महँगा पड़ा डॉक्टर की शिकायत करना, पत्रकार पर कार्रवाई, पुलिस पर उठे सवाल

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ऊना।। कोरोना काल में डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर सेवाएँ दे रहे हैं। देश-दुनिया में बहुत सारे डॉक्टर बाकियों का इलाज करते-करते ख़ुद कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। इन मुश्किल हालात में भी अपनी जान की परवाह किए बग़ैर फ़र्ज़ को आगे रखने के कारण ही डॉक्टरों को कोरोना वॉरियर कहा जा रहा है। मगर इन हालात में भी कुछ डॉक्टरों पर लापरवाही के आरोप लग रहे हैं।

ऐसा ही मामला सामने आया है हिमाचल में जहां पर एक डॉक्टर पर ड्यूटी में कोताही का आरोप लगाने वाले शख़्स को न सिर्फ़ पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा बल्कि एक संदिग्ध शिकायत के आधार पर नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। वह भी तब, जब स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई जाँच में डॉक्टर की गलती पाई गई है। लेकिन गवाहों से लेकर सीसीटीवी फ़ुटेज जैसे साक्ष्यों को भी नज़रअंदाज़ करके पुलिस ने शिकायतकर्ता पर ही कलंदरा दर्ज कर लिया। आरोप है कि पुलिस से लेकर प्रशासन तक रसूखदार परिवार से संबंध रखने वाली महिला डॉक्टर के दबाव में आकर उसे बचाने और पत्रकार को फँसाने में जुटा है।

मामला ऊना के अंब का है। अपने बीमार पिता को अस्पताल ले गए एक पत्रकार ने लौटकर आरोप लगाया कि वहाँ मौजूद डॉक्टर ने सही से व्यवहार नहीं किया। इसके बाद डॉक्टर ने पत्रकार पर बदसलूकी का आरोप लगाया। दोनों की शिकायत पुलिस तक पहुँची और फिर मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी। स्वास्थ्य विभाग मुख्यमंत्री के पास है ऐसे में सीएम की ओर से तुरंत मामले की जाँच के आदेश दिए गए। दोनों की शिकायतों की जाँच हुई। स्वास्थ्य विभाग के जाँच अधिकारी ने पाया कि डॉक्टर अपनी ड्यूटी का निर्वहन करने में असफल रहीं और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।

इस बीच तक स्थानीय पुलिस ने शुरुआती जाँच में बयानों आदि के आधार पर पाया कि महिला डॉक्टर के द्वारा लगाए गए आरोपों में वज़न नहीं है। मगर यहीं पूरे मामले में नया मोड़ आ गया। अचानक जिला पुलिस कप्तान ने मामले का जाँच अधिकारी बदल दिया और उसने पिछली जाँच को नज़रअंदाज़ करके एडीए द्वारा दी गई सीसीटीवी फ़ुटेज जाँच की पड़ताल की सिफ़ारिश पर अमल किए बिना ही पत्रकार पर सरकारी काम में बाधा पहुँचाने और अधिकारी को क्षति पहुँचाने के लिए कार्रवाई करते हुए कलंदरा दर्ज लिया।

अपनी शिकायत में महिला डॉक्टर ने जो दावे किए हैं, सीसीटीवी फ़ुटेज उन दावों के अनुरूप नहीं है। ऐसे में पुलिस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्यों जाँच अधिकारी बदला गया और उस जाँच अधिकारी ने बिना सीसीटीवी फ़ुटेज देखे कि आधार पर पत्रकार पर कार्रवाई कर दी। अब सरकार के दो महकमे ही आमने-सामने हैं। स्वास्थ्य विभाग साक्ष्यों के आधार पर डॉक्टर को दोषी पा रहा है तो वहीं पुलिस के बदले हुए जाँच अधिकारी ने पत्रकार पर कार्रवाई कर दी। हमने पूरे मामले की पड़ताल की तो पाया कि पुलिस की ओर से मामले में की गई कार्रवाई बेहद अजीब है। ऐसा में सवाल उठने लगे हैं कि कि पुलिस ने किसी दबाव में आकर यह मामला तो नहीं बनाया।

इस संबंध में ‘इन हिमाचल’ से पास आशुतोष और महिला डॉक्टर, दोनों की लिखित शिकायतें, पुलिस द्वारा की गई शुरुआती जांच की प्रतियां और सीसीटीवी की फुटेज के क्लिप्स उपलब्ध हैं। इस पूरे मामले को समझने के लिए पूरा घटनाक्रम समझें-

