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HorrorEncounter: रोहड़ू के गांव में झाड़ी से निकलकर बीड़ी मांगने वाला रहस्यमय बूढ़ा

प्रस्तावना: ‘इन हिमाचल’ पिछले दो सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से भूत-प्रेत के रोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए। हॉरर एनकाउंटर के सीज़न-3 की दूसरी कहानी संदीप मलिक की तरफ से, जिन्होॆने अपना अनुभव हमें भेजा है-

मैं वैसे तो हरियाणा का हूं और In Himachal पेज को मैंने तबसे लाइक किया है जब इसके यहां पोस्ट किया गया हरियाणवी लड़कियों का भजन वायरल हुआ था। बाकी खबरें तो मेरे काम की नहीं होती हैं मगर मैंने पेज को अनलाइक नहीं किया क्योंकि इसका कॉन्टेंट विविधता भरा होता है। खासकर ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ मुझे बेहद पसंद है। इसलिए, क्योंकि एक शादी में शिमला गया था। वहां पर हमारे साथ जो हुआ था, उसे याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बहुत समय से सोच रहा था कि मैं भी अपना अनुभव भेजूं। एक हफ्ते की मेहनत के बाद आज भेज रहा हूं।

3 साल पहले की बात है। मेरे चाचा की बद्दी में जॉब करते हैं और उनका बेटा मेरा घणा दोस्त है। अक्सर छुट्टियों में मैं बद्दी जाता और मैं अपने चाचा के बेटे मोंटी के साथ शिमला या कसौली घूमने चला जाया करता। एक बार मैं गया तो मोंटी अपने दोस्त के बड़े भाई की शादी में रोहड़ू जा रहा था। उसने कहा कि तू भी चल, मेरा खास दोस्त है और कोई दिक्कत नहीं है। पहले तो मैंने ना-नुकर की मगर बाद में जाने को तैयार हो गया।

तो मुझे ढंग से याद नहीं है कि रोहड़ू में कौन सा गांव या कौन सी जगह है वो, जहां शादी हुई। मगर इतना जरूर है कि शादी वाले घर तक जाने के लिए सड़क से काफी ऊपर तक पैदल चलना पड़ा था। रास्ते में जंगलों के बीच-बीच में ठूंठ नजर आते थे तो कुछ सेब के बागीचे भी नजर आए। शादी वाले घर के लिए नए कपड़े पहने लोगों का आना-जाना भी लगा था। थोड़े इंतज़ार में मोंटी का दोस्त रिसीव करने आ गया।

मेरे लिए गजब का अनुभव था। नवंबर का आखिरी महीना था और ठंड चरम पर थी। शाम को हम पहुंचे तो हवा कान में टूं बोलती हुई सुन्न कर दे रही थी। मैंने देखा कि लकड़ी के घर बने हुए हैं। नीचे लोगों ने पशु रखे हुए हैं और ऊपर पहली मंजिल वाले अहाते में घास-फूस और लकड़ियां वगैरह। मोंटी के दोस्त ने बताया कि सर्दियों में लोग लकड़ी और चारे का इंतज़ाम कर दिया करते हैं ताकि एस्ट्रीम मौसम में इन्हें ढूंढने में मशक्कत न हो। साथ ही नीचे पशु रहने से गर्माहट भी रहती है।

खैर, शादी वाले घर में पहुंचे। दारू का माहौल चालू था। बड़े-बुजुर्ग दारू लगाकर ठस थे और महिलाएं पारंपरिक गाने गा रही थीं। बच्चे ठंड को ठेंगा दिखाते हुए इधर-उधर दौड़ रहे थे। मोंटी के दोस्त ने हमारे लिए खास कमरे का इंतज़ाम किया था। पारंपरिक घर, छत पर तस्वीरें लगी हुईं, दीवारों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें तो किसी क्रोशिए से बनाई गई कलाकारियां। लग रहा था किसी ऐतिहासिक जगह पहुंच गया हूं।

मोंटी का दोस्त अपने भाई के साथ बिजी था। जाहिर है, घर में शादी है तो सारे काम उसे ही करने थे। वह हमें अटेंड नहीं कर पा रहा था। उसने हमें एक बोतल थमाई और कहा कि मैं किसी बंदे को भिजवाता हूं गिलास और पानी के साथ, तुम कमरे में ही लगाओ। इंतज़ाम हो गया, थोड़ी देर में दो बालक दो गिलास, जग और मटन ले आए। वाह, क्या लाजवाब मटन था। ऐसा न कभी खाया था और न आज तक कहीं और खाया। मजेदार।

मैं तो सिगरेट नहीं पीता, मगर मेरे कज़न मोंटी को पेग लगाने के बाद सिरगेट की तलब लगी। उसने कहा कि यहां पीना सही नहीं है क्योंकि धुआं बाहर जाएगा जहां बहुत लोग बैठे हैं। तो हमने सोचा कि क्यों न थोड़ा टहलते हुए घर से दूर जाते हैं। तो हम कमरे से निकले और एक तरफ चलने लगे। खेतों की मेढ़ ओस से गीली होने लगी थी। जब घर से हम करीब 200-300 मीटर दूरी पर पहुंच गए तो मोंटी ने सिगरेट फूंकी। दूर शादी वाले घर से ढोल-ढमाके की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

