इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 9 नवंबर को हुआ था और नतीजे करीब 40 दिन बाद 18 दिसंबर को आएंगे। वोटिंग और रिजल्ट में इतना गैप देने के पीछे चुनाव आयोग का तर्क था कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि हिमाचल के नतीजे गुजरात विधानसभा चुनाव पर असर न डाल सकें। यानी हिमाचल के नतीजों से गुजरात के मतदाता प्रभावित होकर अपनी राय बनाकर वोट न करें।
एक तरफ तो चुनाव आयोग निष्पक्षता के लिए इतना चिंतित दिखाई देता है, मगर इसकी लापरवाही कहें या न जाने क्या, हिमाचल में चुनाव के नतीजे पूरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं। लोकतंत्र में एक-एक वोट अहम होता है और कई बार तो जीत-हार का फैसला बहुत कम वोटों से होता है। इस अंतर में पोस्टल बैलट अहम भूमिका निभाते हैं। हिमाचल प्रदेश में लगभग 50 हजार कर्मचारियों की इलेक्शन ड्यूटी लगी थी। इन्हें 18 दिसंबर से पहले अपना वोट डाक से भेजने की छूट है या फिर काउंटिंग से पहले तक वे अपना वोट कास्ट कर सकते हैं।
यानी एक महीने से ज्यादा वक्त तो वो वोट भेज सकते हैं। वैसे तो ज्यादातर कर्मचारी ड्यूटी के लिए रवाना होने से पहले या आते ही अपना वोट डाल देते हैं, मगर सभी ऐसा नहीं करते। और इन वोटों को प्रभावित करने की भरपूर कोशिशें हो रही हैं। प्रभाव जमाने के लिए राजनीतिक दल कभी मंथन बैठकें कर रहे हैं तो कभी मंत्रीपदों पर चर्चा जैसे शिगूफे छोड़कर यह माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि हम सत्ता में आ रहे हैं। कर्मचारियों को लुभाने वाले बयान भी दिए जा रहे हैं।
ऐसे में क्या यह मतदाताओं, जिन्हें पोस्टल बैलट से वोट भेजना है, को प्रभावित करने की कोशिश नहीं है? क्यों इतना लंबा समय दिया गया? और राजनेता और पार्टियां क्यों आचार संहिता का पालन नहीं कर रहीं? जिन सीटों पर चंद वोटों से फैसला होगा, वहां क्या ये पोस्टल बैलट नतीजों को प्रभावित नहीं करेंगे? सवाल अहम है, मगर इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा। जरूरी है कि तय सीमा के अंदर ही कर्मचारियों को पोस्टल बैलट भेजने को कहा जाए और तब तक राजनीतिक दलों पर नकेल कसी जाए।