शिमला में कट गए 400 हरे-भरे पेड़, मंत्री ने थपथपाई वन विभाग की पीठ

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शिमला।। पिछली सरकार के दौरान वन माफिया सक्रिय होने का आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी अब सत्ता में आ गई है। मगर सरकार बनने के एक महीने के अंदर ही खबर आई है कि शिमला की कोटी रेंज के शलोट गांव में 400 से ज्यादा हरे-भरे पेड़ काट दिए गए। अब 400 पेड़ पलक झपकते ही कटे तो होंगे नहीं, ऐसे में सवाल उठता है कि वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी क्या करते रहे जो उनकी नाक के नीचे 400 पेड़ साफ हो गए। जाहिर है, लापरवाही तो कहीं न कहीं है ही। मगर इस मामले में वन मंत्री गोबिंद सिंह ठाकुर वन विभाग के अफसरों की तारीफ कर गए और उन्हें सम्मानित करने की बात भी कह गए। वह भी तब, जब पुलिस ने मामले की जांच पूरी नहीं की है।

जिस समय पेड़ कटने की जानकारी मिलने पर मंत्री मौके पर पहुंचे, वन विभाग के कर्मचारी वहां मौजूद थे। उन्होंने मंत्री को बताया कि गार्ड से शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई की गई, तभी मामला सामने आया।  लेकिन सवाल उठता है कि महीनों से जारी अवैध कटान पर विभाग ने पहले कार्रवाई क्यों नहीं की। वन विभाग अब इस मामले के सामने आने को कामयाबी बता रहा है और मंत्री ने भी अफसरों की बात पर यकीन किया और उनकी पीठ थपथपाई है। हालांकि उन्होंने मीडिया से बात करते हुए इस घटनाक्रम को ‘साजिश’ भी बताया। उन्होंने विभाग को निर्देश दिए हैं जंगल में गश्त बढ़ाएं और तुरंत इस तरह के मामलों में कार्रवाई करें।

डीएसपी सिटी दिनेश शर्मा ने कहा कि रविवार सुबह से पुलिस टीम मौके पर मौजूद रही देर शाम तक कार्रवाई जारी रही। उन्होंने कहा है कि वारदात स्थल पर मिले स्लीपर और लकड़ियों की नाप नपाई की जा रही है। जिस व्यक्ति पर आरोप लगा है, उसका कहना है कि उसने अपनी जमीन पर पेड़ काटे। हालांकि यह भी जांच के बाद साफ हो जाएगा कि जमीन वन विभाग की है या निजी, मगर नियमों के अनुसार कोई अपनी जमीन से भी इस तरह से पेड़ नहीं काट सकता।

बहरहाल, वन मंत्री ने वन रक्षक और रेंज ऑफिसर को राज्यस्तरीय समारोह में सम्मानित करने के लिए विभाग को सरकार के सामने मामला पेश करने को कहा है। वहीं पिछले साल दिसंबर में रिटायर हो चुके बीट गार्ड पर कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। वन विभाग का कहना है कि अगर यह गार्ड पहले जानकारी देता तो ऐसी नौबत नहीं आती।

इस बीच चर्चा है कि ईमानदानरी से काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को सम्मानित जरूर करना चाहिए मगर तब, जब जांच पूरी हो चुकी हो और पता चल गया हो कि पहले खामोश बैठने में उनकी कोई भूमिका न हो और यह स्पष्ट हो जाए कि उन्होंने वाकई ऐसा काम किया है जो बाकी महकमे के लिए मिसाल है।