शिमला।। शिमला में कंडा जेल से तीन कैदियों के भागने का मसला जेल की सुरक्षा पर कई सवाल खड़े करता है। पूरे प्रदेश के मीडिया में सवाल उठ रहे हैं कि क्या जेल में मौजूद संतरियं ने किसी ने भागते हुए नहीं देखा? आखिर कैदी कैसे ब्लेड से सरिया काटकर फरार हो गए? जिस बैरक में कथित तौर पर 28 कैदी थे, उन कैदियों को कुछ पता ही नहीं चला?
पुलिस की थ्योरी यकीन से परे
पुलिस का कहना है कि जिस वक्त ये विचाराधीन कैदी भागे, उस समय बाकी कैदी सो रहे थे। अमर उजाला अखबार के मुताबिक कुछ कैदियों को तो पेठा भी खिलाया गया था, मगर इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। क्या सरिया काटने पर जो आवाज आती है, वह किसी को सुनाई ही नहीं दी? पुलिस का कहना है कि सरिया काटने से पहले उसमें साबुन लगा दिया था। यह अजीब तर्क है। ऊपर से जेल में 13 गार्ड तैनात थे। जेल की दीवार 16 फुट ऊंची है, बावजूद उसके कंबल समेत कैदी निकल गए? पुलिस के मुताबिक कंबल को रस्सी के तौर पर इस्तेमाल किया गया।
सीसीटीवी तक नहीं जेल में
हैरानी की बात यह है कि इस जेल में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं हैं। ऐसे में तमाम बातें बता रही हैं कि कहीं न कहीं पुलिस की लापरवाही बड़े स्तर पर हुई है। कुछ अख़बारों में तो मिलीभगत की आशंका भी जताई जा रही है।
अप्रैल में खुली थी जेल की व्यवस्था की पोल
पुलिस का रवैया ऐसा रहता है कि आप कल्पना नहीं कर सकते। इसी जेल में संतरी रहे भानु पराशर ने अप्रैल में एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें दो कैदी फेसबुक इस्तेमाल करते नजर आ रहे थे(पूरी खबर पढ़ें)। इन कैदियों को अफसरों के कमरे में यह हरकत करते देखा गया था। जब वीडियो साफ दिखा रहा था कि कैदी फेसबुक ही इस्तेमाल कर रहे थे, जेल प्रशासन का कहना था कि उन्हें जेल प्रशासन की वेबसाइट को अपडेट करने के लिए काम दिया गया था।
प्रशासन के मुताबिक कैदियों के सुधार के लिए जेल में कई कार्यक्रम चलते हैं, और उसी के तहत अच्छे आचरण वाले पढ़े-लिखे कैदियों के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है। मगर जेल प्रशासन यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि फेसबुक इस्तेमाल की जा रही थी। जबकि वीडियो में साफ दिख रहा था कि वे प्रोफाइल पिक्चर लगा रहे थे। उल्टा भानु पराशर नाम के संतरी को अनुशासनहीन बताकर सस्पेंड कर दिया गया था। यह कहा गया कि वह जहां भी जाता है, ऐसे ही सवाल खड़े करके बखेड़ा खड़ा करता है। शायद ईमानदार पुलिसकर्मियों का आवाज उठाना विभाग की नजर में अनुशासनहीनता है।
आज जब पुलिस विभाग ने आनन-फानन में कार्रवाई करके जेल से कैदियों के भागने पर कुछ पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया, मगर जब एक संतरी ने जेल के अधिकारियों के रवैये को और यहां के माहौल को एक्सपोज़ किया था, तब वे चुप थे। उसी वक्त कार्रवाई की गई होती तो आज ऐसे हालात न हो। और अब पुलिस की कैदियों के भागने को लेकर जो थ्योरी है, वह उसी तरह हज़म नहीं हो पा रही, जिस तरह से गुड़िया केस में जेल के अंदर नेपाली मूल के संदिग्ध सूरज की मौत को लेकर दी गई थ्योरी किसी के गले नहीं उतर रही थी।