हिमाचल की लोकसभा सीटों पर बीजेपी इन्हें दे सकती है टिकट

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इन हिमाचल डेस्क।। लोकसभा चुनावों की सुगबुगाहट ने प्रदेश को गर्मी के आगमन से पहले गर्म कर दिया है। बीजेपी के कोर ग्रुप में भी अब आने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर मंथन चल पड़ा है। हिमाचल में भाजपा मजबूत स्थिति में है फिर भी कोई भी पार्टी किसी भी चुनाव में रिस्क नहीं लेना चाहती।

वैसे तो हिमाचल प्रदेश में अब भी लोगों का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की तरफ ज्यादा नजर आता है मगर यह बात सच है कि अपने सांसदों के काम से लोग संतुष्ट नहीं हैं। खासकर भारतीय जनता पार्टी के पक्के समर्थक भी अपने सांसदों की आलोचना करते नजर आ जाते हैं। उनका कहना है कि जिस तरह के दावे और वादे चुनावों से पहले और फिर सरकार बनने के पहले साल सांसदों ने किए थे, वे उनके आधे भी पूरे नहीं कर पाए हैं।

सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिए गए गांवों की हालत खस्ता है और ट्रेन लाने या नैरो गेज़ को ब्रॉड गेज़ करने के वादे भी अधूरे हैं। हाल के दिनों में राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी और अमित शाह की रणनीति यह रही है कि सरकार को रिपीट करवाना है तो उन लोगों के टिकट काटकर नए लोगों को टिकट दो, जो जनता की नजर में कमजोर साबित हुए हैं। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में भी यही नीति लागू हुई तो टिकट बदले जा सकते हैं।

खैर, फिलहाल आगे जानें, लोकसभा चुनावों को लेकर क्या हैं राजनीतिक चर्चा, अटकलें और कयास।

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1. कांगड़ा लोकसभा सीट
कांगड़ा सीट भाजपा हिमाचल में पिछली बार सबसे बड़े मार्जन से जीती थी। दिग्गज नेता शांता कुमार ने हालाँकि चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा 2008 में ही कर दी थी, लेकिन उन्होंने 2014 का चुनाव भी लड़ा। समर्थकों को उम्मीद थी कि वाजपेयी मंत्रिमंडल में शामिल रहे शांता कुमार मोदी कैबिनेट में भी होंगे, लेकिन 75 के फॉर्मूले से उनकी उम्मीदों को धक्का लगा।

ऐसे में अगला चुनाव वह शायद ही लड़ेंगे मगर फिर भी राजनीति में बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। स्पष्ट तौर पर शांता कुमार ने कुछ नहीं कहा है कि वह चुनाव लड़ेंगे या नहीं। शांता कुमार लोकसभा में हिमाचल के सबसे निष्क्रिय सांसद रहे हैं और उन्होंने सबसे कम सवाल पूछे हैं। ऐसे में अगर यह माना जाए कि उनका टिकट कट रहा है तो उनके बाद किसी को उम्मीदवार बनाते समय पार्टी यह देखेगी कि आखिर कौन नेता होगा जो कांगड़ा से लेकर चम्बा तक पार्टी काडर के साथ-साथ आम लोगों के बीच भी दमदार दावेदारी रखेगा। चर्चा है कि इस साल की शुरुआत में शांता और जयराम के बीच ब्रेकफस्ट को लेकर एकांत में इसी बात पर चर्चा  भी हुई थी।

शांता कुमार ने कभी बैजनाथ के पूर्व विधायक दूलो राम को अपने बाद लोकसभा चुनाव लड़वाने का आश्वासन दिया था। माना जा रहा है कि इसीलिए दूलो राम ने ने पिछले चुनाव में घरवापसी भी की थी। दूलो राम कांगड़ा से टिकट की दौड़ में इसलिए भी सबसे आगे बताए जा रहे हैं क्योंकि गद्दी समुदाय की अच्छी खासी आबादी कांगड़ा-चंबा में है और दूलो राम इसी समुदाय से आते हैं।

दूलो राम के बाद इस दौड़ में जातीय समीकरणों और महिला कोटे को देखते हुए शाहपुर की विधायक सरवीण चौधरी का नाम भी चर्चा में हैं। प्रदेश की चारों सीटों में से अगर एक महिला को टिकट देने का रूल आलाकमान बनाता है, जैसा कि विधानसभा में देखा गया था, तो वर्तमान सरकार में मंत्री सरवीण चौधरी जातिगत समीकरणों को देखते हुए भी मजबूत दावेदार बताई जा रहीं हैं।

