चाय बागान मालिकों के बाद अब डेरों को दी जमीन बेचने की छूट

1

शिमला।। इलेक्शन से कुछ ही रोज़ पहले हिमाचल प्रदेश की वर्तमान वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ऐसे फैसले ले रही है, जिसपर चारों तरफ सवाल उठाए जा रहे है। पहले सरकार ने धर्मशाला के चुनिंदा चाय बागान मालिकों को लैंड सीलिंग ऐक्ट में छूट देकर जमीन बेचने की इजाजत दी थी, अब धार्मिक संस्थाओं को जमीन बेचने की सशर्त इजाजत दे दी है। यानी हिमाचल प्रदेश कैबिनेट ने सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग अधिनियम में संधोशन करने का संशोधन किया है। इसके तहत धार्मिक संस्थाओं और डेरों को अपनी जमीन बेचने, गिरवी रखने या किसी को तोहफे में देने की छूट मिल जाएगी। शर्त यह रखी गई है जिसे जमीन मिले, वह धारा 118 के तहत बताई गई परिभाषा में आने वाला किसान हो। बता दें कि दो बार यह मामला पहले ही खारिज हो चुका था। अधिकारियों को भी इस बात को लेकर आपत्ति थी

पढ़ें: सरकार ने किसे फायदा पहुंचाने के लिए चाय बागान बेचने की इजाजत? 

सरकार के इस फैसले पर हिमाचल प्रदेश की मीडिया भी सवाल उठा रहा है। हिमाचल दस्तक अखबार ने दावा किया है कि सरकार ने जाते-जाते राधास्वामी सत्संग ब्यास के लिए लैंड सीलिंग ऐक्ट बदलने की मंजूरी दी है। अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि यह डेरा कांगड़ा में अपनी जमीन को फाइव स्टार रिजॉर्ट बनाने के लिए बेचना चाहता है और इसके लिए कई महीनों से कोशिश चल रही थी। साथ ही अब निरंकारियों ने भी मांग की थी कि उन्हें लैंड सीलिंग से बाहर किया जाए।

 

धूमल सरकार ने दिखाई थी राधा स्वामी सत्संग ब्यास पर कृपा
बता दें कि राधास्वामी सत्संग ब्यास के हिमाचल में कई जगहों पर डेरे हैं। इनके पास हिमाचल में 6000 बीघा लैंड होल्डिंग है। ये जमीन डेरे को श्रद्धालुओं से दान में मिली है। राज्य में जब पिछली बार बीजेपी की सरकार थी और प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे, तब लैंड सीलिंग एक्ट 1972 में सशर्त संशोधन किया था। इस संशोधन के जरिए राधास्वामी ब्यास को लैंड सीलिंग ऐक्ट से बाहर कर दिया था(स्रोत)। इस ऐक्ट के तहत सामान्य तौर पर किसी के भी पास  150 बीघा से अधिक जमीन नहीं हो सकती। यह छूट पहले सेब और चाय बागानों को ही मिली थी, मगर बाद में इस धार्मिक संस्थान को भी दे दी गई।

 

बाहरी लोगों को मिली जमीन को बेचने की इजाजत क्यों?
सवाल उठता है कि अगर नियम सबके लिए बराबर हैं तो कुछ लोगों को छूट क्यों दी जाती है? अगर किसी के पास 150 बीघा से ज्यादा जमीन नहीं हो सकती तो क्यों नियमों मे छूट देकर एक धार्मिक संस्था को भक्तों से जमीन दान में लेने की इजाजत दी गई और फिर बेचने पर रोक लगी थी तो अब क्यों उसे बेचने की छूट दी जा रही है? सरकार का इसमें क्या हित है? क्या वह ऐसी डीलों में दलाली खाना चाहती है? क्या इलेक्शन चाय बागानों और धार्मिक संस्थाओं की जमीन को बेचने की छूट देकर उनके सौदेबाजी से कमिशन खाकर लड़ने की तैयारी है? ये सवाल उठना इसलिए लाजिमी है, क्योंकि चुनाव को वक्त कम बचा है और इन फैसलों में किसी भी तरह का जनहित नहीं है।