देवता के नाम पर खुल रही दुकानों पर सरकार मूकदर्शक क्यों?

प्रतीकात्मक तस्वीर

यतिन पंडित।। पिछले दिनों सरकाघाट में हुई घटना से हमारे धर्म में व्याप्त अंधविश्वास का जिन्न फिर बाहर आ गया। लोगों ने जिस प्रकार अमानवीयता का परिचय देते हुए बुज़ुर्ग के साथ हैवानियत की हदें पार कीं, उसे किसी भी तरह न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। यह देखकर हम सोचने पर विवश हो जाते हैं कि आख़िर इस प्रकार की घटनाएं समाज में हो क्यों रही हैं? धर्मांधता का यह खेल कब बंद होगा?

विशेष लेख का पहला भाग पढ़ें- हिमाचल के देवता क्या गूर के माध्यम से ऐसे आदेश दे सकते हैं?

अक़्सर देखने में आता है कि देवी देवताओं की भूमि हिमाचल में कुछ लोगों ने लोगों की आस्था को कमाई का ज़रिया बनाकर रख दिया है। स्थान-स्थान पर नित नए देवता प्रकट कर देना और उनके प्रमुख सेवादार बनकर वहां देवखेल का आयोजन करवाना इस पहाड़ी राज्य में एक शगल हो चुका है। लोगों के इलाज और उनके जीवन को सुखी बनाने के नाम पर इस प्रकार के मोहल्ला क्लिनिक शुरु किए जाते हैं। लोग अपनी आस्थाओं के कारण इन मोहल्ला क्लीनिकों के चक्रव्यूह में उलझते जाते हैं और ये लोग जादू टोने की नाम पर लोगों में डर पैदा करके अपना कारोबार चलाते रहते हैं।

जादू-टोने का डर दिखाते हैं ये फर्जी देव क्लीनिक वाले

देवता के नाम पर दुकान
अब कुछ साधन सम्पन्न लोगों ने अपने निजी देवरथ बनाकर अपने इस पाखंड के कारोबार को विस्तार देने का काम भी शुरू कर दिया है। सबसे पहले किसी भी प्राचीन देवता या किसी नए देवता का कथानक सम्बंधित स्थान के साथ गढ़ा जाता है। फिर जो व्यक्ति इस पाखंड का कर्णधार होता है वह देवता का चेला या प्रमुख बनकर इस कहानी को आगे बुनता जाता है। धीरे-धीरे लोग जुड़ते जाते हैं और उस स्थान पर लोगों के ही पैसों से एक मंदिर का निर्माण करवा दिया जाता है।

यह काम वर्षों से चला आ रहा है। पर हैरानी की बात है कि ना तो समाज का जागरूक तबका आजतक इसके विरुद्ध कोई आवाज़ उठाने की ज़हमत उठा पाया, ना ही सरकार ने कभी इस प्रकार के नकली देव स्थलों पर किसी प्रकार का अंकुश लागाने की नीयत ही दिखाई। पिछली सरकार के कार्यकाल में एक बार पूर्व मुख्यमंत्री ने इस मामले में थोड़ी सक्रियता दिखाकर नए देवताओं के विषय में संज्ञान लिया था। परंतु उसके पश्चात वह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

अगर बात करें तो कुल्लू ज़िला में भी इस प्रकार के मोहल्ला क्लीनिकों की भरमार हो चुकी है। हर कोने में नए-नए देवता प्रकट हो रहे हैं और लोगों में जादू-टोने का भय बनाकर , राक्षसों के आने की बात से लोगों के मन में संशय उत्पन्न करके ये लोग अपने स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं।

देखने में आता है कि इस प्रकार के स्थल जो किसी देव शक्ति के नाम पर खोले जाते हैं, वहां सुख की आस लेकर जाने वाले लोग अमूमन अपने दुखों से छुटकारा नहीं पा पाते। इसका सामान्य सा कारण होता है कि वे अपने जीवन को सरल बनाने के लिए पुरुषार्थ के बजाय किसी चमत्कार के भरोसे बैठे रहते हैं। जबकि यदि वे इन मोहल्ला क्लीनिकों में समय गंवाने के बजाय स्वयं को प्रयत्नशील बनाएं तो अपने आप उनके दुःखों में कमी आ जाएगी।

प्राचीन है हिमाचल की देव परंपरा

फूट डालने का काम
ये मोहल्ला क्लिनिक चलाने वाले लोग एक ओर अपना तो आर्थिक फ़ायदा उठा लेते हैं, परंतु दूसरी ओर ये समाज में अराजकता और विद्वेष फैलाकर सामाजिक ढांचे को हिलाने का भी काम करते हैं। अक़्सर इन जगहों पर लोगों के मन में यह वह डाला जाता है कि तुम पर किसी ने किया कराया है। इस मामले में अमूमन किसी जान पहचान वाले को या किसी नज़दीकी रिश्तेदार को जादू करने वाला बताकर आपस में विद्वेष पैदा कर दिया जाता है। फिर समस्या के इलाज के नामपर वर्षों वर्ष लूट का खेल चलाया जाता है, जिसमे लोगों को देवता के नाम पर डराकर उनसे पैसे बटोरे जाते हैं।

