इन हिमाचल डेस्क।। राजस्थान के छोटे से गांव से शुरू हुई महिलाओं के बाल अपने आप कटने की घटना पूरे देश में फैल गई है। अब हिमाचल में भी सोलन और सिरमौर में दो लड़कियों के बाल कटने का मामला सामने आया है। अंधविश्वास की हद देखिए, लोगों को लगता है कि कोई भूत, चुड़ैल या डायन ऐसा कर रही है। कुछ लोगों ने आगरा में एक बुजुर्ग महिला को चोटी काटने के शक में पीट-पीटकर मार डाला। अब तो पुरुषों के बाल भी कटने लगे हैं।
आखिर क्या है बाल कटने का रहस्य?
महिलाओं के बाल अपने आप कट जाने की घटनाएं नई नहीं हैं। सदियों से ऐसे मामले सामने आते रहे हैं। गांव में माना जाता रहा है कि भूत का साया होने पर घर में अपने आप आग लग जाती है, बाल कट जाते हैं या फिर चीजें गुम होने लगती हैं। ऐसे कई मामलों में पहले ही मनोचिकित्सक पाते रहे हैं कि ये घटनाएं कि भूत-प्रेत या दैवीय शक्ति की वजह से नहीं, बल्कि परिवार के ही किसी शख्स या फिर बाल कटने का दावा करने वाले शख्स की ही खुराफात होती है।
यह बात अलग है कि कभी ऐसी हरकतें जान-बूझकर की जाती हैं तो कभी मानसिक स्वास्थ्य ठीक न होने की वजह से। ऐसा काम करने वालों को पता नहीं चलता कि सब-कॉन्शियस माइंड यानी अवचेतन मन की वजह से कब वे ऐसा कर बैठते हैं। यह ठीक में नींद में चलने जैसी समस्या की वजह से है जिसमें लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे नींद में चलते हुए कहां पहुंच गए। इसलिए खुद अपने या दूसरों के बाल मानसिक समस्या की वजह से काटने वालों पता भी नहीं चलता कि उन्होंने क्या कर दिया है।
मगर देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें कैसे आने लगीं?
मास मीडिया यानी जनता तक पहुंचने वाले मीडिया, जैसे कि अखबार और टीवी का हम सभी पर गहरा जीवन है। हमारे समाज में बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनकी मेंटल हेल्थ या मानसिक स्वास्थ्य दुरुस्त नहीं होता। मगर जागरूकता के अभाव और समाज में ऐसे लोगों को गलत नजर से देखने की वजह से पैदा होने वाली शर्म की वजह से लोग या तो मनोचिकित्सक की मदद नहीं लेते या फिर उन्हें पता ही नहीं होता कि उनके साथ क्या गलत है। ऐसे में विभिन्न वजह से डिप्रेशन या अन्य मानसिक दिक्कतों से जूझ रहे लोग जल्दी से अफवाहों, ख़ासकर मास हिस्टीरिया की चपेट में आकर वही करने लगते हैं, जिससे उन्हें डर लगता है या जो बात उनके मन में बैठ जाती है।
क्या है मास हिस्टीरिया?
आपने विभिन्न धर्मों के धार्मिक आयोजनों में देखा होगा कि शुरू में एक महिला या पुरुष उछल-कूद मचाकर यह दिखाता है कि उसके अंदर कोई दैवीय शक्ति आ गई है। कुछ जगहों पर इसे माता आना कहा जाता है और हिमाचल में खेल आना। कई जगहों पर इसे भूत का आना भी कहा जाता है। इसके बाद भीड़ से बहुत से लोग उसी तरह का व्यवहार करने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे मास हिस्टीरिया की चपेट में आ गए होते हैं। कुछ लोग धार्मिक आधार पर दूसरों को ठगने के लिए मास हिस्टीरिया को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं
आपने सुना होगा कि फ्लां जगह पर स्कूल की बच्चियां एक के बाद एक चीखकर बेहोश होने लगीं। कई बार किसी खास जगह पर कुछ लोग अजीब हरकतें करने लगते हैं। इसके बाद लोग अक्सर ओझाओं और तांत्रिकों की मदद लेने लगते हैं मगर उन्हें पता होना चाहिए कि ऐसा करने से समस्या और खराब हो सकती है। मन में डर और गहरा बैठ सकता है। ऐसा ही मामला बिलासपुर में हुआ था और उस वक्त भी In Himachal ने लोगों को वैज्ञानिक ढंग से सोचने के लिए कहा था। (यहां क्लिक करके पढ़ें)
