राजेश वर्मा।। किसी कार्य को करने के लिए कोई इंसान भले ही योग्यता व क्षमता में कितना भी परिपूर्ण क्यों न हो लेकिन यदि उसमें उस कार्य को पूरा करने को लेकर संकल्प या प्रतिबद्धता नहीं है तो उसकी योग्यता व क्षमता का होना न होने के बराबर है। ऐसा ही एक वाक्य अभी-अभी प्रदेश में घटित हुआ जब एक व्यक्ति व उसकी टीम ने वह कर दिखाया जो शायद आज तक वह जनप्रतिनिधि भी नहीं कर पाए जिनको इस कार्य के लिए निर्वाचित किया गया था।
जिला कुल्लू के सैंज व बंजार में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में बसे तीन गांव शाकटी, मरोड़ और शुगाड़ आजादी के 71 वर्षों के बाद भी सड़क व बिजली की सुविधा से अभी तक वंचित हैं। एक तरफ हम कहते हैं हम विद्युत उत्पादक प्रदेश हैं हमारे संसाधन देश को भी रोशन करते हैं लेकिन हम तो खुद रोशनी से वंचित हैं फिर यह कैसा उजाला है?
नेशनल पार्क का नियम है कि उसमें कोई मानवीय रिहाइश नहीं हो सकती है यही कारण था कि नैशनल पार्क में बसे इन तीन गांवों को और इन तीनों गांव की जमीन को सेचुंरी क्षेत्र में बदल कर इन्हें सैंज वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का नाम भी दे दिया गया। इन तीनों गांव में सबसे नजदीक शुगाड़ गांव को सड़क सुविधा लगभग पांच घंटे पैदल चलकर निहारनी नामक स्थान से मिलती है। अंतिम गांव मरोड़ में पहुंचने के लिए लगभग 9 घंटे का पैदल रास्ता तय करना पड़ता है।
सैंज नदी जिसे स्थानीय लोग पार्वती नदी भी कहते हैं के किनारे बसे यह तीनों गांव प्रकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत है और इससे आगे के इलाके जिसमे परकची, रक्ति सर जैसे क्षेत्र हैं जो अप्रितम सौंदर्य के साथ साथ बहुमूल्य जड़ी बूटियों के लिए प्रसिद्ध हैं। जड़ी बूटियों को एकत्रित करना यंहा के लोगों का मुख्य व्यवसाय है।परंतु अवैज्ञानिक तरीके से निकाली जा रही इन जड़ी बूटियों से वह दिन भी दूर नही जब इन जोतों में केवल घास ही बचेगा। स्थानीय देवता श्री आदि ब्रह्म व ध्रुव ऋषि यहां के बाशिंदों के लिए सर्वोपरि हैं इन देवताओं का आदेश ही इनके लिए सबकुछ है व इनके लिए यही कानून भी है। स्थानीय नाग देवताओं के प्रति भी इनकी गहरी आस्था है। खुशी की बात है कि शराब इन गांवों में पूरी तरह निषेध है।
गाड़ा पारली पंचायत के एक वार्ड साकटी , मरोड़ व शुगाड की कुल जनसंख्या मात्र 200-250 के आसपास है और इसमें से भी 100-120 के लगभग मतदाता हैं। यही वजह है कि शायद सरकार का ध्यान यंहा पर मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर गया ही नही । प्रश्नचिह्न है हमारी सरकारों पर की क्या विकास का पैमाना संख्या बल होना चाहिए। माना यहां मतदाता कम संख्या में है तो भी क्या इन लोगों को आधारभूत सुविधाओं से महरूम रखा जाना चाहिए? लोकतांत्रिक न्याय की दृष्टि से इन सुविधाओं की पहुंच 1 व्यक्ति के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी 1 हजार व्यक्तियों के लिए है।
