2017 में प्रदेश में बाली बनाम नड्डा के समीकरण

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सुरेश चंबियाल 
मोदी रथ पर सवार बीजेपी हर राज्य में नए प्रयोग कर रही है और उसमें उसे आशातीत सफलता भी मिल रही है। बीजेपी प्रदेश में युवा तुर्कों, स्वच्छ छवि और संघ की विचारधारा के लोगों को नेतृत्व का मौका दे रही है।  देवेन्द्र फडणवीस, मनोहर लाल खट्टर , रघुवीर दास  समेत अन्य राज्यों के  चुनाव के साथ  यह लिस्ट और भी लम्बी हो सकती है।  मोदी-शाह और संघ मॉडल को लेकर चले तो यह कहना भी अतिश्योक्ति  नहीं होगी कि हिमाचल प्रदेश की जनता के सामने भी बीजेपी एक नए नेतृत्व का विकल्प रख सकती है।  इसी मॉडल को ध्यान में रखते हुए अगर हिमाचल प्रदेश की राजनीति को देखें तो बीजेपी के कप्तान प्रेम कुमार धूमल 2017 तक   74  वर्ष के हो जाएंगे।  ऐसे में बीजेपी चाहेगी ऐसे हाथों में सत्ता सौंपी जाए जो मात्र अगले पांच साल के लिए नहीं, बल्कि दस पंद्रह साल की नींव डाल सके। बीजेपी का मानना है कि जब अन्य राज्यों में वह लगातार जीत सकती है हिमाचल में क्यों नहीं। धूमल के  अलावा हिमाचल बीजेपी में नेतृत्व की बात करें तो जगत प्रकाश  नड्डा मोदी मॉडल में सब से फिट बैठते हैं और केंद्र में अमित शाह से लेकर संघ तक के प्रिय भी हैं।

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प्रदेश बीजेपी में नड्डा समर्थकों की अच्छी खासी फौज है। नड्डा के बढे़ रुतबे से हिमाचल बीजेपी पदाधिकारी भी नड्डा से नजदीकियां बढ़ाने लग गए हैं। समीकरण कह रहे हैं  शांता धूमल गुटों में  पिसती आई प्रदेश बीजेपी नड्डा के रूप में आगे बढ़ने की सोच सकती है।  नड्डा के बाद बीजेपी को मोदी मॉडल से देखा जाए तो   युवा  तुर्क अनुराग ठाकुर भी रुतबा रखते हैं।  मोदी के नवरत्नों में से एक अनुराग ठाकुर राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी का एक क्रन्तिकारी चेहरा हैं। उनके रास्ते की रुकावट है- राजनितिक खानदान से होना।  परिवारवाद पर निशाना साधकर हर राज्य में विपक्ष को निशाने पर लेने वाले प्रधानमंत्री शायद ही अनुराग ठाकुर को हाल-फ़िलहाल प्रदेश राजनीति में  उतारने का रिस्क लें।  कुल मिलाकर बीजेपी नड्डा के साथ जाती ही दिख रही है। अन्य विकल्पों में राजीव बिंदल, जय राम ठाकुर या रविंदर रवि भी हो सकते हैं, लेकिन इनके आगे बढ़ने में भी नड्डा की ही भूमिका अहम होगी।

अब जरा सत्ता में में बैठी कांग्रेस के समीकरणों पर गौर किया जाए तो हिमाचल में कांग्रेस की राजनीति के पितामाह राजा वीरभद्र सिंह बूढ़े हो चले हैं। 2017 तक 85 साल के होंगे। इस बार भी बमुश्किल कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मौका दिया था। उनके बिना हिमाचल में देखें तो  कांग्रेस मॉडल कहता है  कि गांधी परिवार और केंद्रीय संगठन से जिसकी नजदीकियां होंगी, वही राज्यों में कांग्रेस का नेता होता है।  मंडी सीट से प्रतिभा सिंह जब उपचुनाव में जीत कर आई थी तो जीत से उत्साहित वीरभद्र सिंह को लगा था कि  कैसे भी करके वह अपनी विरासत उन्हें सौंप देंगे।  मात्र एक साल बाद आई मोदी आंधी ने उनका सपना काफी हद तक  चकनाचूर कर दिया है।  इनके बाद कांग्रेस में लम्बी लिस्ट है- जिसमे आनंद शर्मा ,कौल सिंह, जी.एस. बाली, सुधीर शर्मा और मुकेश अग्निहोत्री के नाम हैं।  आनंद शर्मा खुद जानते हैं वह हिमाचल की जनता में स्वीकार्य नहीं हो पाएंगे इसलिए वह हमेशा राज्य राजनीति से अपने आप को दूर ही रखते हैं।  कौल सिंह सदियों से राजा के बाद मुख्यमंत्री बनने का अरमान पाले हुए हैं परन्तु उनकी दिक्कत यह है की हाल के कुछ बरसों को छोड़कर उनकी सारी जिंदगी राजा ‘भक्ति’ में ही बीती है। ऐसे में वह कांग्रेस में ऊपर तक ज्यादा पहचान नहीं रखते। पिछली बार भी वह आनंद शर्मा की दया पर ही निर्भर थे।  ऐसे ही सुधीर शर्मा , मुकेश अग्निहोत्री आदि की भी  वीरभद्र से आगे  राष्ट्रीय  स्तर पर  कोई पहचान नहीं है।  अब बचते है जी एस बाली, जो मौजूदा राजनीति के हिसाब से सबसे फिट बैठते हैं।

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बाली हमेशा सुर्ख़ियों में रहने वाले मंत्री हैं। दबंग नेतृत्व की पहचान बाली गांधी परिवार और  कांग्रेस संगठन से ठीक करीबियां रखते हैं।  कांग्रेस के दिग्गज महासचिव अभिषेक मनु सिंघवी से बाली की नजदीकियां जग जाहिर हैं।  नगरोटा की रैली में बाली के साथ  विद्या स्टोक्स , राजेश धर्माणी का होना उन्हें स्टोक्स और वीरभद्र विरोधी खेमे का मौन समर्थन समझा जा रहा है। बाली अपने आप को विकल्प के रूप में जनता के सामने लाने की पूरी तैयारी में है। कुल मिलाकर 2017 चुनाव  में बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही दलों की तरफ से नए नेतृत्व का आगाज होगा। बीजेपी के वाइब्रेंट नेता जेपी नड्डा और कांग्रेस के दबंग जीएस  बाली में से हिमाचल प्रदेश को कोई मुख्यमंत्री मिलेगा, यह समीकरण कह रहे  हैं।