धारा 118: अगर आप कृषक नहीं हैं तो क्या आप हिमाचली नहीं हैं?

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इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश टेनंसी ऐंड लैंड रिफॉर्म्स ऐक्ट 1972 की धारा 118 के तहत ‘गैर-कृषकों को जमीन हस्तांतरित करने पर रोक’ है। यानी किसी भी तरीके से हिमाचल की जमीन ऐसे आदमी को नहीं दी जा सकती, जो  हिमाचल प्रदेश का किसान न हो। इस कारण हिमाचल में बहुत से ऐसे हिमाचली जमीन नहीं खरीद पा रहे, जो कृषक नहीं हैं। लगभग 45 से भी ज्यादा सालों से हिमाचल के गैर-कृषक हिमाचली अपने हिमाचल में अपने लिए आसानी से जमीन नहीं खरीद सकते, क्योंकि पेचीदगियां बहुत ज्यादा है। वहीं आपने देखा होगा कि सरकार 118 में छूट देकर किसी बाहरी को भी हिमाचल में जमीन खरीदने की इजाजत दे सकती है। इसी कारण बाहरी राज्यों की कई फिल्मी हस्तियों से लेकर राजनीतिक हस्तियां हिमाचल में बंगले बना चुकी हैं या बना रही है।

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क्या गैर-कृषक हिमाचली हिमाचली नहीं हैं?
अगर आपका व्यवसाय कृषि नहीं हैं और फिर भी आप बरसों से हिमाचल में रह रहे हैं, तब भी आप उतनी आसानी से हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते, जितनी आसानी से कृषक हिमाचली खरीद सकता है। पिछले दिनों आपने देखा होगा कि कांग्रेस सरकार के समय जब हाई कोर्ट ने अवैध कब्जे हटाने का आदेश दिया था, वीरभद्र सिंह सरकार ने तुरंत एक कमेटी का गठन किया और अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए प्रयास किए जाने लगे। नई सरकार का रुख भी अलग नहीं है। यानी हिमाचल में कृषक अगर अवैध कब्जा करें तो उन अवैध कब्जों को वैध करने के लिए नियम बनाने के लिए सरकारें जी-जान से जुट जाती हैं, लेकिन गैर-कृषक हिमाचलियों को जमीन खरीदने के नियम सरल बनाने की बात आए तो धारा 118 का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेती हैं।

हाई कोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी वीरभद्र सरकार
हिमाचल हाईकोर्ट ने सितंबर 2016 में आदेश दिया था कि कई परिवार हिमाचल में 1972 से भी काफी समय से पहले रहते आ रहे हैं और उनकी आगे की पीढिय़ां यहीं पली-बढ़ी हैं, लेकिन वे कृषक न होने के कारण यहां जमीन नहीं खरीद सकते। साथ ही हिमाचल प्रदेश टेनंसी ऐंड लैंड रिफॉर्म्स ऐक्ट की धारा 118 से संबंधित लंबे समय से मुकदमा चला आ रहा है। जिससे बड़ी संख्या में लोगों को गैर कृषक होने के कारण प्रदेश में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है, जबकि वे दशकों से प्रदेश में रह रहे हैं और इस नाते अब हिमाचली भी हैं। कोर्ट ने आदेश दिया था कि कानून में संशोधन किया जाए। इसपर वीरभद्र सरकार तुरंत सुप्रीम कोर्ट गई जहां पर हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया गया।

कई दोष हैं धारा 118 में
कृषकों के अवैध को भी वैध बनाने के लालायित सरकारें गैर-कृषकों से सौतेला व्यवहार करती है, उसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि शहरी इलाकों में गैर कृषकों की जमीन का पंजीकरण इसलिए नहीं किया जाता, क्योंकि नियम कहता है कि अगर आपको पुश्तैनी घर में हिस्सा बनता है और कहीं और जमीन नहीं खरीद सकते। यानी गैर-कृषक हिमाचली का पुश्तैनी घर अगर चार कमरों का है और इसके चार हिस्सेदार हो गए तो क्या वह एक कमरे में अपने बच्चों आदि के साथ गुजारा चला पाएगा?

गैर कृषकों के हिमाचल में जमीन खरीदने के नियम बहुत पेचीदा हैं। जो लोग जमीन खरीदना चाहते हैं, उन्हें डीसी ऑफिस से लेकर सचिवालय तक धक्के खाने पड़ते है। गैर-कृषक हिमाचली हिमाचल में कई तरह के व्यवसाय करते हैं, टैक्स देते हैं, वोट देते हैं, मगर धारा 118 के अजीब नियमों के कारण वे अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बने हुए हैं।

लेकिन कोई भी सरकार इन हिमाचलियों की सुध नहीं ले रही और अगर कोई सुधार की कोशिश करता है तो विरोध कर दिया जाता है। धारा 118 में नियमों का सरलीकरण समय की मांग है। इसमें इस तरह से बदलाव किए जा सकते हैं कि कम से कम हिमाचलियो गैर-कृषकों को ही लाभ पहुंचा दिया जाए। मगर राजनीति क्या न करवाए। गंभीरता से इस पर विचार करने के बजाय राजनीति की जाती है और अगर कोई दूसरी पार्टी की सरकार बदलाव की कोशिश करे तो विरोध करके ऐसे दिखाने की कोशिश की जाती है कि वह खुद हिमाचल के पैरोकार हैं। यहां सभी पार्टियां ऐसी ही हैं।

धारा 118 के अगले हिस्से में पढ़ें, हिमाचल हितैषी बनने का दिखावा करने वाली पार्टियों ने किस तरह से धारा 118 का दुरुपयोग किया है।

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