दिन-  28 अप्रैल, 2020

ऊना के अम्ब के रहने वाले आशुतोष, जो कि स्थानीय पत्रकार हैं, अपने पिता को लेकर अंब अस्पताल गए। उनके पिता हार्ट पेशंट थे और उन्हें उल्टियां हो रही थीं। ड्यूटी रूम में  वह तुरंत उन्हें इमर्जेंसी में ले गए क्योंकि दिल के मरीज़ों के लिए उल्टियां घातक साबित हो सकती हैं। जब वह ड्यूटी रूम पहुंचे तो उन्हें वहां मौजूद डॉक्टरों ने बताया कि इमर्जेंसी ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर जांच करेंगे।

आरोप है कि वहाँ मौजूद डॉक्टरों ने एक महिला डॉक्टर के आने का इंतज़ार करने को कहा। इस दौरान तक बाक़ी मरीज़ों को चेक किया जाता रहा। कुछ देर बाद वह डॉक्टर वहाँ पर आईं। काफ़ी देर बात जब आशुतोष के पिता का नंबर आया तो उन्हें कमरे के बाहर रखी गई कुर्सी पर बिठा दिया गया जबकि डॉक्टर काफ़ी अंदर थीं। इस बात की पुष्टि सीसीटीवी फ़ुटेज में भी होती है।

मरीज को जहां बिठाया गया था, वजह जगह डॉक्टर से तीन मीटर से भी ज़्यादा दूर थी। इसका पता आपको नीचे की तस्वीर से चल जाएगा। जहां पर मरीज़ को बिठाया गया था, वहाँ घेरा लगाया गया है।

ऐसा तब हुआ, जब स्वास्थ्य विभाग पहले ही स्पष्ट निर्देश जारी कर चुका था कि मरीज़ों और डॉक्टरों के बीच कम से कम एक मीटर का फ़ासला रखना है और जो नॉन-कॉविड पेशंट्स हैं, उनकी जाँच सामान्य तौर पर करनी है, जैसे करनी चाहिए। मगर यहाँ पर दूरी बहुत ही ज़्यादा थी, जिससे डॉक्टर की बात मरीज़ों को समझ नहीं आ रही थी। आशुतोष जब अपने पिता की समस्या के बारे में बताने के लिए थोड़ा सा आगे गए तो उन्हें हाथों से इशारा करके डॉक्टर ने पीछे जाने को कहा।

इस तस्वीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि डॉक्टर ने मरीज़ को कहां बिठाया था।

बहरहाल, इस दौरान तक महिला डॉक्टर ने आशुतोष के पिता की जांच तक नहीं की। ईसीजी आदि तो दूर, बीपी तक नहीं मापा गया और डॉक्टर के कहने पर नर्स ने इंजेक्शन लगा दिया। पूरी वीडियो फुटेज में दिखता है कि मरीज़ की जांच ही नहीं की गई। आशुतोष का कहना है कि महिला डॉक्टर ने जब उन्हें पर्ची पकड़ाई तो उस समय उन्होंने महिला डॉक्टर से कहा कि ‘पेशंट और आपके बीच कुछ ज़्यादा ही दूरी थी, सोशल डिस्टैंसिंग इतनी नहीं होती, मैं भी पत्रकार हूँ और सामाजिक दूरी का मुझे पता है।’

इसके बाद नर्स ने आशुतोष के पिता को इंजेक्शन दिया और वो घर आ गए। अस्पताल में हुए व्यवहार को लेकर उन्होंने फ़ेसबुक पर वीडियो डाला और उसमें आसपास के पुलिस थानों को टैग किया। उन्होंने वीडियो में नाम लिए बग़ैर बताया कि किस तरह से उनके पिता को ढंग से चेक नहीं किया गया। उन्होंने बीएमओ आदि को फ़ोन करके शिकायत की और ईमेल के माध्यम से मुख्यमंत्री कार्यालय से भी शिकायत दर्ज की और चिट्ठी भी लिखी।

आशुतोष द्वारा की गई शिकायत

इसी बीच डॉक्टर ने भी पुलिस को शिकायत दी कि आशुतोष नाम का शख्स आया और उसने सोशल डिस्टैंसिंग का पालन नहीं किया और जब उसे ऐसा करने के लिए कहा गया तो धमकाने लगा कि मैं भी सोशल डिस्टैंसिंग जानता हूं और पत्रकार हूं। डॉक्टर की शिकायत के अनुसार, आशुतोष ने पत्रकार होने की धौंस दिखाई। उन्होंने आशुतोष द्वारा फ़ेसबुक पर डाले गए वीडियो का भी ज़िक्र किया और कहा इससे उन्हें भावनात्मक रूप से ठेस पहुँची है।

