शिमला।। हिमाचल प्रदेश में कुकरमुत्ते की तरह उग आई यूनिवर्सिटीज़ को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं। इनमें से ज्यादातर निजी विश्वविद्यालय उस समय खुले हैं जब प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी। हर कोई पूछ रहा था कि इतनी सारी यूनिवर्सिटीज़ और वह भी चंद जिलों में खोलने का लॉजिक क्या है। इस सवाल के जवाब में धूमल सरकार कहती- हिमाचल को एजुकेशन हब बनाना है और गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाएगा। गुणवत्ता का कितना ध्यान रखा गया, यह मानव भारत यूनिवर्सिटी के मामले में सामने आ गया है। अभी तक की जांच के मुताबिक, इसने 36 हज़ार डिग्रीयां बेची हैं और असल संख्या कहीं अधिक हो सकती है।
इस यूनिवर्सिटी के खुलने और काम करने का किस्सा भी रोचक है। गूगल करने पर आ पाएंगे कि शुरू से ही इस पर सवाल उठ रहे हैं। छात्रों के ऑनलाइन डिस्कशन फोरन में 10 साल पहले तक के ऐसे लिंक मिलते हैं, जिसमें वे यूनिवर्सिटी से मिल रही एम. फिल और पीएचडी की डिग्री को लेकर शंका जाहिर करते हैं। ये मामला हिमाचल विधानसभा तक में उठा था मगर हुआ कुछ नहीं। न तो धूमल सरकार ने कोई कार्रवाई की और न ही वीरभद्र सरकार ने एक्शन लिया। आशंका है कि यह खेल सिर्फ मानव भारती यूनिवर्सिटी में नहीं हुआ, बल्कि और भी कई संस्थान ऐसे हो सकते हैं, जिन्होंने ऐसे ही शिक्षा का धंधा करके फर्जी डिग्रियां बेची हों।
अब सवाल उठ रहे हैं कि जो संस्थान इतने बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा कर सकता है, उसने यूनिवर्सिटी खोलने की इजाजत कैसी हासिल की होगी। हिमाचल के डीजीपी संजय कुंडू ने कहा है कि यूनिवर्सिटी कैसे बनी, इसकी जांच की जाएगी और इसके आधार एक और एफआईआर दर्ज की जा सकती है। आइए देखते हैं, क्या है इस यूनिवर्सिटी का इतिहास-
साल 2008: दो बार खारिज हुए प्रपोजल
राज कुमार राणा नाम के शख्स ने 2006 में मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट का गठन किया। 2006 में राणा ने इस ट्रस्ट के नाम पर सोलन के सुल्तानपुर में 30 बीघा जमीन खरीद ली। यूनिवर्सिटी बनाने के लिए हिमाचल सरकार के पास 2008 में दो बार प्रपोजल आए, मगर सरकार ने मानव भारती ट्रस्ट की फाइनैंशियल और एजुकेशनल बैकग्राउंड न होने के कारण यूनिवर्सिटी खोलने के प्रपोजल को निरस्त कर दिया था।
साल 2009: धूमल सरकार ने दी मंजूरी
इसके बाद ट्रस्ट ने करनाल में चल रहे अपने एक संस्थान के दस्तावेजों के आधार पर दोबारा से आवेदन किया और यूनिवर्सिटी चलाने के लिए एलओआई (लैटर आफ इंटेंट) हासिल कर लिया। फिर, प्रेम कुमार धूमल सरकार ने इसका विधेयक विधानसभा में पेश किया और बीजेपी के बहुमत वाले सदन में यह आराम से पारित हो गया। तो इस तरह 13 अगस्त 2009 को औपचारिक रूप से मंजूरी मिल गई(एक्ट देखें)। कैंपस तैयार नहीं था तो हरियाणा के करनाल से यूनिवर्सिटी अस्थायी तौर पर काम शुरू करने लगी। (ये बात याद रखें, आगे इसका महत्व है)
साल 2010: खुलते ही लगे गंभीर आरोप
3 मार्च 2010 को इस यूनिवर्सिटी को यूजीसी से मान्यता मिल गई। इसे खुले एक साल हुआ नहीं था, कैंपस तैयार था नहीं, स्टाफ पूरा नहीं था, योग्य टीचर नहीं थे और इसने पीएचडी के लिए आवेदन मंगवाना शुरू कर दिए। 12 में से 10 विभागों ने पीएचडी के लिए आवेदन मंगवा लिए जबकि फैकल्टी ही नहीं थी। हर डिपार्टमेंट में 10 सीटों का विज्ञापन निकाला गया था।
