शिमला।। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही है। पानी की कमी इतनी हो गई है कि लोग सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हो गए हैं। वहीं पानी की किल्लत दूर करने जैसे मुद्दे को अपने अजेंडे में सबसे ऊपर बताकर निगम के चुनाव लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी खामोश है। मेयर कुसुम सदरेट को जिस वक्त इन हालात को दूर करने के लिए शिमला में होना चाहिए था, उस समय वह चीन में हैं।
सारे अखबारों में खबरें छपी हैं कि वह चीन गई हैं, मगर क्यों गई हैं, इसकी कोई जानकारी नहीं है। मगर एक संभावना यह बनती है कि वह चीन के ज़ेगज़ू में 27 मई से शुरू ‘इंटरनैशनल मेयर्स फोरम ऑन टूरिज़म’ में हिस्सा लेने गई हैं। सवाल यह है कि डेप्युटी मेयर के हवाले से भी कोई खबर क्यों नहीं आ रही? क्या मेयर की गैर मौजूदगी में सारी जिम्मेदारी डेप्युटी मेयर की नहीं बनती है? डेप्युटी मेयर का काम ही होता है मेयर की अनुपस्थिति में मेयर की भूमिका निभाना।
हालात बेहद खराब
जैसे ही गर्मियां तपती हैं, पड़ोसी राज्यों के लोग हिमाचल प्रदेश का रुख करते हैं। चंडीगढ़ और पंजाब-हरियाणा के करीबी इलाकों के लोग शिमला का रुख करते हैं। यानी शिमला के लिए यह गर्मियों में टूरिज़म का पीक सीज़न है क्योंकि लोग यहां राहत लेने के लिए आते हैं। मगर पानी की किल्लत ऐसी हो गई है कि स्थानीय निवासियों ही नहीं, पर्यटकों को भी दिक्कत महसूस हो रही है क्योंकि होटलों के पास भी पानी की कमी हो गई है।
गंदा पानी, भारी-भरकम रेट
पानी की कमी के कारण लूट की स्थिति पैदा हो गई है। भारी मांग के कारण पानी के टैंकर सप्लाई करने वाले 4000 लीटर का टैंकर 2500 रुपये के बजाय 5000 रुपये में दे रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि पानी कम होने के कारण कई होटलों को बुकिंग कैंसल करनी पड़ी हैं। यही नहीं, शहर के आसपास के नालों से यह पानी भरा जा रहा है। आशंका है कि अगर किसी के मुंह में ये पानी चला गया तो कहीं भयंकर बीमारियों का दौर भी शुरू न हो जाए।
कहीं हफ्ते में एक दिन पानी
कुछ जगहों पर हालत अपेक्षाकृत सही है मगर कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां पांचवें या सातवें दिन पानी पहुंचा है। आंकड़े ऐसे हैं कि शहर में हर रोज 22 से 23 एमएलडी पानी की आपूर्ति हो रही है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि शहर में कैसे हालात हैं।
सीवर मिला पानी हुआ सप्लाई
शिमला के कनलोग में नगर निगम ने सीवरेज मिला दूषित पानी जनता को सप्लाई कर दिया था। ये हालात तब हैं जब शिमला में सीवरेज वाले पानी को पीने से फैले पीलिया से दर्जनों लोगों की मौत हुए ज्यादा समय नहीं बीता है।
मेयर पर उठे सवाल
भारत के नेताओं की आदत रहती है कि सीखने के नाम पर होने वाले टूरों में वे शिरकत तो करते हैं मगर वे क्या सीखते हैं, क्या नहीं, किसी को नहीं पता। चीन में मेयर कुसुम सदरेट क्या करने गई हैं, किस कार्यक्रम में हिस्सा लेने गई हैं, इस संबंध में सार्वजनिक रूप से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। मगर वह 27 से 30 मई तक चीन में आयोजित हो रही टूरिज़म पर मेयर फोरम में हिस्सा लेने गई हैं तो यह कोई ऐसा महत्वपूर्ण कार्यक्रम नहीं था जिसे टाला नहीं जा सकता हो।
और टूरिस्टों का ख्याल ही रखना है तो कम से कम पहले शहर में पानी की व्यवस्था तो होनी चाहिए। कुसुम सदरेट के अचानक चले जाने से पहले से ही जल संकट गहरा रहा था, मगर उन्होंने हालात को सुधारने के बजाय चीन जाना उचित समझा। कांग्रेस ही नहीं, भाजपा के सांसदों में भी इस बात को लेकर गुस्सा है और वे अपनी नाराज़गी जाहिर भी कर चुके हैं। मगर मेयर अगर चली भी गईं, तो डेप्युटी मेयर राकेश शर्मा क्या कर रहे हैं जो कि इस समय मेयर की गैरमौजूदगी में सर्वेसर्वा हैं। उनकी नाकामी भी दिखाती है कि नगर निगम समय रहते सही इंतज़ाम करने में नाकाम रही है और अभी भी उसे समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए।
एक साल में क्या किया?
ऐसा नहीं है कि ये हालात बीजेपी सरकार आने के बाद ही बने हैं। पिछले साल जून के आखिर में नए मेयर और डेप्युटी मेयर ने शहर की पानी की समस्या को दूर करने के लिए गुम्मा पेयजल परियोजना का दौरा किया था। वहां अंग्रेजों के दौर के ने टैंक नजर आए जो 19-20-1921 में बने थे। यहां ज्यादातर पंप खराब थे। 16 में से 3 पंप ही काम कर रहे थे। फिल्टर सिस्टम सालों से नहीं बदला गया था।
साफ है कि इससे पहले के पार्षदों और मेयर आदि इस दिशा में कुछ नहीं कर पाए थे। मगर बीजेपी की मेयर, डेप्युटी मेयर बने तो अब 11 महीने हो चुके हैं। क्या एक साल में पानी की किल्लत दूर करने के लिए जरूरी इंतज़ाम नहीं किए जा सकते?
शायद सब चुनावी बातें, सब चुनावी मुद्दे हैं। जनता को क्या समस्या होती है, क्या नहीं, उन्हें क्या पता। उनके घरों में सप्लाई ठीक रहती है। न भी आए तो वे सत्ता में हैं, टैंकर मंगवा सकते हैं। मगर आम जनता को तो जैसे-तैसे गुजारा करना पड़ेगा।