शायद इसी सोच ने एक ऐसे शख्स व उसके साथियों को पिछले कुछेक वर्षों से परेशान कर रखा था। जिला मंडी से संबंधित एक युवा चेहरा प्रवीण शर्मा व उनके दोस्तों जो पिछले दस वर्षों से एक गैर सरकारी संस्था “सेंटर फॉर सस्टैनेबल ” चला रहे हैं ने इस गांव के लिए वह कर दिखाया जो शायद यहां के लोगों ने आजदिन तक सपने में भी नहीं सोचा होगा। भले ही प्रवीण शर्मा भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी हो लेकिन इन्होनें अपने काम से साबित कर दिया की राजनीति करनी है तो जननीति के लिए करो मात्र राजनीति करने के लिए राजनीति न करो।
इन्होनें एनजीओ “सेंटर फार संस्टेनेबल डेवलपमेंट” के बैनर तले इस गांव में भी वो उजाला फैला दिया जो आजदिन तक व्यवस्था के लिए भी असंभव था। 2013 में जब इन को पता चला की यहाँ एक बल्ब की रौशनी तक नसीब नहीं तब प्रवीण शर्मा ने अपने एक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक मित्र भास्कर डीके जो खुद लोगों के सामजिक उत्थान और पर्यावरणीय संवेदनाओं से भी जुड़े हैं से मिलकर इन्होनें इस क्षेत्र के बाशिंदों के लिए बिजली पहुंचाने का प्रण लिया। शुरूआत में प्रवीण शर्मा, डीके भास्कर जितेंद्र वर्मा व प्रेम सिंह ठाकुर ने मिलकर यहां के गांव का दौरा किया तो इन्होंने महसूस किया की अंधियारे गांवों के लिए फौरी राहत के लिए कुछ न कुछ जरूर होना चाहिए। इन सबने मिलकर कुछे एक सोलर टार्च व सोलर बैटरी का प्रबंध तो कर दिया परन्तु उन्हें लगा कि यह कुछ हद तक जरूरतों को तो पूरा कर रहा है लेकिन गांव वालों की इस समस्या का स्थाई समाधान नही बन सकता।
इसके बाद इस टीम ने अपने उस सपने को साकार करने की तरफ काम करना शुरू कर दिया जिस सपने को इन गांववासियों ने भी नहीं देखा होगा।
इन गांवों को पर्याप्त विद्युत उपलब्ध करवाने के लिए इस टीम ने विभिन्न स्तरों व माध्यमों से बात की लेकिन सफलता शायद अभी कुछ और मेहनत चाहती थी। इसी कड़ी में भास्कर डीके के प्रयासों से “टिमकेन” नामक कंपनी इन गावों में सोलर बिजली उपलब्ध करवाने के लिए राजी हो गई। बस फिर क्या था एनजीओ की टीम ने गांव में विस्तृत सर्वे करना शुरू कर दिया घरों, मंदिरों, आंगनबाड़ी केंद्र व विद्यालय आदि की एक रिपोर्ट तैयार की। एनजीओ सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट के लिए खुशी की बात यह थी की इस प्रोजेक्ट का पूरा खर्च टिमकेन उठाने के लिए राजी हो गई थी।
अब था इस सपने को पूरी तरह साकार करने के लिए योजना को धरातल पर उतारना। इसके लिए इस टीम ने सौर ऊर्जा से संबंधित उपकरण बनाने वाली विश्व विख्यात कंपनी “गोल जीरो” के उपकरण लगाने का निर्णय लिया भारत में अभी तक यह कंपनी अपना कार्य तक नहीं करती बावजूद इसके इन्होनें इन उपकरणों को अमेरिका से ही आयात किया व इसके लिए टीम के सदस्यों भास्कर डीके व एक अन्य भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक रवि सिन्हा ने इस टीम की मदद की। रवि सिन्हा और भास्कर डी के ने अपनी कम्पनी चॉइस सोलर को पूरी तरह से इसी कार्य मे झोंक दिया। इसी मुहिम में आखिर 1 जून को सोलर जेनेरेटर व टार्च आदि सैंज में पहुंच गए। असली संघर्ष तो गांवों तक लगभग 20 टन वजनी इन उपकरणों को पहुंचाने को लेकर था लेकिन कहते हैं “जहां चाह वहां राह” और इस तरह खच्चरों व घोड़ों के माध्यम से यह सामान अपने गंतव्य पर आखिर पहुंच ही गया।
