पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का 87 साल की उम्र में निधन

वीरभद्र सिंह

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का निधन हो गया है। वह 87 साल के थे। सोमवार को तबीयत बिगड़ने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखा था। गुरुवार सुबह पौने चार बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।

इससे पहले अप्रैल में कोरोना से संक्रमित होने के बाद वह मोहाली के एक निजी अस्पताल से स्वास्थ्य लाभ करके लौटे थे मगर हिमाचल पहुंचते ही उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। वह तभी से शिमला के आईजीएमसी में भर्ती थे। यहां पर वह दोबारा कोरोना संक्रमित पाए गए थे।

उनकी पार्थिव देह को शिमला में उनके निवास होली लॉज लाया गया है। इसके बाद शुक्रवार सुबह कांग्रेस कार्यालय ले जाया जाएगा ताकि कार्यकर्ता और आम लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें। इसके बाद पैतृक स्थान रामपुर ले जा जाएगा। वहीं पर अंतिम संस्कार किया जाएगा।

वह वर्तमान में अर्की से विधायक थे। वीरभद्र का जन्म 23 जून 1934 को मौजूदा शिमला जिले के सराहन में हुआ था। 6 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके वीरभद्र यहां पर सबसे ज्यादा वक्त तक इस पद पर बने रहने वाले शख्स थे।

प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में गिने जाने वाले वीरभद्र सिंह उम्र के आखिरी पड़ाव में आय से अधिक संपत्ति मामले में भी घिरे। वह छह बार मुख्यमंत्री रहे। 5 बार वह लोकसभा के लिए भी चुने जा चुके थे और केंद्र में अहम मंत्रालय संभाल चुके थे।

वीरभद्र सिंह के निधन पर राज्य सरकार ने 3 दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। यह शोक 8 से 10 जुलाई तक रहेगा और इस दौरान कोई सरकारी मनोरंजन कार्यक्रम नहीं होगा। राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की तरफ से यह अधिसूचना जारी कर दी गई है।

वीरभद्र सिंह एक ऐसा नाम है जिसे किसी परिचय की जरूरत नहीं है। वीरभद्र सिंह नौ बार विधायक, छ: बार मुख्यमंत्री, पांच बार लोकसभा में बतौर सांसद व एक बार केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। वीरभद्र सिंह को राजनीति का एक युग कहा जाता है।

जन्म

स्वर्गीय वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून, 1934 को शिमला जिला के रामपुर (तत्कालीन बुशहर रियासत) के सराहन में राज परिवार में हुआ था। वीरभद्र सिंह बुशहर रियासत के अंतिम राजा थे। यही कारण है कि वीरभद्र सिंह को राजा साहब के नाम से भी जाना जाता था। उनके पिता का नाम राजा पदम सिंह और माता का नाम शांति देवी था।

शिक्षा

वीरभद्र सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा शिमला और देहरादून से प्राप्त की। उसके बाद स्नातक की पढ़ाई के वह दिल्ली चले गए थे। दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की थी।

राजनीतिक जीवन

1962 में वीरभद्र सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले वीरभद्र सिंह 30 जनवरी, 1962 को कांग्रेस का दामन थामा। उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। हालांकि इससे दो दिन पहले ही कांग्रेस उन्हें महासू से अपना संसदीय उम्मीदवार घोषित कर चुकी थी।

1962 में वीरभद्र सिंह ने जीत हासिल की और महासू से लोकसभा सदस्य चुने गए। इसके बाद 1967 में एक बार फिर महासू से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। इसके 1972 में वह मंडी लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते। 1976 में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और वह पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री बने।

1977 में भी वीरभद्र सिंह ने मंडी से चुनाव लड़ा मगर यह चुनाव वो हार गए। वीरभद्र सिंह अपने पूरे राजनीतिक जीवन मे केवल मात्र यही एक चुनाव हारे थे। इसके बाद 1980 में फिर वीरभद्र सिंह मंडी से लोकसभा सदस्य चुने गए। 1982 में वह केंद्र में उद्योग राज्य मंत्री बने। फिर 1983 में रामलाल के स्थान पर वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

1985 में उन्होंने रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। वह निर्वाचित हुए और दूसरी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1990 में फिर रोहड़ू से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1993 में फिर रोहड़ू से विधानसभा के लिए चुने गए और तीसरी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1998 में रोहड़ू से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। चौथी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री तो बने, पर बहुमत साबित करने में नाकाम रहे।

फिर 2003 में रोहड़ू से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और पांचवीं बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 2007 में रोहड़ू से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए।

2009 में एक बार उन्होंने मंडी से लोकसभा चुनाव लड़ा। वह चुनाव जीते और केंद्र में इस्पात मंत्री बने। 2011 में उन्हें केंद्र में लघु, छोटे एवं मझोले उद्योग मामलों का मंत्री बनाया गया। 2012 उन्होंने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने नवनिर्मित शिमला (ग्रामीण) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता। वह छठी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

वर्ष 2017 में उन्होंने सोलन जिले के अर्की से चुनाव लड़ने की ठानी और चुनाव जीता भी। अपने अंतिम समय तक वीरभद्र सिंह अर्की विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे।

अपने पूरे राजनीतिक जीवन में वीरभद्र सिंह नौ बार विधायक, छ: बार मुख्यमंत्री और पांच बार लोकसभा में बतौर सांसद रहे। वहीं केंद्र में मंत्री पद की ज़िम्मेदारी भी उन्होंने संभाली। इसके अलावा वह कांग्रेस में भी संगठन के अहम पदों पर रहे। वीरभद्र सिंह अपने पूरे जीवन में केवल मात्र एक चुनाव हारे। यही कारण है कि उन्हें राजनीति का एक युग भी कहा जाता है।

विवाद

वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में से एक रहे। उम्र के आखिरी पड़ाव में वीरभद्र सिंह आय से अधिक संपत्ति मामले में गिरे। शिमला के कोटखाई में बहुचर्चित गुड़िया रेप एंड मर्डर केस में भी वीरभद्र सिंह का बयान विवादों में रहा था। उस समय वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

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