इन दोनों नामों के अलावा प्रधानमंत्री मोदी के कैंडिडेट के रूप में प्रचारित किए जा चुके पूर्व राज्यसभा सांसद कृपाल परमार का नाम भी लिस्ट में है। कृपाल परमार बेशक विधानसभा चुनाव हार गए हों, लेकिन संसद के उनके अनुभव को देखते हुए उन पर भी विचार किया जा सकता है।

2. हमीरपुर लोकसभा सीट
कांगड़ा बाद तथाकथित निचले हिमाचल की बात करें तो हमीरपुर सीट भाजपा का अभेद्य दुर्ग रही है। मेजर जनरल विक्रम सिंह के बाद कांग्रेस का कोई भी कैंडिडेट यहां भाजपा के विजयरथ के आगे नहीं टिक पाया है। अनुराग ठाकुर 3 बार से हमीरपुर सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन खबरों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की हार के बाद कांग्रेस को इस सीट पर उम्मीदें दिख रही हैं और बीजेपी भी थोड़े डर में है।

चर्चा तो यह तक है कि लगातार जीतते रहने के क्रम को जारी रखने के लिए अनुराग ठाकुर एक चुनाव स्किप कर दें। कुछ अखबारों में तो अनुराग ठाकुर की जगह प्रेम कुमार धूमल के चुनाव लड़ने की ख़बरें भी छपी थीं। लेकिन उनकी उम्र के हिसाब से यह संभव नहीं दिखता। चर्चा ऐसी भी है कि अनुराग ठाकुर राज्य की राजनीति की तरफ रुख करना चाहते हैं और हिमाचल में संगठन को समय देना चाहते है। हालांकि अनुराग पूरी ताकत से चुनाव की तैयारी में जुटे हैं इसलिए कहा नहीं जा सकता कि ऐसी चर्चाओं में कितना दम है।

मगर कयास लगाए जा रहे हैं कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती का कार्यकाल खत्म होने के बाद अनुराग उनकी जगह ले सकते हैं और कुछ समय तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह सकते हैं। हालांकि प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर सत्ती का कार्यकाल खत्म हो चुका है मगर चर्चा है कि उन्हें लोकसभा चुनाव तक एक्सटेंशन मिला है। चर्चा ऐसी भी है कि हमीरपुर से सत्ती को हमीरपुर से चुनाव लड़वाया जा सकता है। वैसे भी इस सीट पर ऊना से भाजपा का कोई उम्मीदवार नहीं रहा है।

सतपाल सिंह सत्ती हाल में ही विधानसभा चुनाव हारे हैं लेकिन भाजपा में हर धड़े में उनकी स्वीकार्यता उनकी संभावित दावेदारी को मजबूत बनाती है। एक और बात जो दिल्ली से निकल कर आई है कि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह मानते है जिस तरह की मोदी लहर 2014 में थी, वो इस बार संभव नहीं है। इसलिए किसी भी सीट पर रिस्क न लेने के लिए अगर किसी मौजूदा सांसद का टिकट काटना ही पड़ा तो उनकी जगह राज्यसभा से आए मंत्रियों को लोकसभा चुनाव में उतारा जा सकता है।

यह ट्रायल उन्ही राज्यों में किए जाने की चर्चा है, जहां से दोबारा राज्यसभा सीट खाली होने पर अपनी ही पार्टी के कैंडिडेट से भरी जा सके। हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो अभी केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्री जेपी नड्डा दूसरे कार्यकाल के लिए राज्यसभा में जा रहे हैं। परन्तु अगर सर्वे की रिपोर्ट अनुराग ठाकुर के फेवर में नहीं आती है तो जेपी नड्डा को हमीरपुर लोकसभा से चुनाव लड़ना पड़ सकता है। जीतने की स्थिति में फिर खाली होने वाली राज्यसभा सीट से अनुराग ठाकुर को ऊपरी सदन में भेजने का प्लान भी पार्टी बना सकती है।

3. मंडी लोकसभा सीट
मध्य हिमाचल और प्रदेश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट मंडी में भाजपा सबसे मजबूत स्थिति में नज़र आती है। इस लोकसभा सीट के अंदर आने वाली विधानसभा सीटों की बात करें तो मात्र कुल्लू में विपक्ष का एक विधायक है। इस सीट से वर्तमान सांसद रामस्वरूप शर्मा को टिकट के लिए कहीं से भी कोई चुनौती मिलती नहीं दिख रही है।

