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हिमाचल में भी होटल पॉलिटिक्स, फूट के डर से सोलन नगर निगम पार्षदों की बाड़बंदी

शिमला। हिमाचल में भी होटल पॉलिटिक्स शुरू हो गई है। जी हां, आपने कर्नाटक, राजस्थान, हरियाणा में देखा होगा कि सरकार बचाने के लिए कैसे राजनीतिक दलों द्वारा अपने ही विधायकों को होटल में कैद कर लिया जाता है, लेकिन यह होटल पोलीटिक्स अब हिमाचल में भी एंटर कर चुकी है। बेशक हिमाचल में नगर निगम के चुनाव पार्टी सिंंबल पर हुए हैं, लेकिन अपने पार्षदों की टूट के डर से कांग्रेस ने सोलन नगर निगम के नवनिर्वाचित पार्षदोंं को होटल में ठहराया है।

दरअसल, हिमाचल में इस बार नगर निगम के चुनाव पार्टी सिंबल पर हुए हैं। निगर निगम के नतीजों के बाद मंडी, धर्मशाला और पालमपुर में मेयर और डिप्टी मेयर की ताजपोशी भी हो गई है। मंंडी नगर निगम में साफ तौर पर बीजेपी ने बहुमत हासिल किया था। यहां से दीपाली जसवाल को मेयर और वीरेंद्र भट्ट को डिप्टी मेयर की कुर्सी मिली है। धर्मशाला नगर निगम में 17 वार्ड में बीजेपी के 8 पार्षद जीते थे। यहां बहुमत से बीजेपी मात्र एक नंबर पीछे थी।

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निर्दलियों का साथ पाकर यहां भी बीजेपी ने बिना किसी दिक्कत के अपने मेयर और डिप्टी मेयर बनवा लिए। धर्मशाला में महापौर पद पर ओंकार नैहरिया तो उपमहापौर पद पर सर्वचंद गलोटिया की ताजपोशी हुई है। इसके अलावा पालमपुर नगर निगम में कांग्रेस 11 वार्ड जीतकर एकतरफा जीती थी। यहां से कांग्रेस की पूनम बाली मेयर और अनीश नाग डिप्टी मेयर चुने गए हैं। यहां तक तो ठीक है, लेकिन असल सुर्खियां तो सोलन नगर निगम बना रहा है।

क्या हैं सोलन के समीकरण

वैसे तो सोलन नगर निगम में कांग्रेस के 9 पार्षद जीते हैं और बहुमत के लिए भी 9 पार्षदों का ही आंकड़ा था, लेकिन यहां अब कांग्रेस को अपने ही पार्षदों में टूट का डर है। यही वजह है कि जीत के बाद से ही सभी पार्षदों को कांग्रेस द्वारा एकसाथ निगरानी में रखा जा रहा है। दरअसल पार्टी सिंबल से चुनाव होने पर अब कोई भी पार्षद ऐसे ही किसी दूसरे दल को समर्थन नहीं दे सकता।

क्यों सहमी है कांग्रेस

ऐसा करने पर उसकी पार्षद की सदस्यता रद्द हो सकती है। यदि दूसरे दल में शामिल भी होना है तब भी कांग्रेस के कम से कम तीन पार्षदों को एकसाथ बीजेपी में जाना होगा। बस इसी डर से कांग्रेस सहमी हुई है। बीते रोज सभी नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर चुन लिए गए, लेकिन सोलन नगर निगम में तो बीजेपी और एक निर्दलीय पार्षद शपथ के लिए भी नहीं पहुंचे। अब सोलन नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर का फैसला 16 को होगा।

तो फिर पार्टी सिंबल और विचारधारा का क्या मतलब

दरअसल, यह पहला मौका नहीं जब होटल पॉलिटिक्स सुर्खियों में आई हो। हां, यह जरूर है कि हिमाचल में इस कल्चर की आदत नहीं, लेकिन जिस तरह से हालात बन रहे हैं हिमाचल में भी आने वाले दिनों में यह चलन शुरू होने वाला है। अब सवाल उठता है कि आखिर फिर पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने का मतलब ही क्या बचता है और राजनीतिक दल किस बात की विचारधारा की बात करते हैं। जब दूसरा दल किसी पार्षद को हलके प्रलोभन देकर खरीद सकता है तो फिर किसी विचारधार की बात पॉलिटिकल पार्टियां करती हैं। खैर, वैसे बीजेपी विपक्षी खेमे में टूट डालने में कितनी माहिर है इसके बीते कुछ सालों में काफी उदाहरण हैं।

 

क्या ये हैं नगर निगम चुनावों में कांग्रेस की ‘जीत’ के सूत्रधार

 

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