सरकार को कोई चिंता नहीं थी, मगर मामला मीडिया में उठ गया। तब यूनिवर्सिटी के चेयमैन राज कुमार राणा से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा- हमने इंटरव्यू लेकर कम से कम 10 टीचर भर्ती किए हैं जो जुलाई में जॉइन करेंगे. जून में पीएचडी के लिए एंट्रेंस टेस्ट होगा। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से ये भी कहा था कि भर्ती किए गए कुछ टीचर छोड़कर चले गए हैं, हालांकि उन्होंने संख्या नहीं बताई थी।
और पार्टियां तो सोई रहीं, सीपीएम ने इस संबंध में तत्कालीन सीएम धूमल को चिट्ठी लिखी और विजिलेंस जांच की मांग की। तब टिकेंदर पंवर ने लिखा था कि जिस यूनिवर्सिटी में मात्र 25 लेक्चरर हैं, वो कैसे इतने छात्रों को पीएचडी के लिए एनरोल कर रही है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी इस संबंध में गलत जानकारियां देकर फ्रॉड कर रही है। मगर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
साल 2012: विधानसभा में उठा फर्जी पीएचडी का मामला
धूमल सरकार अंधाधुंध निजी यूनिवर्सिटीज खोलती रही। शिक्षाविद सवाल उठाने लगे कि ये किया क्या जा रहा है। साल 2012 मई तक सरकार 13 ऐसी यूनिवर्सिटीज को मान्यता दे चुकी थी जिनमें से 11 काम करने लगी थीं। धड़ाधड़ दी जा रही मंजूरी को लेकर सवाल उठे तो मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा- सरकार ने तय किया है कि मात्र 20 ही यूनिवर्सिटीज़ को हिमाचल में मंजूरी दी जाएगी। ऐसा तब कहा गया, जब विधानसभा में धूमल सरकार दो और निजी यूनिवर्सिटीज को खोलने के लिए हिमाचल विधानसभा में विधेयक ले लाई थी। इनमें से एक यूनिवर्सिटी आज जांच का सामना कर रही है, दूसरी की बैंक नीलामी करने वाला है।
बहरहाल, कांग्रेस के दो विधायकों सुखविंदर सुक्खू और हर्षवर्धन चौहान ने सवाल पूछा कि इतने विश्वविद्यालय खोलकर करोगे क्या? सुक्खू ने पहले से मौजूद यूनिवर्सिटीज पर नकेल कसने को कहा। वहीं हर्षवर्धन ने आरोप लगाया कि मानव भारती यूनिवर्सिटी पीएचडी की डिग्रियां बेच रही है और मैट्रिक करने वालों को भी दाखिला दे रही है। इस पर मुख्यमंत्री ने उन्हें टोककर कहा- सरकार शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रकने के लिए कई कदम उठा रही है और रेग्युलेटरी बॉडी को शक्तियां दे रही है। उन्होंने कहा कि नियम तोड़ रही यूनिवर्सिटीज के ऊपर कार्रवाई होगी। मगर हुआ कुछ नहीं और उनका कार्यकाल खत्म हो गया।
2012-2017: अंधाधुंध घोषणाओं का साल
जो कांग्रेसी नेता विपक्ष में रहते हुए शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चिंतित थे, वे 2012 के चुनावों में सत्ता में आए गए। लेकिन वे भूल गए कि चुनावों से पहले वे क्या आरोप लगा रहे थे। शिक्षा विभाग मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने पास रखा और सीपीएस बना दिया नीरज भारती को। उनका पूरा फोकस बिना स्टाफ, बिना बजट की चिंता किए हर कहीं प्राइमरी स्कूल खोलने और एक कमरे के प्राइमरी स्कूल को मिडल स्कूल बनाने, मिडल स्कूल को हाई स्कूल और हाई स्कूल को सीनियर सेकेंडरी स्कूल में अपग्रेड करने में लगा रहा। इस बीच मानव भारती यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थान क्या कर रहे हैं क्या नहीं, किसी ने नहीं पूछा।