इस बीच आशुतोष के पिता की तबीयत बिगड़ गई और उन्हें फिर से एक मई को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा जहां वे पाँच दिन रहे। बीच में एक लैब में करवाए गए टेस्ट में पता चला कि उनके पिता के शरीर के इलेक्ट्रोलाइट्स का बैलंस गड़बड़ा गया था जिससे उन्हें स्ट्रोक का खतरा पैदा हो गया था। ऐसी स्थिति में कोई कॉमा में जा सकता है और मौत भी हो सकती है।

इसी बीच सीएमओ ऊना की ओर से मामले की जाँच शुरू हो गई। इसमें प्रारंभिक जाँच में भी डॉक्टर द्वारा ही कोताही करना पाया गया।

सीएमओ द्वारा की गई प्रारंभिक जाँच की रिपोर्ट

फिर दो मई को पुलिस ने शिकायत के आधार पर पड़ताल की और लोगों के बयान कलमबद्ध किए थे। उस रोजनामचे में जाँच अधिकारी ने लिखा कि ‘घटनास्थल’ पर बहस नहीं हुई है और इतना ही पाया गया है कि पत्रकार ने यह कहा कि मैं सोशल डिस्टैंसिंग के बारे में जानता हूँ, प्रेस रिपोर्टर हूँ।’ फिर भी, इस शिकायत पत्र को उन्होंने डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी (डीए) के पास राय के लिए भेजा।

रोजनामचे में डॉक्टर की शिकायत और जांच अधिकारी की टिप्पणी

इसे पुलिस ने डीए के पास ऑपिनियन के लिए भेजा तो उन्होंने कहा कि जिस तरह के आरोप डॉक्टर ने लगाए हैं, मौजूद गवाहों के बयान के आधार पर वैसा कोई घटनाक्रम होना नहीं पाया जाता है ऐसे में आशुतोष पर एपिडेमिक एक्ट के कोई केस नहीं बनता। हालाँकि, इसमें कहा गया था कि गया था कि सीसीटीवी फ़ुटेज का अध्ययन किया जाना चाहिए।

जाँच अधिकारी की पड़ताल पर डीए की राय।

दिन- 5 मई, 2020

सीएमओ स्तर पर की गई जाँच में आशुतोष की शिकायत सही पाई गई और डॉक्टर द्वारा की गई शिकायत को पुलिस ने उचित नहीं पाया। अब इन दोनों रिपोर्टों को आधार मानें तो डॉक्टर का दावा सही नहीं था। मगर पाँच मई को एक नया मोड़ आया। इस दिन जाँच अधिकारी को बदल दिया गया। इस अधिकारी ने डॉक्टर की शिकायत के उस हिस्से को आधार बनाया, जिसमें कहा गया था कि अन्य स्टाफ़ पीपीई किट में बैठा था मगर आशुतोष बिना पीपीई किट ही ड्यूटी रूप में घुस आया। अपनी शिकायत में उन्होंने कहा है कि सीसीटीवी फ़ुटेज में सब साफ़ हो जाएगा।

डॉक्टर द्वारा की गई कंप्लेंट का वो हिस्सा जिसके आधार पर नए जाँच अधिकारी ने कार्रवाई की

अगर जाँच अधिकारी ने सीसीटीवी फ़ुटेज देखी होती तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता। मगर ऐसा नहीं किया गया। हालाँकि, हमारे पास जो सीसीटीवी फ़ुटेज की  क्लिप्स हैं, उनमें न तो इन महिला डॉक्टर ने खुद पीपीई किट पहना है और न अन्य स्टाफ़ ने। शिकायतकर्ता डॉक्टर के पास तो ग्लव्स तक नहीं थे।

डॉक्टर ख़ुद बिना पीपीई किट और ग्लव्स के थीं।

अन्य कर्मचारी भी उसी अवस्था में अंदर-बाहर जा रहे हैं जबकि कुछ ने तो मास्क तक नहीं पहना था।

डॉक्टर ने अपनी शिकायत में जिन डॉक्टर को पीपीई किट में बताया है, वह सीसीटीवी फ़ुटेज में बिना पीपीई किट पहने दिख रहे हैं।
बिना पीपीई के डॉक्टर

उधर बदले हुए नए जांच अधिकारी ने आशुतोष को समझौता करने के लिए कहा मगर उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद जांच अधिकारी ने पड़ताल किए बिना, सीसीटीवी देखे बिना आशुतोष पर कार्रवाई कर दी गई। जाँच अधिकारी द्वारा उनके व्यवहार को नए जाँच अधिकारी ने सरकारी अधिकारी के काम में बाधा डालना, धमकी देना और मानसिक रूप से परेशान करने वाला पाया गया। नीचे देखें, क्या लिखा गया है मगर आगे पढ़ें कि सीसीटीवी क्या कहता है।

नए जाँच अधिकारी की रिपोर्ट जिसमें आशुतोष पर कार्रवाई की तैयारी की गई।

पुलिस पर सवाल

सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि आशुतोष और दिल के मरीज उनके पिता का महिला डॉक्टर से एक ही बार सामना हुआ। एक बार तब जब 30 सेकंड के लिए आशुतोष ने अपने पिता को दिखाना चाहा और जिसे लेकर डॉक्टर ने सोशल डिस्टैंसिंग के उल्लंघन की शिकायत की है और दूसरी बार तब मात्र 8 सेकंड के लिए, जब आशुतोष का कहना है कि उन्होंने डॉक्टर से कहा कि सोशल डिस्टैंसिंग के बारे में उन्हें भी अच्छी तरह पता है।

शिकायत में डॉक्टर ने यह भी लिखा है कि आशुतोष बार-बार इमर्जेंसी रूम में आकर धमकी देता रहा। मगर फ़ुटेज से पता चलता है कि डॉक्टर अपने कमरे में 3.52 पर गई थीं और 4.29 पर बाहर निकली थीं। तब तक आशुतोष अपने पिता को लेकर 4 बजकर 8 मिनट पर ही वहाँ से निकल चुके थे। सीसीटीवी फ़ुटेज में कहीं नहीं है कि वह बार-बार आकर डॉक्टर को धमकाते रहे हों। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पुलिस ने सीसीटीवी की जाँच क्यों नहीं की और किस आधार पर शिकायतकर्ता पर ही कार्रवाई कर दी।

डॉक्टर के ख़िलाफ़ शिकायत का क्या हुआ?

इस बीच तक मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जाँच के आदेश आने पर उच्च स्तरीय जाँच शुरू हुई। इसमें पाया गया कि वाक़ई डॉक्टर ने अपनी ड्यूटी में कोताही बरती थी और जाँच अधिकारी ने तो टर्मिनेशन तक की सिफ़ारिश कर दी थी। इस जाँच के बाद डॉक्टर को शो कॉज़ यानी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसकी एक प्रति ‘इन हिमाचल’ के पास उपलब्ध है।

डॉक्टर को जारी कारण बताओ नोटिस की कॉपी जिसमें पहचान छिपाने के लिए नाम हटाए गए हैं।

यानी पहले सीएमओ ऊना के स्तर पर और फिर उच्च स्तरीय जाँच, दोनों में ही डॉक्टर को ड्यूटी में कोताही करते पाया गया। डॉक्टर को 10 जून तक शो कॉज नोटिस पर जवाब देना था मगर अब यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ता दिखाई दे रहा है। पूरे इलाक़े में चर्चा है कि उक्त डॉक्टर प्रभावशाली रानजीतिक परिवार से होने के कारण न सिर्फ़ ख़ुद को बचा रही हैं बल्कि अपने ख़िलाफ़ शिकायत करने वाले शख़्स को भी झूठे आरोप में फँसा रही हैं।

इस पूरे मामले में पुलिस पर सवाल उठने लगे हैं कि आख़िर जाँच अधिकारी अचानक क्यों बदला गया और दोनों अधिकारियों की रिपोर्टों में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ क्यों है। जब डीए (पुलिस को सलाह देने वाला सरकारी विभाग) ने सीसीटीवी फ़ुटेज देखकर आगे बढ़ने के लिए कहा गया था तो बदले हुए अधिकारी ने ऐसा किए बग़ैर क्यों शिकायतकर्ता पर ही कार्रवाई कर दी।

इस बीच आशुतोष मुख्यमंत्री से इंसाफ़ मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं । सवाल उठ रहा है कि क्या मुख्यमंत्री और प्रदेश सरकार लगातार पड़ रहे दबाव को दरकिनार कर उस पत्रकार को इंसाफ दिला पाएँगे जिसके ऑफिस में लगातार कॉल करके उनकी नौकरी छीन ली गई? क्या उन लोगों पर कार्रवाई होगी जो इस तरह के झूठे आरोप में फंसाने के खेल में शामिल हैं?