इन हिमाचल डेस्क।। ‘हेल’ यानी ओलों से राहत देने के लिए ऐंटी हेल गन या हेल कैनन की खरीद पर बागवानों को सब्सिडी देने का एलान किया गया है। दरअसल हिमाचल प्रदेश की ऐपल बेल्ट में अचानक होने वाली ओलावृष्टि फसल को तबाह कर देती है। सेब के कई बार फूल झड़ जाते हैं तो कई बार फल ही तबाह हो जाते हैं। ऐसे में विदेशों में अंगूरों के बागानों की तर्ज पर हिमाचल में भी किसानों ने देखादेखी में ऐंटी हेल कैनन इस्तेमाल करना शुरू किया।
कुछ बागवानों ने अपने स्तर पर मशीनें लगवाईं तो हिमाचल में बीजेपी की पिछली सरकार में जब नरेंद्र बरागटा बागवानी मंत्री थे, उन्होंने भी कुछ मशीनें लगवाईं। बाद में कई लोगों ने ऐसी मशीनें लगवाईं। कुछ समय तक तो बागवानों को लगा कि इनका बड़ा फायदा होता है, मगर पिछले साल ये ऐंटी हेल गनें फेल हो गईं और शिमला में बागीचों वालों के यहां भारी तबाही मची, खूब ओले गिरे और वो भी गोल्फ बॉल से भी बड़े आकार के।
क्या है हेल गन?
हेल गन एक ऐसी मशीन है, जिसके निर्माता दावा करते हैं कि ये ऐसी जोरदार शॉकवेव पैदा करीत है कि ऊपर वायुमंडल में ओले नहीं बन पाते हैं। ऊपर की तरफ खुलने वाली ये तोपें जोरदार खड़ाका करती हैं। जरा नीचे वीडियो देखें:
इसकी प्रक्रिया ये है कि घनघोर बादल छा जाएं और लगे कि बस बरसने वाले हैं, सिस्टम को ऑन कर दिया जाता है। एक से दस सेकंड के अंतराल पर ये इस तरह से खड़ाके करती रहती है।
क्या होता है इन खड़ाकों से?
मशीन के निचले हिस्से में एसिटाइलीन और ऑक्सिजन के मिश्रण को जलाया जाता है। इससे जो धमाका पैदा होता है, वह तोप, जो कि बाजे की तरह ऊपर की तरफ चौड़ी होती चली जाती है, से कई गुणा शक्तिशाली होकर आसमान की तरफ निकलता है। इससे एक झटका यानी ध्वनि की शॉक वेव पैदा होती है। यह झन्नाटा ध्वनि की गति से ऊपर जाता है और माना जाता है कि ऊपर बादलों में हलचल पैदा कर देता है। इन गनों को बनाने वाले दावे करते हैं कि इससे ओले बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है यानी ओले नहीं बनते हैं।
क्या है वैज्ञानिक आधार?
यह हैरानी की बात है कि अब तक वैज्ञानिक रूप से कहीं भी साबित नहीं हुआ है कि ये कैनन प्रभावशाली हैं और वाकई ये ओले नहीं बनने देती। विभिन्न शोध इसे पैसे और समय की बर्बादी करार दे चुके हैं। सिर्फ कंपनी के विज्ञापनों या फिर समाचारों में कुछ किसानों की बात के आधार पर इसकी कामयाबी की खबरें आती हैं। वैज्ञानिक रूप से इनकी उपयोगिता साबित नहीं हुई है।
बेकार मानते हैं साइंटिस्ट
साइंटिस्ट कहते हैं कि अगर इस तरह की तोप वाले धमाके से ही अगर ओले बनने की प्रक्रिया रुकती होती तो बादलों में जो गड़गड़ाहद पैदा होती है, वह तो इस तोप से कहीं ज्यादा शक्तिशाली होती है। फिर तो उस नैचरल गड़गड़ाहट से ही ओले बनने की प्रक्रिया रुक जानी चाहिए थी। फिर गरजने वाले बादलों के बावजूद ओले कैसे गिर जाते हैं?
कहां से आया कॉन्सेप्ट
यूरोप से ये कॉन्सेप्ट आया। सबसे पहले तूफान आने पर लोग चर्चों के घंटों को जोर से बजाया करते थे। फिर वे रॉकेट और तोपें दागने लगे। फिर थोड़ी और साउंड पैदा करने वाली तोपें लगाई जाने लगीं। पहले ये तोपें कैसी होती थीं, आप नीचे देख सकते हैं।
फिर भी लोकप्रिय क्यों हो रही हैं?
यह ध्यान देना होगा कि पूरी दुनिया में मौसम का पैटर्न बदल रहा है। आप देखते होंगे कि ओले हमेशा नहीं गिरते। आप पहाड़ों में रहते हों या मैदानी इलाकों में। ओले कभी-कभी ही गिरते हैं। तो होता यह है कि बागवान बादल छाते ही इन तोपों को दागना शुरू कर देते हैं। अगर ओले नहीं गिरते हैं तो वे खुश होते हैं कि कामयाब हो गई तोप। कम गिरते हैं तो सोचते हैं कि चलो, कुछ कम कर दिए तोप ने। और अगर बहुत ही गिर गए, तो सोचेंगे कि बेचारी तोप कब तक सहारा देगी, एक आध बार तो ऐसा होगा ही।
यही कारण है कि आप ऐंटी हेल गन लगाने वाले बागवान से बात करेंगे तो वह इसकी तारीफ ही करेगा। बहरहाल, जब अचानक करोड़ों में आमदानी हो रही हो, पैसा कहीं तो खर्च करना है। इसलिए कंपनियां अपने उत्पाद बेचने के लिए तरह-तरह के प्रचार करती हैं। और बागवान भी ज्यादा आय और नुकसान कम करने के चक्कर में सोचते हैं कि मशीनें लगवाने में क्या बुराई है। ऐसे में क्या ये गन्स ठीक वैसी ही व्यवस्था नहीं है जैसे बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए काला टीका लगा दिया जाता है?
मगर प्रश्न उठता है कि आखिर सरकार किस स्टडी और किस रिसर्च के आधार पर हेल गन में सब्सिडी दे रही है? उसने पास कौन से आंकड़े (बागवानों की राय या अनुभव और खबरों के इतर) हैं, जिनको स्टडी करके उसने पाया कि पहले यहां ओले ज्यादा गिरते थे, मगर हेल गन लगाने से कम गिरने लगे। और ये आंकड़े कितने सालों के हैं? और अगर ये गन वाकई कारगर है, तो सरकार के पास इस बात के क्या आंकड़े हैं कि हिमाचल में कम होती जा रही बर्फबारी या बारिश के लिए भी ये जिम्मेदार नहीं हैं?
सरकार जरूर दे सब्सिडी और बागवानों की सहायता करे, मगर पूरे रिसर्च के साथ ताकि कंपनियां अपना उत्पाद बेचने के चक्कर में बागवानों और सरकार को चूना न लगाए। क्योंकि इन मशीनों में एक-एक की कीमत लाखों-करोड़ों में है।
रिसर्च पढ़ें
- If cannons cannot fight hail, what else?
- ‘Hail cannon’ opponents decry its use
- Cannons both hailed and blasted
अगर आपने ये गन लगाई है या आपके आसपास लगी है, अनुभव के आधार पर कॉमेंट करके बताएं, ये कारगर हैं या नहीं।