2020-21: बड़े खेल का पर्दाफाश
पिछले साल हरियाणा की ममता नाम की एक महिला ने आरोप लगाया कि उसके साथ मानव भारती यूनिवर्सिटी ने धोखा करके फर्जी डिग्री उसे दी है। दरअसल ममता मानव भारती यूनिवर्सिटी की एमए साइकॉलजी डिग्री के आधार पर हरियाणा सरकार में असिस्टेंट एंपलॉयमेट ऑफिसर की पोस्ट के लिए आवेदन किया और चुन ली गई। इस बीच ममता की अपनी दीदी-जाजा से अनबन हो गई। उसके जीजा ने हरियाणा सरकार को लगातार खत लिखे कि ममता की डिग्री फर्जी है और यूनिवर्सिटी के पास इस डिग्री को अवॉर्ड करने की पात्रता नहीं है।
हरियाणा सरकार ने जब डिग्री वेरिफाई करवाई तो यूनिवर्सिटी ने कहा कि ये डिग्री सही है। बाद में ममता से ऑरिजनल डिग्री मांगी गई तो उसने कहा कि गुम हो गई है। मामला बढ़ा तो ममता ने मार्च 2020 में सोलन में एफआईआर करवाई और मानव भारती यूनिवर्सिटी पर धोखा देने का आरोप लगाया। उसका कहना था कि उसने एमए साइकॉलजी के लिए मानव भारती यूनिवर्सिटी के करनाल वाले स्टडी सेंटर से पढ़ाई की थी क्योंकि उसे कहा गया था कि अभी हिमाचल वाला कैंपस तैयार नहीं है। उसने शिकायत दी कि उसने दो साल का कोर्स किया और करनाल में ही उसे डिग्री दे दी गई। बाद में उसने जून 2012 में डिग्री वेरिफाई भी करवाई और इस डिग्री के आधार पर उसने नौकरी हासिल की।
बकौल ममता, जब उसकी डिग्री गुम हो गई तो वह फिर से यूनिवर्सिटी गई और वहां से डुप्लिकेट डिग्री इशू करवाई। एफआईआऱ में ममता ने शिकायत दर्ज करवाई है कि यूनिवर्सिटी ने उसे पहले भी फर्जी डिग्री दी थी और बाद में भी फर्जी डिग्री दी। हालांकि, हरियाणा सरकार ने पाया है कि ममता के पास कहीं और से ली गई बी.एड. की भी फर्डी डिग्री है। लेकिन इस बीच मानव भारती यूनिवर्सिटी में चल रहे खेल की जांच शुरू हो चुकी थी। जांच बढ़ी तो मालूम हुआ कि मामला कितना बड़ा है। ऐसा अनुमान है कि फर्जी डिग्रियों के कारोबार से मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष राजकुमार राणा ने सिर्फ 11 साल में 440 करोड़ का साम्राज्य खड़ा कर लिया है और अपने परिजनों को ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट कर दिया है। हिमाचल पुलिस के अलावा, ईडी भी यूनिवर्सिटी और इसके मालिक की मनी लॉन्डरिंग को लेकर जांच कर रहा है।
जवाबदेही किसकी
ये सब होता रहा और किसी को पता ही नहीं चला? इस खेल में आम और ईमानदार बच्चों के भविष्य के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है, क्या उसकी जिम्मेदारी नेताओं और अधिकारियों की नहीं बनती है? जब शुरू में ही आरोप लग रहे थे तो आखिर किस आधार पर जांच नहीं की गई? क्या इन करप्ट लोगों ने सत्ता में बैठे लोगों और अधिकारियों को भी कुछ खिलाया-पिलाया था? जरूरी है कि पूरे मामले की जांच हो कि कहीं पैसे लेकर धड़ाधड़ संस्थान तो नहीं खोले गए। साथ ही, मौजूदा सरकार जागे और अभी जो निजी विश्वविद्यालय मौजूद हैं, उनपर भी नजर रखे कि वे भी ऐसा ही खेल तो नही ंकर रहे। क्योंकि हिमाचल की कुछ अन्य यूनिवर्सिटीज पर भी नियमों का पालन न करने का आरोप लगा है। कुछ पर डिग्री बेचने की जांच चल रही है तो कुछ नियमों का उल्लंघन कर वीसी और अन्य स्टाफ की भर्ती के आरोप लगे हैं।