सांकेतिक तस्वीर

हम बोल रहे थे कि यार क्या मस्त जगह है। देखो आसमान में तारे भी साफ दिख रहे हैं और दूर कोने से बादल आ रहे हैं। ठंड में हड्डियां कीर्तन कर रही थीं। मैं सोच रहा था कि कब मोंटी सिगरेट खत्म करे और हम वापस कमरे की गर्माहट में लौटें। अभी हम सिगरेट पी ही रहे थे कि बगल की झाड़ियों में सरसराहट हुई। हमारे होश उड़ लगे। लगा कि कोई जंगली जानवर होगा, तेंदुआ या भालू। हम पूरा ध्यान लगाकर उस तरफ देखने लगे।

गौर से देखा कि एक बूढ़ा आदमी झाड़ी से निकला और अपने कपड़े झाड़ने लगा। वो कुछ बुदबुदा रहा था। उसने हमारी तरफ देखा।

सांकेतिक तस्वीर

हमसे करीब 10 मीटर दूर था मगर हल्की रोशनी में नजर आ रहा था। हम चुप उसे देख रहे थे और सोच रहे थे कि ये झाड़ियों में कर रहा क्या रहा था जिनके कुछ ही आगे नाला है। तो वो लंबा सा बुजुर्ग खड़ा हुआ। उसकी हाइट असामान्य थी। असामान्य इसलिए क्योंकि मेरी हाइट 6 फुट दो इंच है और मैं दावे से कह सकता हूं कि वो 7 फुट से ऊपर ही था।

उसने कुछ अजीब भाषा, शायद पहाड़ी में पूछा, जिसका मतलब हमें समझ नहीं आया। हमने पूछा कि क्या बोला आपने। तो आवाज आई, जिसमें अजीब तरह की खीझ, भरभराहट और कंपन था- बीड़ी पिलाओ। मोंटी ने कहा- दादा, एक ही सिरगेट थी, वो मैंने अभी पी ली। इतने में बूढ़ा चुप हो गया। 5 सेकंड तक खामोशी रही। फिल बोला- झूठ बोलते हो? जेब में क्या है। इस हिंदी में पहाड़ी टोन थी।

इतना कहना था कि मैं देखता हूं कि जो बूढ़ा आदमी हमसे 10 मीटर दूर था, उसने अपने हाथ उठाया। और वह हाथ लंबा होने लगा और हमारे पास आने लगा। मेरे तो होश उड़ गए और मैं चिल्लाता हुआ भाग खड़ा हुआ।

सांकेतिक तस्वीर

भागते हुए मैं क्या देख रहा हूं कि मोंटी भी भाग रहा है और वह तेजी से मेरे से आगे निकल गया। इतने में अहसास हुआ कि किसी ने मेरा पैर पकड़ लिया है। पूरी रफ्तार में भाग रहा था तो औंधे मुंह गिरा। जैसे ही उटने लगा, अपने सामने वही बूढ़ा आदमी खड़ा नजर आया। वह मेरे और शादी वाले घर के बीच रास्ते में खड़ा था। उसका चेहरा बिल्कुल नजर नहीं आ रहा था।

उसने कहा- बाकी सब ठीक, झूठ नी बोलना। इससे पहले कि मैं कहता कि मुझे नहीं पता सिगरेट थी या नहीं क्योंकि मैं तो पीता ही नहीं। मगर बूढ़े ने उंगली से इशारा किया और बोला- चल भाग यहां से। और इसके बाद कुछ अजीब सी गालियां सी थीं, जिनका मतलब समझ नहीं आया। मैं गिरता पड़ता भाग गया। जब तक मैं शादी वाले घर में पहुंचा, लोग मेरी तरफ को आ रहे थे। मोंटी ने पहले ही वहां पहुंचकर कहा था कि कुछ है उस तरफ भूत या कुछ। तो सब लोग मेरी तरफ आ रहे थे। शादी में आए सारे मेहमान मेरे आने का इंतजार कर रहे थे।

पूछा गया कि क्या हुआ। मैंने कहा कि ऐसा-ऐसा हुआ है। तो सब हंसने लगे और कुछ महिलाएं कहने लगीं कि ये आखिर आजकल के लड़के इतनी शराब क्यों पीते हैं। इतना हंगामा और मखौल हुआ कि बहुत शर्मिंदगी हुई। उससे भी ज्यादा शर्मिंदगी मोंटी के दोस्त को हुई, जिसके भाई की शादी थी। जिसने मोंटी को बुलाया था और उसके साथ मैं चला आया था। हमने जिसे भी समझाने की कोशिश की कि उसके हाथ लंबे हो रहे थे, किसी ने नहीं माना। मैंने कहा कि मेरे पैर पकड़े और बूढ़ा मेरे से आगे दौड़कर पहुंच गया और ऐसा-ऐसा बोला तो ये बात भी किसी ने नहीं मानी।

सांकेतिक तस्वीर

जैसे-तैसे रात काटी। अगले दिन बारात रवाना हुई और हम अपने घर के लिए रवाना हुए। उस दिन के बाद से हमने इस बात पर कभी चर्चा नहीं की। सोचा जरूर कि कहीं झाड़ी से निकला आदमी कोई बाराती तो नहीं था जो शौच आदि के लिए गया हो और नशे में धुत्त होकर सिगरेट मांग रहा हो। मगर उसके हाथ लंबे होने की मेरे पास कोई एक्सप्लेनेशन नहीं है। बेशक मैंने औऱ मोंटी ने शराब पी थी, मगर दोनों को एक जैसा भ्रम नहीं हो सकता। प्रार्थना करता हूं कि दोबारा कभी ऐसे हालात का सामना न करना पड़े।

सीजन 3 की दूसरी कहानी- कौन था बरोट-जोगिंदर नगर के बीच की पहाड़ी पर फंसे दोस्तों को बचाने वाला बुजुर्ग?

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