मुक्तकंठ कश्यप।। स्वर्ग से एक चिट्ठी डॉ. वाईएस परमार की
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अज़ीज़ मुक्तकंठ!
खुश रहो, शादाब रहो!!
खुशी हुई कि तुम फेसबुक पर आ गए
पानी तुम्हें पुलिस के पहरे में मिल रहा है
ऐसे में सुरक्षित ठिकाना फेसबुक ही था
हमारे यहां खाची जी चलाते हैं फेसबुक
उन्होंने बताया कि
जब से नई सरकार चल रही है
गोलियां तो चलीं कसौली, बद्दी में
वाट्सएप भी खूब चले इन मुद्दों पर
बस नल नहीं चल रहे।
ठाकुर जगदेव आये थे परसों
कहने लगे, जयराम से कहें
पानी वाले शांता से करें सलाह
ऐसे न सुने लोगों की आह
शान्ते ने ही पानी का पैसा दिलाया था
यह शिमले का पानी-पानी होना नहीं
पर्यटन प्रदेश पर पानी फिरना है
सेनानी रहे हमारे दोस्त पंडित पद्म देव ने कहा
ये अजीब हालात हैं
या तो तबाह करती है
पूरी की पूरी परछू सतलुज के ज़रिए
या फिर पानी एक बूंद नहीं
और वो मान चंद राणा बेचारा शरीफ है
साफ बात बोलता है
कहने लगा
शांता क्या कर लेंगे अब
सुलह में सूख चुका है पानी
गंगोत्री के हैंडपम्प लाल ज़ंग उगलते हैं
जैसे पृथ्वी खून उगल रही हो
ठाकुर राम लाल कहने लगे
मैं जब सीएम बना तो इतनी कहाँ थी समस्या
पृथ्वी को लूटा है तुम सबने मिल कर
सब सही कहते हैं
चीफ सेक्रेटरी
प्रिंसिपल सेक्रेटरी
चीफ इंजीनियर
एक्सईन
एसडीओ
जेई
लाइनमैन
फिटर
इसके नीचे भी अगर कोई है
तो वो भी सही ही कहता है
सरकारी आदमी क्यों झूठ बोलेगा?
जगदेव फिर कूदे
यार सच झूठ की बात नहीं
धूमल कहाँ खातरियाँ बचा पाए?
मैं पूछता हूँ
किसकी नालायकी है यह
पांच दरिया भी नहीं बुझा पाते प्यास तुम्हारी
और बुझा लेता है कानपुर जो
जनसंख्या में हिमाचल से भी बड़ा है
ये जो टुल्लू पम्प हैं
ये धरती को यातना के औजार हैं
ठीक वैसे जैसे चीनी औजार
तिबतियों की पसलियों में सुराख करने वाले।
हिमाचल में पानी की कमी कब रही
इतने राज्य अतिथि
इतने बड़े लोग
कार्यकर्ता मंडलाध्यक्ष को
मंडलाध्यक्ष जिला अध्यक्ष को
जिला अध्यक्ष प्रदेशाध्यक्ष को
प्रदेशाध्यक्ष सरकार को
मेट जेई को
जेई एसडीओ को
एसडीओ एक्सीयन को
और वो ऊपर से ऊपर से ऊपर देते रहे पानी
दरअसल पानी को ऊपर से चलना था
तभी ज़मीन में नमी होती
मोहज्ज्ब शहर में इंसानियत
नल की टोंटी से लटक गई
बर्बरता उग आई इतनी
कि पुलिस बांट रही है पानी
यही तो काम है पुलिस का
पानी इस तरह देना कि
सब ठंडे रहें।!
बात सुन मुक्तकंठ यरा!
जयराम भुगत रहा है पहले वालों का किया धरा
अब झेलना तो उसी को है
पर मैं ऐसा शिमला छोड़ कर नहीं आया था
शिमला के पास खूब पानी था
शिमला की कुर्सियों पर बैठने वालों
की आंख में भी बहुत पानी था।
कुंज बिहारी बुटेल और
कांगड़े के दूसरे नेताओं ने बुलाया एक बार
वहां पहुंचते पहुंचते कितने ही मिले प्याऊ
एह सीरां दा भरोह
एह पक्का भरोह
एह रानिया दा भरोह
बताना अब कितने भरोह
जानता हूँ, आलसी हो तुम
पर मुझे चिठ्ठी लिखना
राजनीति में रहते मैंने बहुत स्वमार की है
अपनी खाहिशों को समेटा है बहुत
इसीलिए अब तक परमार हूं
पानी पानी होता हूँ पानी के ज़िक्र पर
बताना, शिमले को पानी मिला या नहीं
आते हुए राजगढ़ के फल ले आना।
जय राम को प्यार देना
चला लेगा सब, वक्त दो उसे!
कविये मिलें अगर तो उन्हें समझाना
अब छोड़ दें गाना
‘सांडू रे मदाना,
झीला रे कनारे
रावी चलदी चाली देहई
ब्यासा रे कन्ढे
पहले पानी बचा लो
फिर उसके गीत गाना!
तुम्हारा ही
डॉ. यशवंत सिंह परमार।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के सोशल मीडिया सर्कल पर चर्चित हस्ती हैं। साहित्य पर पैनी नज़र रखते हैं और जनहित के मुद्दों पर भी टिप्पणियां करते हैं।)