यह बात सही है कि रामस्वरूप शर्मा ने जोगिंदर नगर-पठानकोट रेलवे लाइन के ब्रॉड गेज़ होने का कथित एलान होने की खुशी में रेलवे स्टेशन पर होली मिलन समारोह मनाया था मगर इस रेल ट्रैक पर एक मीटर काम नहीं हुआ, सर्वे भी हुए या नहीं, स्पष्ट नहीं है। इसी तरह उनके द्वारा किए गए तमाम वादे अभी जमीन पर नहीं उतर पाए हैं। कुछ अधूरे प्रॉजेक्ट हैं तो कुछ पेपर पर मंजूर हुए हैं। ऐसे में काम के तौर पर दिखाने के लिए उनके पास बहुत कम है और लोगों के में नाराजगी भी है।

मगर नागपुर से डायरेक्ट रिश्ते और प्रधानमंत्री मोदी के प्रभारी रहते संगठन महामंत्री का दायित्व देख चुके रामस्वरूप पुनः उम्मीदवार के रूप में रिपीट करेंगे, ऐसा तय माना जा रहा है। मगर सर्वे रिपोर्ट खराब आई तो पार्टी क्या फैसला लेगी, इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। हालाँकि जब पूर्व सांसद महेश्वर सिंह पार्टी में वापस आए थे तो चर्चा थी कि किसी भी तरह की एंटीइंकंबेंसी को रोकने के लिए महेश्वर सिंह को लोकसभा चुनाव लड़वाया जा सकता था। परन्तु विधानसभा चुनावों में हार के बाद यह चर्चा वहीँ ढेर होकर रह गई है।

वैसे अगर पार्टी को यहां से टिकट बदलना हो तो उसे ऐसा करने में कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि पिछली बार रामस्वरूप शर्मा को भी टिकट अचानक ही मिला था। अजय जम्वाल आदि समेत पार्टी के पास संगठन में कई लोग हैं जिन्हें वह उम्मीदवार बना सकती है। बीजेपी जानती है लोकसभा में वोट पार्टी के नाम पर ज्यादा पड़ते हैं और इस लिहाज से वह फिलहाल तो कांग्रेस पर भारी है ही।

4. शिमला लोकसभा सीट
ऊपरी हिमाचल की शिमला सीट भी दो बार से भाजपा के खाते में हैं परन्तु परन्तु इस बार चर्चा है की एंटीइंकंबेंसी को ध्यान में रखते हुए किसी नए चहरे को वर्तमान सांसद वीरेंद्र कश्यप की जगह मौक़ा दिया जाए। वीरेंदर कश्यप के ऊपर चुनावी समय में अवैध लेनदेन के मामले में आरोप तय हो गए हैं। वहीँ भाजपा की आंधी के बीच अपनी गृहसीट सोलन से अपने भाई को भी न जितवा पाने के कारण उनका जाना लगभग तय माना जा रहा है।

शिमला सीट रिजर्व है, बावजूद इसके विकल्पों की जितनी कमी कांग्रेस के पास है, भाजपा के पास उतने ही ज्यादा संभावित उम्मीदवार हैं। जिस नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है,वह है कसौली से विधायक और वर्तमान सरकार में मंत्री राजीव सहजल।

किस्मत के धनी सहजल चंद मतों के फासले से ही पिछ्ले चुनाव जीतते आए हैं। युवा सहजल आगामी चुनाव के लिए आलाकमान की पहली पसंद बताए जा रहे हैं। वहीँ सत्ता में बैठा भाजपा का धड़ा भी सहजल को प्रदेश राजनीति से बाहर देखना चाहता है ताकि खाली होने वाले मंत्रिपद पर अपने सिपहसलारों में से किसी एक को बिठा पाए।

सहजल के बाद सबसे मजबूत नाम जो उभरता है वो सिरमौर के पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप का। दिग्गज नेता गंगूराम मुसाफिर को दो बार पटखनी देते आये कश्यप डाउन टु अर्थ छवि के बताए जाते हैं। चूँकि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सोलन के अर्की से विधायक हैं तो जिले में चुनावों में इसका असर हो सकता है। इस तोड़ को पूरा करने के लिए भाजपा कम से कम सिरमौर में किलेबंदी मजबूत रखना चाहती है।

इन्हीं कारणों से सुरेश कश्यप आलाकमान की नजरों में पोटेंशियल केंडिडेट बताए जा रहे हैं। इसी सीट पर महिला कोटे की अगर बात आती है तो वीरभद्र सिंह की कर्मभूमि रहे रोहड़ू से विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद अच्छा प्रदर्शन करने वाली युवा नेत्री शशि बाला का नाम भी चर्चा में बताया जा रहा है।

खैर, ये सब चुनावी अटकलें हैं। एक दो महीनों में असल तस्वीर साफ हो जाएगी कि पार्टी का क्या फैसला रहता है।

हिमाचल की चारों लोकसभा सीटों पर कांग्रेस में इन नामों पर हो सकती है चर्चा