुर गुलाब सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। 1998 में गुलाब सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के लिए ऐसा कोई नियम नहीं था कि अध्यक्ष सत्तारूढ़ पार्टी से ही होना चाहिए। इसलिए ठाकुर गुलाब सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया। अगले चुनावों में ठाकुर गुलाब सिंह ने भी भाजपा का दामन थाम लिया और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। इस तरह 1998 में वीरभद्र सिंह कुछ दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे।

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