नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर बिना वजह बवाल कर रही बीजेपी

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शिमला।। मीडिया के एक हिस्से में खबर आई कि इस बार हिमाचल में नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जाएगा या नहीं, इस पर पेंच अटका हुआ है। इस खबर के आते ही सत्ताधारी बीजेपी के स्वर भी बदल गए और खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कह दिया कि इस पर विचार किया जाएगा। गोलमोल बातें की जा रही है, साफ कुछ नहीं कहा जा रहा।

हकीकत यह है कि यह किसी के चाहने या न चाहने की बात नहीं है, कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद मिलना तय है और उसे कोई नियम नहीं रोक सकता। यह बात अलग है कि लोकतंत्र की भावना को ताक पर रखते हुए जिस तरह से केंद्र में मोदी सरकार ने कांग्रेस को यह पद देने से इनकार कर दिया, जयराम उसी तर्ज पर चलते हुए हिमाचल में भी ऐसा ही कर दें। मगर ऐसा करना हास्यास्पद ही होगा।

अखबारों ने फैलाया भ्रम
सबसे पहले एक हिंदी अखबार ने खबर छापी कि ‘नई सरकार के विधानसभा के पहले शीत सत्र के दौरान इस बार कांग्रेस पार्टी को नेता प्रतिपक्ष के दर्जे लिए सरकार की इच्छा पर रहना पड़ेगा। कांग्रेस ने मुकेश अग्निहोत्री को नेता प्रतिपक्ष चुन लिया है लेकिन सदन में नेता प्रतिपक्ष के दर्जे के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा।’

इसके पीछे अखबार ने तर्क दिया था- ‘हिमाचल की दूसरी राजधानी धर्मशाला के तपोवन में विधानसभा के शीत सत्र इस बार नेता प्रतिपक्ष के बिना चलेगा। भले ही विपक्षी दल कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष चुन लिया है लेकिन इस दर्जे के लिए पार्टी के पास एक तिहाई सदस्य होना जरूरी है। कांग्रेस के इस बार 21 विधायक ही हैं जबकि 68 सीटों वाली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए 23 विधायक होना जरूरी हैं। भाजपा ने 44 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया है। एक माकपा का और दो निर्दलीय विधायक हैं।’ हालांकि इस अखबार ने अग्निहोत्री को नेता प्रतिपक्ष लिखा है मगर वह कांग्रेस विधायक दल के नेता चुने गए हैं।

क्या हैं नियम
मीडिया में बताए जा रहे नियम सतही हैं क्योंकि इस तरह का कोई नियम नहीं है। यहां तक कि भारतीय संसद तक को लेकर इस तरह का कोई लिखित नियम नहीं है। फिर भी यह मान्यता है कि विपक्ष में बैठने वाले दलों में जिस दल के पास सर्वाधिक सीटें होती हैं उससे किसी सांसद को विपक्ष का नेता चुना जाता है। अगर किसी भी विपक्षी दल के पास कुल सीटों का 10% नहीं है तो सदन में कोई विपक्ष का नेता नहीं भी हो सकता है। 10% अंश की गणना दल के आधार पर होती है, गठबंधन के नहीं। हालांकि यह सपीकर के विवेक पर भी निर्भर करता है कि ऐसी दशा में नेता प्रतिपक्ष का पद देना है या नहीं क्योंकि भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष का नेता अथवा नेता प्रतिपक्ष आधिकारिक विपक्ष का नेता होता है।

68 सीटो का 10 पर्सेंट निकाला जाए तो यह 6.8 बनता है यानी कांग्रेस के पास कम से कम 7 सीटें होनी चाहिए। और उसके पास 21 विधायक हैं। ऐसे में उसे कोई दिक्कत नहीं है।

मुख्यमंत्री का बयान हैरान करने वाला
जब यह खबर फैली की नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर संशय है तो मुख्यमंत्री से जब पत्रकारों ने सवाल किया तो उन्होंने कहा- विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के दर्जे के मामले में प्रदेश सरकार नियम अनुसार गंभीरता से विचार करेगी। मगर सवाल उठता है कि इसमें गंभीरता से विचार करने जैसी बात ही क्या है? स्पष्ट क्यों नहीं कुछ कहा जा रहा

जब 2003 में बीजेपी को सिर्फ 16 सीटें आई थीं, तब नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल बने थे। ध्यान दें 16 सीटें ही आई थीं बीजेपी की तब, जबकि अभी कांग्रेस की 21 आई हैं। अब जिस कांग्रेस ने मुकेश अग्निहोत्री को अपनी तरफ से विधायक दल का नेता बनना तय किया है, वह सदन की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भी है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष भी उसी से होगा।

खैर, अब नेता प्रतिपक्ष को लेकर ऊहापोह को बढ़ाना कहीं यह तो नहीं दिखाता कि जीत मिलने के जोश में लोकतांत्रिक मूल्य और परंपराएं बीजेपी की प्राथमिकताओं में अब नहीं हैं?