सामाजिक और मनोविज्ञान में इसे ग्रुप हिस्टीरिया या सामूहिक उन्माद कहते हैं। इसमें बहुत सारे लोग एक साथ भ्रम के शिकार हो जाते हैं। अफवाहों की वजह से होने वाले डर या उत्तेजना की वजह से उनका व्यवहार एक जैसा हो जाता है। दुनिया भर के कई देशों में ऐसे उदाहरण हैं जहां पर कहीं लोगों को लगने लगा कि उनके ऊपर शैतान आ गया है तो कहीं लोगों को लगने लगा कि प्रभु की कृपा उनके ऊपर हो गई है। ऐसे उदाहरण पढ़ने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं।
खास बात यह है कि अफवाहें और डर जितना ज्यादा फैलता है, हिस्टीरिया उतना ही बढ़ता जाता है। यह ठीक कुछ सालों पहले दिल्ली के मंकी मैन जैसा है जहां लोगों को लगता था कि मंकी मैन उनपर हमला कर रहा है। कुछ लोग असली बंदर को देखकर भागने लगे और गिरकर जख्मी हो गए तो कुछ अन्य आदमियों को समझकर भागकर जख्मी हो गए। बाद में मामला कुछ नहीं निकला।
जिस तरह से दिल्ली के मंकी मैन की अफवाह का फायदा शरारती तत्वों ने भी उठाया, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चोटी काटने की कुछ घटनाओं में मास हिस्टीरिया के अलावा शरारती तत्वों, जो पीड़ित के करीबी ही होंगे, का भी हाथ हो। साथ ही बच्चों की शैतानी भी हो सकती है जो अपने बाल छोटे करवाना चाहते हों मगर घर वाले उसकी इजाजत न देते हों। ऐसे में उनके लिए सही मौका है खुद बाल काटने का।
मीडिया का व्यवहार भी है जिम्मेदार
सनसनी के इस दौर में मीडिया कुछ भी अफवाह बिना जांच किए फैला देता है। भले ही वह नकली चावल, अंडे वगैरह की अफवाह हो या फिर नागिन के बार-बार डसने की। कई टीवी चैनल और अखबार ऐसी खबरें चलाते रहे हैं कि उसे 19 बार डस चुकी है नागिन, कुछ देर में उतर जाता है जहर। हिमाचल में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था। मगर मीडिया कॉमन सेंस का इस्तेमाल नहीं करता कि अगर सांप एक बार डसे तो पीड़ित मरता क्यों नहीं और फिर बार-बार उसी को क्यों डसता है। और तो और मीडिया वाले ये भी कहते हैं कि सांप उसी शख्स को दिखता है जिसे काटता है।
इसका साफ मतलब है कि पीड़ित को सांप नहीं काट रहा बल्कि वह वहम का शिकार है और वह खुद को नुकसान पहुंचाता है और मनगढ़ंत स्टोरी सुनाता है। यह उसका अपना वहम है।(इस खबर को यहां क्लिक करके पढ़ें) वहीं अगर मीडिया 10 दिनों तक देश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसे ही मानसिक रोगियों की कहानियां लगातार छापे तो पूरे देश में अचानक ऐसे मामलों की बाढ़ आ जाएगी। यह मास हिस्टीरिया बन जाएगा। अफसोस है कि कोई भी मीडिया आउटलेट जिम्मेदारी से इन घटनाओं की वैज्ञानिक वजहों पर बात नहीं कर रहा। मगर In Himachal हमेशा से अपने पाठकों को सूचना और मनोरंजन के साथ शिक्षित भी करने में यकीन रखता है।
क्या करना चाहिए?
बहरहाल, पहले तो यह मान लें कि चोटी काटने की घटनाएं मानव जनित हैं, न कि भूत प्रेत जनित। इसलिए वहम या डर को अपने ऊपर हावी न होने दें और अपने परिवार के सदस्यों को भी इस बारे में बताएं। और अगर किसी परिचित के यहां चोटी काटने की घटना होती है तो पहले देखें कि यह दावा करने वाले शख्य का व्यवहार कुछ दिनों से थोड़ा अलग तो नहीं है। या परिवार में किसी का व्यवहार अलग तो नहीं है। पुलिस के बजाय उसे मनोचिकित्सक के पास जरूर ले जाएं क्योंकि उस शख्स को मदद की जरूरत है। यह शर्म का मामला नहीं, बल्कि स्वास्थ्य का मामला है। इसे प्रतिष्ठा का विषय न बनाएं। मानसिक स्वास्थ्य जरूरी है। ठीक उसी तरह जैसे पेट या सिर में होने वाली समस्या को ठीक करना जरूरी है। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हम दूसरों पर टिप्पणियां न करें और इसे गंभीरता से लें।
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(विभिन्न और मनोविज्ञानियों से बातचीत पर आधारित)