सोचने वाली बात है कि आजतक इस प्रकार के फर्ज़ी मोहल्ला क्लीनिकों के चक्कर में ना जाने कितने घरों में आपसी रंजिशें पैदा हुई होंगी? और एक समाज के रूप में हम कितने जागरूक हैं, इसी बात से पता चल जाता है।

सरकारें मूकदर्शक
यदि बात करें तो इस विषय को लेकर हमारी सरकारें भी निरंतर उदासीन रही हैं। कुल्लू दशहरा में साल-दर-साल नए देवताओं की बढ़ती आमद इस बात का प्रमाण हैं। इन नए देवताओं की देखा-देखी दूसरे लोग भी जो एक देवरथ बनाने में सक्षम हैं, या किसी तरह पैसे इकट्ठे कर बना लेते हैं, वे इस तरह के प्रपंचों को और अधिक बढ़ावा देते हैं।

इन मोहल्ला क्लीनिकों की इस बढ़ती भरमार के कारण एक ओर जहां लोगों की आस्थाओं से खिलवाड़ हो रहा है वहीं दूसरी ओर हमारी वास्तविक देव संस्कृति पर भी आए दिन लांछन लग रहे हैं। लोग भी तंत्र-मंत्र की अचम्भित और रहस्यमयी दुनिया के छलावे में आकर, श्रद्धा और आस्था की तिलांजलि देकर पाखंडियों के चक्कर में अपना जीवन बर्बाद करते जा रहे हैं।

ऐसे ही पाखंड का परिणाम पिछले कल एक वीडियो के रूप में हमारे सामने आ चुका है। बेशक इस मामले में अब कारवाई हो रही है, पर सवाल यह है कि अपने उपेक्षित रवैय्ये के कारण क्या हम लोग भविष्य में ऐसी और घटनाएं घटित होने का इंतज़ार करते रहेंगे? हम, हमारा समाज और सरकार इस विषय पर कब संज्ञान लेना शुरू करेंगे? इन मोहल्ला क्लीनिकों का विरोध करना कब आरम्भ करेंगे?

कुल्लू दशहरा

देवता डराते नहीं
ध्यान रखिये, देवी देवता डर से नहीं समर्पण से पूजे जाते हैं। यदि कोई छोटी शक्तियां हैं भी, जिनके विषय में आपको संदेह है, उनका निराकरण भी पुरातन स्थलों पर आपकी अटूट आस्था होने से स्वतः हो जाता है। देवी देवताओं के नाम पर चलने वाले ऐसे मोहल्ला क्लीनिकों के प्रति जागरूकता तभी उत्पन्न होगी जब आपके मन में देवी देवताओं के प्रति डर समाप्त हो जाएगा। पहले अपने मन के डर को ख़त्म कीजिये। उसके बाद इनका धन्धा अपने आप चौपट होना शुरू हो जाएगा। जब तक आपका डर, आपका संदेह, आपके मन का द्वेष आप पर हावी है, ये लोग ऐसे ही उसका फायदा उठाते रहेंगे।

सरकार को भी इस विषय पर कड़ा संज्ञान लेकर पुराने देवताओं के नाम पर चल रहे ऐसे मोहल्ला क्लीनिकों को चिन्हित कर उन्हें बंद करने की आवश्यकता है। देवताओं का पंजीकरण करके केवल उनके प्राचीन स्थान को ही मान्यता दी जाए, तब लोगों के भी इस विषय को लेकर कई भ्रम दूर होंगे।

सबसे बड़ी बात, हमे स्वयं इस विषय पर जागरूक होना होगा, अपनो को जागरूक करना होगा। शुरुआत ख़ुद से ही होगी, तभी हमारी संस्कृति का मौलिक स्वरूप बचा रहेगा। वह मौलिक स्वरूप जिसमे देव नीतियां प्रेम पर आपसी आधारित हैं नाकि किसी प्रकार के टोने-टोटके या डर पर।

हिमाचल की देव परंपरा और इसके नाम पर कुछ लोगों द्वारा अपनी दुकान चलाए जाने से फैले भ्रम को लेकर दो हिस्सों के लेख का यह पहला दूसरा भाग है. पहले हिस्से के लिए नीचे क्लिक करें-

हिमाचल के देवता क्या गूर के माध्यम से ऐसे आदेश दे सकते हैं?

(लेखक यतिन पंडित कुल्लू से हैं और हिमाचल प्रदेश की संस्कृति व देव परंपराओं के इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं।)

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