इंजिनियरिंग के ग्रैजुएट कोर्स में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के हालिया रिजल्ट को अगर देश भर में सबसे घटिया रिजल्ट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यह हाल उस प्रदेश का है, जो शिक्षा और साक्षरता के मामले में देश के टॉप राज्यों में से एक है। फिर अचानक इस प्रदेश के छात्रों को अचानक क्या हो गया कि सिर्फ 5% ही पास हो पाए?बी.टेक (सिविल) के सातवें सेमेस्टर के इस अजीब रिजल्ट पर आत्ममंथन करने की जरूरत किसे है, यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली के लिए जवाबदेह सरकार के लिए या फिर पास न हो पाने वाले छात्रों के लिए? अहम सवाल यह है कि अचानक इस बार ही क्यों ऐसा हुआ? पहले भी यही यूनिवर्सिटी थी और छात्र भी यही थी। मगर इतना खराब रिजल्ट तो कभी नहीं आया।
‘इन हिमाचल’ ने इस बार कुछ छात्रों से बात की जो अपने-अपने कालेज के टॉपर रहे हैं। इस बार उनका परिणाम भी उम्मीद से विपरीत है। इनका कहना था कि इसमें जरूर यूनिवर्सिटी प्रबंधन का कोई रोल है। इनका यहां तक दावा है कि अगर पेपर किसी बाहर की फैकल्टी से चेक करवाए जाएं तो दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। छात्रों की इस बात से प्रदेश यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणली और सरकार की भूमिका भी संदेह के घेरे में आती है। खराब रिजल्ट का दोष सिर्फ छात्रों या कॉलेज प्रबंधन से सिर नहीं मढ़ा जा सकता। आखिर आज से पहले भी यही छात्र थे, जिनका रिजल्ट अच्छा आता था।
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यह तो डिग्री कोर्सेज की बात थी। इन दिनों हिमाचल प्रदेश में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का काम जोरों पर चला हुआ है। इसी कड़ी में प्रदेश सरकार के ‘सबसे ऐक्टिव मंत्री’ ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 16 निजी पॉलिटेक्निक कॉलेजों की मान्यता रद्द कर दी है। मान्यता रद्द करने का कारण ख़राब रिजल्ट और संस्थानों में मूलभूत सुविधाएं नहीं होना बताया जा रहा है। हिमाचल में तकनीकी शिक्षा के इस हाल और सरकार के फैसले से संदेह की बू आ रही है।
पहले क्या सरकार सोई हुई थी?
आज से पहले गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार ने क्या किया? क्या इन कॉलेजों को कभी वॉर्निंग दी गई थी? क्या कभी यह चेक किया गया था कि वहां मूलभूत सुविधाएं या फैकल्टी हैं या नहीं? यकायक लिया गया यह फैसला संदेह के घेरे में तो रहेगा ही। टेक्निकल यूनिवर्सिटी के इस रिजल्ट के कारण पूरे देश में हिमाचल की साख गिरी है। भविष्य में अभिभावक अपने बच्चों को हिमाचल प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी में भेजने से पहले सौ बार सोचेंगे। बाहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन बढ़ेगा। यह सच है की निजी कॉलेज अपनी मनमानी करते हैं। प्रदेश के कई इंजिनियरिंग कॉलेजों की फैकल्टी से हमने बात की तो पता चला कि लैब तो सिर्फ कागजों में चल रही है। इन्हें यूजीसी नॉर्म्स के अनुसार वेतन तक नहीं दिया जाता, बस सिग्नेचर करवा लिए जाते हैं। मगर सवाल यह उठता है कि सिर्फ रिजल्ट आने पर सरकार को वस्तुस्तिथि का पता चला ? इससे पहले आज तक यूनिवर्सिटी कहां सोई थी ? वह वार्षिक इंस्पेक्शन के दौरान क्या लैब्स देखकर आते थे?
