शिमला।। आरुषि तलवार हत्याकांड को अगर देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरुषि और हेमराज हत्याकांड में तलवार दंपती को बरी कर दिया। यानी पूरा मामला फिर वहीं पहुंच गया, जहां से यह चल था। नौ साल बाद नतीजा सिफर।
पुलिस ने दी थी यह थ्योरी
आज से नौ साल पहले 15-16 मई, 2008 की रात को नोएडा के जलवायु विहार के डॉक्टर राजेश तलवार और नुपुर तलवार की बेटी आरुषि की हत्या हो गई। पुलिस ने जांच की तो शक हेमराज पर गया। उस नौकर पर जो गायब था। मगर उसका शव छत से मिला तो मामला उलझ गया। डीजीपी बृजलाल ने हत्याकांड को सुलझाने का दावा करते हुए कहा कि डॉक्टर तलवार और उनकी एक फैमिली फ्रेंड में संबंध थे और इसकी जानकारी आरुषि को थी। इस दौरान वह नौकर हेमराज से प्रगाढ़ संबंध में आ गई और यह बात तलवार को रास नहीं आई। उसने पहले हेमराज की हत्या की और फिर आरुषि की।
सीबीआई के पास पहुंचा मामला
पुलिस की थ्योरी पर सवाल उठे तो मायावती सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को दे दी। सीबीआई ने मामले की जांच के दौरान घरेलू नौकरों पर शक जाहिर की। सीबीआई ने कहा कि वारदात को खुखरी जैसे हथियार से अंजाम दिया गया। फिर तलवार के नौकर कृष्णा से पूछताछ हुई और एक महीने बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। फिर सीबीआई ने एक के बाद एक कुछ और नौकर गिरफ्तार किए। इनके साइंटिफिक टेस्ट के बाद सीबीआई ने दावा किया हत्याकांड में नौकरों का हाथ है, न कि तलवार दंपति का। सीबीआई सिर्फ साइंटिफिक सबूतों की बात करती रही मगर उसे अन्य सबूत नहीं मिले। हथियार भी बरामद नहीं हुआ। ऐसे में नौकरों को जमानत मिल गई।
नौकरों के बाद तलवार दंपती पर शक
सीबीआई ने बाद में रुख बदला औऱ कहा कि परिस्थितिजन्य सबूत ऐसा इशारा करते हैं मगर अन्य सबूत उनके खिलाफ नहीं जुड़ते। ऐसे में सीबीआई ने स्पेशल कोर्ट के सामने क्लोजर रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि मामले को बंद कर दिया जाए। मगर कोर्ट ने कहा कि जो तथ्य आपने पेश किए हैं, वे काफी हैं। तलवार दंपति को समन जारी हुआ। अदालत ने तलवार दंपती को आरुषि और हेमराज की हत्या में उम्रकैद की सजा सुनाई। तलवार दंपती ने हाई कोर्ट में चुनौती दी और फिर हाई कोर्ट ने बुधवार को दोनों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि परिस्थितियों और रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्यों के मुताबिक तलवार दंपती को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
गुड़िया केस में सीबीआई हवा में मार रही तीर
सीबीआई ने आरुषि केस में जिन साइंटिफिक सबूतों (नार्को आदि) के आधार पर सबसे पहले नौकरों पर शक जताया था, उनके आधार पर सजा नहीं हो सकती। वे जांच को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं मगर सजा दिलाने में मान्य नहीं होते। उनकी मदद जांच को सही दिशा दिलाने के लिए ली जाती है। ऐसे में गुड़िया केस में भी सीबीआई हाई कोर्ट में बार-बार यही कर रही है कि उसकी जांच साइंटिफिक सबूतों पर आधारित है। मगर जैसा कि आरुषि केस में इन साइंटिफिक सबूतों की मदद से सीबीआई नौकरों के खिलाफ कुछ नहीं ढूंढ पाई थी, आशंका है कि कहीं वैसा ही गुड़िया केस में भी न हो।
वैसे भी सीबीआई के पास ऐसे कई केस है, जिनकी जांच कई सालों से चल रही है और नतीजा निकल नहीं रहा। न तो सीबीआई क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर रही है न सबूत पेश कर रही है न मामले को हल करने का दावा कर रही है।