15 दिनों तक चले इस अभियान में आखिरकार विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र, मंदिरों व सभी घरों में एक एक पावर जनरेटर उपलब्ध करवाने में यह टीम सफल हुई । 400 वाट के इस सोलर जेनरेटर से लगभग 8 बल्ब, एलईडी टीवी व मोबाइल रिचार्ज करने संबधी सभी सुविधाये उपलब्ध है। इन सोलर पावर जनरेटर को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जा सकते हैं यह पावर जेनरेटर 220 वाट विद्युत का उत्पादन करने की क्षमता भी रखता है। इसके साथ ही सामाजिक आयोजनों जैसे शादी समारोह व धार्मिक आयोजनों के लिए 1250 वाट का एक बड़ा पावर जेनरेट भी इस टीम ने गांव में स्थापित किया।
चंद लोगों ने मिलकर एक ऐसे काम को अंजाम दे दिया जिसके बारे में आज दिन तक चुने हुए जनप्रतिनिधि व सरकारें भी सोच नहीं पाई जबकि करना कराना तो दूर की बात थी। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी खुद इस देश में सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं लेकिन यह समझ से परे है कि उनके सांसद व विधायक अपने संसदीय क्षेत्रों में इस और कुछ करना तो दूर सोच तक नहीं पाए लेकिन प्रवीण शर्मा ने अपने साथियों से मिलकर उन सैंकड़ों लोगों के अंधेरे सपनों में उजाला कर दिया जिनके लिए बल्ब की रौशनी शायद एक अलग ही दुनिया की चीज थी। इन गांवों के लोगों ने शायद ही कभी सोचा होगा की उनके बच्चे भी रात के अंधेरे को पाटकर पढ़कर पाएंगे व वह भी इस डिजिटल इंडिया का हिस्सा बन पाएंगे। हैरानी इस बात की भी है की प्रदेश में जल का दोहन कर विद्युत उत्पादन किया जा रहा है वह भी प्रादेशिक खपत तक ही सीमित नहीं बल्कि बाहरी राज्यों तक यह विद्युत आपूर्ति की जा रही है।
सैंज वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के यह गांव ऐसी जगह पार्वती नदी के किनारे स्थित हैं जहां और नहीं तो कम से कम इस गांव के बाशिंदों के लिए तो इस नदी के जल से विद्युत पैदा की ही जा सकती है लेकिन बिना सोच व इच्छा शक्ति के यह कदापि संभव नहीं। एक बात तो तय है यदि हम और हमारा युवा चाहे तो वह किसी भी असंभव दिखने वाले काम को संभव बना सकता है और इसके लिए जरूरी नहीं की आपको किसी राजनीतिक दल से जुड़ना पड़े या सक्रिय राजनीति का हिस्सा ही बनना पड़े।
– 15 दिनों तक चले इस अभियान में टीम के सभी सदस्य इन्ही गांवों में रहे और लगभग सभी घरों में अपने हाथों से सौर ऊर्जा के इन उपकरणों को लगाया।
– इसी के साथ गांव के 50 वर्ष से ऊपर के सभी बुजुर्गों, पुहालों, खच्चर वालों के लिए सोलर टोर्च भी उपलब्ध करवायी।
– इस अभियान के दौरान भास्कर डी के का साढ़े छह वर्षीय बेटा श्रीकर भास्कर भी अमेरिका से आया था और जितेंद्र वर्मा का 8 वर्षीय बेटा अरनव वर्मा भी लगातार साथ रहे। और अपने साथ अपने स्कूल के विद्यार्थियों द्वारा इकट्ठा किये गए समान जिसमे किताबे, पेंटिंग का सामान और अन्य खिलोने वंहा के स्थानीय बच्चों में वितरित किये। भगौलिक कठिनाईयों के बावजूद इन दोनों बच्चों की कर्तव्यनिष्ठा देखने लायक थी।
(लेखक हिमाचल प्रदेश जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं)