उपचुनावों में ‘झटके’ का असर? केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाई

नई दिल्ली।। पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों के बीच केंद्र सरकार ने इन पर लगनी वाली एक्साइज ड्यूटी में कटौती की है। सरकार ने पेट्रोल पर पांच रुपये और डीजल पर 10 रुपये की एक्साइज ड्यूटी कम की है। माना जा रहा है कि सरकार ने यह कदम हाल ही में देशभर में हुए उपचुनावों के नतीजों को देखते हुए उठाया है।

महंगाई, खासकर पेट्रोल और डीजल के दामों में हर रोज हो रही बढ़ोतरी ने देश के विभिन्न हिस्सों में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों पर असर डाला। चूंकि पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी का सीधा असर कुल महंगाई पर भी होता है, ऐसे में मतदाताओं में भारी नाराजगी देखी जा रही थी। इसका असर भी हुआ और भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहा, खासकर हिमाचल में। यहां मंडी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के साथ-साथ विधानसभा की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को जीत हासिल हुई।

हिमाचल प्रदेश में हुए उपचुनावों में स्थानीय फैक्टर और टिकटों के आवंटन की भूमिका के अलावा महंगाई को लेकर लोगों की नाराजगी स्पष्ट दिखी। मंडी से इस बार कांग्रेस ने दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को टिकट दिया था। प्रतिभा सिंह पहले भी दो बार इस सीट से सांसद रह चुकी हैं। उनका चुनाव प्रचार अभियान वीरभद्र सिंह को श्रद्धांजलि के नाम पर वोट मांगने और महंगाई के खिलाफ वोट देने की अपील पर केंद्रित रहा।

वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इस बार ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाया था जो मात्र आठ हजार वोटों से हारे। भारतीय जनता पार्टी उनकी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही थी लेकिन जैसे-जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ता गया, पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ते गए, खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़े और महंगाई दर में उछाल देखने को मिला। कांग्रेस को बैठे-बिठाए हथियार मिल गया।

इसका सीधा असर मंडी लोकसभा सीट के उपचुनाव में कम मतदान के रूप में देखने को मिला। यहां पर मात्र 57.7 प्रतिशत ही मतदान हुआ। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि महंगाई मुख्य वजह रही कि भारतीय जनता पार्टी के समर्थक रहे मतदाताओं ने मतदान की प्रक्रिया में हिस्सा लेने से परहेज किया। वरना ब्रिगेडियर के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने एक मजबूत प्रत्याशी उतारा था। 2014 के चुनाव में जब मोदी लहर थी, तब पंडित रामस्वरूप शर्मा मंडी में प्रतिभा सिंह से मात्र 39 हजार वोटों से ही जीते थे। वहीं इस दौर में, जब प्रतिभा सिंह को दिवंगत वीरभद्र सिंह के निधन के बाद सहानुभूति मिल रही थी और केंद्रीय नेतृत्व चुनाव प्रचार से गायब था, तब भारतीय जनता पार्टी मात्र आठ हजार वोटों के अंतर से हारी।

जानकारों का मानना है कि अगर एक्साइज ड्यूटी में यही कटौती का फैसला अगर चुनावों से पहले केंद्र सरकार की ओर से हुआ होता तो हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट का नतीजा कुछ और होता और मध्य प्रदेश की खंडवा में भारतीय जनता पार्टी की जीत का अंतर और अधिक रहता। मध्य प्रदेश की खंडवा लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी ने 81 हजार वोटों से जीत हासिल की। जबकि इसी सीट पर 2019 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी की जीत का अंतर 2 लाख 73 हजार था जबकि 2014 में 2 लाख 60 हजार से ज्यादा था। इस बार अंदर एक लाख से नीचे आकर 81 हजार पर सिमट गया।

इसी तरह दादरा और नगर हवेली में शिवसेना की जीत हुई। शिवसेना के उम्मीदवार को 1 लाख 17 हजार 590 वोट मिले जबकि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार 66 हजार वोटों पर ही सिमट गए। यही हाल पूरे देश में देखने को मिला। पूरे देश में तीन लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें बीजेपी ने 7 सीटों पर जीत दर्ज की, उनके सहयोगियों को 8 सीटों पर सफलता मिली। वहीं कांग्रेस के खाते में भी 8 सीटें गईं।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि चुनावों के नतीजों को फीडबैक की तरह लेते हुए केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है कि मंहगाई एक मुद्दा है और इसका नुकसान इसे जल्द उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है। ऐसे में उसने एक्साइज ड्यूटी घटाने का फैसला तो किया है मगर शायद इसमें देर हो गई है। अभी महंगाई को कम करने के लिए और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।

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