इन हिमाचल डेस्क।। सांसद रामस्वरूप शर्मा और उससे पहले शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज को लंदन की एक संस्था से ‘साइलेंट वॉरियर’ नाम से ऑनलाइन सर्टिफिकेट मिला है। नेताओं ने इसे एक बड़ी एचीवमेंट के तौर पर दिखाया है और इसकी ख़बरों को तो सांसद रामस्वरूप शर्मा ने अपने फ़ेसबुक पेज पर भी शेयर किया है। पूर्व डीजीपी सीताराम मरडी को भी ऐसा सर्टिफिकेट दिया गया था।
लोगों के बीच में चर्चा होने लगी कि आख़िर लंदन की कौन सी संस्था है और किस आधार पर सर्टिफिकेट दे रही है। पड़ताल करने पर पाया कि दि वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने और सांसदों और नेताओं व अधिकारियों को भी ऐसे सर्टिफिकेट दिए हैं। जब हमने इस संगठन के बारे में और जानकारी जुटानी चाही तो पत्रकार ओंकार खांडेकर की एक रिपोर्ट मिली। इसमें उन्होंने ‘दि वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ के बारे में कई बातों का पता लगाया है।
Salute to Silent #Corona Warriors !#WorldRecords#WorldRecordsPublishingCompany#WorldBookofRecords#Covid19 pic.twitter.com/lu2n032EZe
— WORLD BOOK OF RECORDS, LONDON (UNITED KINGDOM) (@WbrLondon) May 9, 2020
दरअसल, पिछले साल मध्य प्रदेश में बीजेपी के एक इवेंट को इस संस्था की ओर से ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ का सर्टिफिकेट दिया गया था और बीजेपी ने भी इसे बड़े जोर-शोर से प्रचारित किया था। तब पत्रकार ओंकार खांडेकर ने इस संस्था को लेकर इन्वेस्टिगेशन किया था और इससे संस्थापक से भी बात की थी। हफिंगटन पोस्ट इंडिया पर छपी उनकी विस्तृत रिपोर्ट में इस संस्था के बारे में बहुत सी जानकारियां सामने आई थीं।
तब, पड़ताल में पाया गया था कि स्थापना के दो साल के अंदर ही वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने बीजेपी के नेताओं, इसके सहयोगियों और उनके द्वारा शुरू किए अभियानों को कई सारे सर्टिफिकेट दिए थे और फिर उन्हें नेताओं ने उपलब्धियों की तरह छापा था। मगर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के इतिहास से लेकर वर्तमान तक की कहानी आपको चौंका सकती है।
लंदन नहीं, इंदौर से चलते हैं ऑपरेशंस
इन्वेस्टिगेशन में पता चला था कि ये लंदन की नहीं, भारत की संस्था है और मध्य प्रदेश के इंदौर से इसके ऑपरेशंस चलते हैं। इसका पंजीकरण सिर्फ लंदन में जाकर करवाया गया था वो भी इसलिए, ताकि लोगों को लगे कि सर्टिफिकेट लंदन से मिल रहा है। इस संस्था के संस्थापक हैं 46 साल के संतोष शुक्ला जो पहले वकालत करते थे। उनका कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट में भी वकील रह चुके हैं। उन्होंने पत्रकार को बताया कि वो ये सब इसलिए कर रहे हैं ताकि राज्यसभा में जा सकें और फिर संयुक्त राष्ट्र पहुंच सकें।
संतोष का कहना है कि उनका काम लोगों को प्रेरित करता है। सर्टिफिकेट देने को लेकर उनका कहना था कि पहले के दौर में सम्मानित करने का जो काम शॉल आदि देकर किया जाता था अब सर्टिफिकेट के माध्यम से किया जा रहा है।
जब खुद ही बना दिया था सर्टिफिकेट
सवाल उठता है कि इलाहाबाद में जन्मे संतोष ने कैसे ये ‘इंटरनेशनल’ लगने वाला संगठन खड़ा दिया जो धड़ाधड़ सर्टिफिकेट बांटे जा रहा है? संतोष का कहना था कि 2017 में उनके सहयोगी संजय शुक्ला ने सैकड़ों ब्राह्मण बालकों के लिए जनेऊ संस्कार का आयोजन किया था। वह चाह रहे थे कि इसका रिकॉर्ड बनाएं।
संतोष ने बताया, “मैंने अगले कुछ दिनों में कई सारी रिकॉर्ड दर्ज करने वाली संस्थाओं को लिखा। जैसे कि गिनेस बुक, लिमका बुक, होल्ड बुक और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स। गिनेस ने तो जवाब ही नहीं दिया, बाकियों ने या तो बहुत फीस मांगी और उनकी विश्वसनीयता भी ज्यादा नहीं थी।” संतोष ने जनेऊ संस्कार वाले कार्यक्रम से एक रात पहले एक ‘वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ के काल्पनिक नाम से सर्टिफिकेट बनाया और अगले दिन आयोजकों को सौंप दिया।
इसके बाद अगले दो हफ्तों तक उन्होंने रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट देने वाली संस्थाओं के बारे में जानकारी जुटाई और लंदन में अपनी जान पहचान के एक शख्स को और भारतीय मूल के ब्रितानी सांसद वीरेंद्र शर्मा को ईमेल लिखकर मदद मांगी। संतोष ने बताया कि वह गिनेस की तरह लीगल संस्था बनाना चाहते थे। उन्होंने छह-सात सांसदों के समर्थन पत्र जुटाए और लंदन जाकर इस संस्था को पंजीकृत करवा दिया। उनका कहना था कि तीन दिन में यह काम हो गया।
लंदन से ही पंजीकरण क्यों?
लंदन से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की कॉपी भी उनके पास है। जब पत्रकार ओंकार ने संतोष से पूछा कि आपने लंदन से ही पंजीकरण क्यों करवाया तो उनका जवाब था- अगर मैं आपको एक दिल्ली का सर्टिफिकेट दूं और दूसरा लंदन का तो आप कौन सा लेंगे?
लंदन के बाद वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स को भारत, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में पंजीकृत करवाया गया। हफ पोस्ट के अनुसार, इसकी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए संतोष ने पिछले दो सालों में कुछ और कंपनियां बनाईं जिनमें संतोष के परिवार के सदस्य ही निदेशक हैं। भले ही इसे वैश्विक संस्थान के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है मगर इसके अधिकतर रिकॉर्ड होल्डर भारतीय मूल के हैं।
ऐसी कोई भी संस्था इस तरह के सर्टिफिकेट दे सकती है और इसमें ग़लत नहीं है। हो सकता है कि कल को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स वाक़ई प्रतिष्ठित नाम बने और पूरी दुनिया में यह गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से भी बड़ी हो। मगर अभी उसकी ओर से मात्र एप्रिसिएशन यानी प्रोत्साहन के लिए दिए जा रहे सर्टिफिकेटों को उपलब्धि के तौर पर दिखाना यह बताता है कि हमारे नेताओं के पास आत्मविश्वास की कमी है और उन्हें अपनी उपलब्धियाँ दिखाने के लिए किसी भी सर्टिफिकेट को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने से गुरेज़ नहीं है।
रही बात ऐसी बातों की ख़बरें छपने की, इस पर बात करना बेकार है। जब फ़्रंट पेज़ पर भ्रामक विज्ञापनों को ख़बरों की शक्ल में छापा जा सकता है तो ये फिर भी मामूली सी बात है।
(हफ पोस्ट की विस्तृत रिपोर्ट आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं)