हिमाचल प्रदेश में कई पावर प्रॉजेक्ट लगे हैं और उनसे पैदा हो रही बिजली का पूरा देश फायदा उठा रहा है। मगर बांधों के कारण बहुत से लोगों को जमीन से विस्थापित होना पड़ा है। ऐसा ही किस्सा है बिलासपुर का। आज नए बिलासपुर शहर को बसे 57 साल हो गए हैं। पुराना बिलासपुर और आसपास के कई गांव भाखड़ा बांध से बनी गोविंद सागर झील में समा गए थे।
पिछले साल जिस वक्त प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात के सरदार सरोवर बांध का लोकार्पण किया गया, इस बांध के पानी में डूबने वाले गांवों के लोग प्रदर्शन कर रहे थे। अपनी घर, जमीन, खेत… या यूं कहिए कि अपनी दुनिया को छोड़कर कहीं और बस जाना आसान नहीं होता। करोड़ों का मुआवाज़ा भी इस दर्द को नहीं भर सकता।
हिमाचल में कई बांधों के विस्थापितों का जीवन आज भी पटरी पर नहीं लौट पाया है। In Himachal को भाखड़ा बांध के विस्थापन का दर्द झेल रहे अविनाश ठाकुर नाम के युवक ने चिट्ठी भेजी थी, जिसके अंश हम नीचे दे रहे हैं। इस चिट्ठी को प्रकाशित करते वक्त हम भी भावुक हो गए। आप भी पढ़ें, कितना दर्द है उनकी बातों में:
“9 अगस्त 1961 को जब भाखड़ा बांध में पानी भरना शुरू हुआ और विशाल गोबिंद सागर झील बनी, पूरे बिलासपुर की आंखों में आंसू थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रॉजेक्ट को आधुनिक भारत का मंदिर करार दिया था। मगर दूसरी तरफ लोग दुखी थे, जिन्होंने अपना घर, खेत, मंदिर, मैदान.. सबकुछ डूबते हुए देखा।
लोग खुद को दिलासा दे रहे थे और जुबान पर शब्द थे- चल वो जिंदे नवी दुनिया बसाणी, डुबी गए घर आई गेया पाणी। सब अपना सामान उठाकर नए आशियाने की तलाश में निकल गए। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विस्थापित लोगों को बसाने और सभी सुविधाएं देने का विश्वास दिलाया। कुछ लोगों को हरियाणा के हिसार, सिरसा और फतेहगढ़ में जमीन दी गई। लोगों को मजबूरी में अपनी बसी-बसाई दुनिया छोड़कर दूसरी जगह जाकर बसना पड़ा। देश के लिए बिलासपुर के लोगों ने यह बड़ी कुर्बानी दी है। लगभग 354 गांवों के 52 हजार लोगों को विस्थापित किया गया था। इनमें से कुछ तो हरियाणा चले गए तो कुछ हिमाचल में अन्य जगहों पर बस गए।
हरियाणा में रह रहे भाखड़ा विस्थापितों ने हिमाचल सरकार से अपील की थी कि बिलासपुर से सिरसा के ऐलनाबाद तक सीधी बस सेवा शुरू करे। परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने इसे मंजूर किया और 25 जुलाई 2014 को बस अपने रूट पर चलने लगी। रात को चलने वाली बस बिलासपुर से झंडूता, बरठीं, शाहतलाई, ऊना, चंडीगढ़, पटियाला, टोहाना, फतेहगढ़ और सिरसा होते हुए ऐलनाबाद तक जाती। यह न सिर्फ वहां बसे भाखड़ा विस्थापितों बल्कि अन् लोगों के लिए फायदे की साबित हुई। झंडूता, बरठीं और शाहतलाई की ओर से चंडीगढ़ के लिए एक यही बस सेवा था। यह रूट सफल तो हुआ, मगर विभाग के ढुलमुल रवैये के चलते दो साल के अंदर ही बंद कर दिया गया। परिवहन मंत्री ने दोबारा आश्वासन तो दिया, मगर यह बस सेवा अब तक शुरू नहीं हुई।
भाखड़ा बांध विस्थापितों की भावनाओं से जुड़ा यह रूट बंद होने से हजारों लोग दुखी हैं। क्या हम लोगों को यह अधिकार भी नहीं कि हम हरियाणा से आकर उस जगह का दीदार कर सकें जहां हमारी आत्मा बसती है? यह बस सेवा तो ऐसी थी कि वहां के लोगों को हिमाचल की ठंडक का अहसास दिलाती थी। जब शाम को हरियाणा से यह बस हिमाचल की ओर चलती थी तो विस्थापित लोग सिर्फ इस बस की झलक देखने आया करते थे कि हमारी बस हमारे बिलासपुर की तरफ जा रही है।
अचानक इस बस के बंद हो जाने से लोगों में मायूसी है। पौंग बांध विस्थापितों के लिए तो निगम की पठानकोट-घड़साना और धर्मशाला अनूपगढ़ जैसी सीधी बस सेवाएं हैं तो भाखड़ा विस्थापितों के लिए क्यों नहीं? अब प्रदेश मे बसों की कमी भी नहीं और शायद स्टाफ की भी नहीं। मैं परिवहन मंत्री से अपील करता हूं कि इस बस सेवा को फिर से बहाल किया जाए। यह विस्थापित लोगों को अपने हिमाचल आने के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। कृपया इसे बहाल किया जाए।”
– अविनाश ठाकुर, ग्वालथाई (भाखड़ा बांध), बिलासपुर।