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कॉलेजों की हालत वाकई खराब है
नाम न छापने की शर्त पर एक इंजिनियरिंग कॉलेज के फैकल्टी मेंबर ने बताया की उनके कैंपस में एक पॉलिटेक्निक है और एक डिग्री कॉलेज। पॉलिटेक्निक की ऐफिलिएशन टेक्निकल बोर्ड से होती है जबकि इंजिनियरिंग कॉलेज की यूनिवर्सिटी से। जब भी वार्षिक इंस्पेक्शन लैब आदि देखने के लिए यूनिवर्सिटी की टीम को आना तो उस के आने से पहले पॉलिटेक्निक की लैब्स के सारे इंस्ट्रूमेंट्स डिग्री कॉलेज में पहुंचा दिए जाते हैं और जब पॉलिटेक्निक में इंस्पेक्शन की टीम आये तो यही इंस्ट्रूमेंट उठाकर वहां की लैब में सजा दिए जाते हैं। इस तरह से प्रदेश में इंजिनियर बनाये जा रहे है।
मगर सरकार भी कम दोषी नहीं
यूनिवर्सिटी या टेक्निकल बोर्ड का काम सिर्फ साल में एक बार के औपचारिक निरिक्षण का रह गया है। क्या औचक निरिक्षण नहीं किया जा सकता था? क्या स्टूडेंट के लिए कोई हेल्पलाइन नहीं बनाई जा सकती जो उनके नाम का खुलासा किये वगैर उनकी शिकायत का संज्ञान ले और कॉलेज प्रशासन से जबाबदेही ले? अब ख़राब रिजल्ट आने पर यह लकीर पीटने वाली बात है। इसमें हिमाचल प्रदेश सरकार ही गलती है और वो भी इसके लिए जबाबदेह है।
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पड़ोसी राज्यों के शिक्षा माफिया का हाथ?
कहीं न कहीं एक दम से इसी बार आए खराब रिजल्ट के लिए और निजी कॉलेजों की मान्यता रद्द करने के पीछे बाहरी राज्यों के शिक्षा माफिया का हाथ भी माना जा रहा है। हिमाचल में 6-7 साल पहले इतने कॉलेज नहीं थे, जिस कारण छात्र शिक्षा के लिए पंजाब आदि राज्यों में जाया करते थे। वहां के कॉलेज हिमाचली छात्रों से गुलजार रहा करते थे और उनका धंधा खूब जोरों पर चलता था बाकायदा उनके एजेंट प्रदेश से छात्रों को ऐडमिशन दिलवाकर कमिशन खाया करते थे। मगर जैसे-जैसे हिमाचल में कॉलेज बढ़े, उनका धंदा चौपट हो गया। पंजाब के कई कॉलेज आज बंद होने की कगार पर हैं।
कहीं हिमाचल यूनिवर्सिटी की साख गिराने के लिए इन्होंने ही यह हथकंडा तो नहीं अपनाया? कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार में बैठे कुछ लोग उनके इशारों पर एकदम सक्रिय हो गए हैं और उनके फायदे के लिए ताबड़तोड़ फैसले ले रहे हैं। क्योंकि गुणवत्ता एक रात में नहीं सुधर जाती। इसके लिए कॉलेज प्रबंधन, छात्रों, यूनिवर्सिटी और सरकार का मिला-जुला सहयोग जरुरी है। लेकिन सरकार, यूनिवर्सिटी और कॉलेज प्रबंधन की भूमिका यहां संदेह के घेरे में है। इसका खामियाजा हिमाचल की नई पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है जो किसी साज़िश का शिकार हो रही है।
शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए कड़े कदम बेशक उठाए जाने चाहिए, लेकिन प्लैनिंग के साथ। ऐसा नहीं कि जब अपनी नींद खुले तो बिना सोचे-समझे तबाही मचा दी जाए। हिमाचल प्रदेश का भविष्य प्रदेश के अंदर भी शिक्षा माफिया के लालच का शिकार हो रहा है और प्रदेश के बाहर भी। सरकार अगर इन शिक्षा माफियाओं पर नकेल कसने के बजाय प्रोत्साहित करने वाले फैसले लेगी तो यह चिंता का विषय है। अफसोस की बात है कि अभी तक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए सरकार ने एक भी समझदारी भरा और प्रभावी कदम नहीं उठाया है।