हमीरपुरबस हादसे से बिलासपुर के करीब डेढ़ दर्जन गांवों में मातम छाया है। हर तरफ दुख का माहौल है। नवरात्रों में मां दुर्गा के नाम की ज्योति की जगह चिता की आग कई परिवारों के दिलों और उनके अरमानों को जला रही है। एक तरफ कई लोग अभी भी झील में डुबकियां लगाकर बदहवासी में अपने खोए हुए परिजनों तलाश रहे हैं, मगर दूसरी तरफ हमीरपुर में बीजेपी लोकसभा चुनावों में मिली जीत का जश्न मना रही है।
अभी तक हादसे में 30 के करीब शव निकल पाए हैं, लेकिन हादसे में बचे लोग बता रहे हैं बस में अधिकांश महिलाएं और स्कूल के बच्चे थे। बच्चों का अभी तक गोविन्द सागर की लहरों में कोई सुराग नहीं लग पाया है। हादसे में शिकार लोग और उनके बच्चे मुख्यता उन पंचायतों से सबंधित थे, 60 साल पहले जिनकी जमीनें गोविन्द सागर में समा गई थीं। इतिहास तो गोविन्द सागर में डूब ही गया था पर मासूम बच्चों के रूप में उनका भविष्य भी गोविन्द सागर लील गई।
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इसी बीच राजनीति शुरू हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बयान ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। आंकड़ों के आधार पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। किसकी सरकार में कितने हादसे हुए, यह सफलता-असफलता का पैमाना बताया जा रहा है। लेकिन किसने कितना सबक सीखा और रोकथाम के लिए क्या नए प्रावधान किए, इसका किसी के पास जबाब नहीं है।
अपनी बच्ची का कोई पता न चल पाने पर बदहवास हुई एक महिला को संभालते लोग। |
हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के अन्तर्गत ही बिलासपुर जिला भी आता है। संसदीय क्षेत्र का यह हिस्सा मातम की चादर ओढ़े हुए है, लाशों को ढूंढने के लिए अभी भी कार्य चल रहा है, लोग भूखे-प्यासे टकटकी लगाए झील को देख रहे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी हमीरपुर में लोकसभा चुनाव में जीत का जश्न मना रही है। हमीरपुर के बरोहा में उन बूथों को सम्मानित किया जा रहा है, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लीड दिलवाई थी। यहां पर बिलासपुर के बूथ भी सम्मानित होंगे। पर क्या बिलासपुर के नेता और कार्यकर्ताओं में इतनी हिम्मत और गैरत है कि वे इस घड़ी में सम्मानित होने के लिए जाएंगे?
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सूत्रों से पता चला है कि बिलासपुर के कद्दावर नेता जगत प्रकश नड्डा हादसे की खबर सुनते ही दिल्ली से बिलासपुर के लिए कल ही निकल गए थे। वह हमीरपुर के जलसे में शामिल नहीं हो रहे हैं। यह हादसा उसके घर से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर हुआ है।
In Himachal का नजरिया:
बात यह नहीं है कि कौन जाएगा कौन नहीं, बात यह है कि जब बिलासपुर भी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है, इसके सांसद भी अनुराग ठाकुर हैं औरआज यहां मातम पसरा है तो क्या उसी सांसद की जीत का जश्न और कार्यकर्ता सम्मान दिवस इस माहौल में मनाना तर्क संगत है? क्या बिलासपुर की संवेदनाओं का फर्क बीजेपी नेतृत्व को नहीं पड़ता? कल तक यह भी पता चल जाएगा कि दुःख की इस घड़ी में भी हमीरपुर दरबार में हाजिरी लगाने और निष्ठा दिखाने के लिए बिलासपुर बीजेपी के कौन-कौन नेता जश्न में शामिल होने पहुंचे।
बीजेपी के शीर्ष नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर में आई बाढ़ पर अपना जन्मदिन नहीं मनाकर नैतिकता का उदाहरण दिया था। मगर हमीरपुर में पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी बिलासपुर के जख्म को अनदेखा करते हुए जीत का जश्न और सम्मान दिवस मना रही है। हालांकि माननीय सांसद को जिताने में बिलासपुर ने भी शत प्रतिशत योगदान दिया था। खैर…