इन हिमाचल डेस्क।। भोटा में एचआरटीसी बस हादसे की खबर कौन फैला रहा है? इस सवाल का जवाब है- वेबकूफ। जी हां, इंटरनेट यानी ‘वेब’ पर बेवकूफी करने वालों को ‘वेबकूफ’ कहना सही होगा। आए दिन कोई न कोई किसी की पोस्ट शेयर कर देता है जिसमें धर्मशाला-शिमला बस के भोटा में हादसे की चपेट में आने का दावा किया गया होता है। कहा गया होता है कि इसमें 22 लोगों की मौत हो गई। मगर यह खबर और तस्वीरें न सिर्फ झूठी हैं बल्कि कानूनी कार्रवाई को भी न्योता देती हैं।
दरअसल 21 मई को इसी साल शिमला से धर्मशाला जा रही एचआरटीसी की एक बस हादसे की चपेट में आ गई। तीखे मोड़ पर बस पलट गई। इसमें करीब 20 सवारियां बैठी थीं जिन्हें चोट आई है। तीन घायलों को भोटा में फर्स्ट एड देने के बाद हमीरपुर हॉस्पिटल रेफर किया गया था। इस हादसे में किसी की मौत नहीं हुई थी। विस्तृत खबर आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
मगर शरारती तत्वों ने इक खबर के साथ छेड़छाड़ की, किन्हीं अन्य हादसों की तस्वीरें जोड़ीं और मृतकों की संख्या 22 बताकर अपने पेज पर शेयर करना शुरू कर दिया। उदाहरण नीचे देखें, फिर आपको बताते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है।
इसके बाद विभिन्न पेज और लोग देखादेखी में इस खबर को शेयर करते रहे। उनके दिमाग में एक बार भी ख्याल नहीं आया कि एक बार जांच ही लें कि खबर असली है या नहीं। बस धड़ाधड़ शेयर करना है, चाहे झूठ हो। मई महीने से चला झूठ का यह सिलसिला आज अगस्त तक जारी है। आए दिन कोई न कोई गैर-जिम्मेदार पेज इस खबर को शेयर करता है और उसके फॉलोअर आगे शेयर करते रहते हैं। किसी दोस्त की टाइमलाइन पर कोई पोस्ट दिखई नहीं कि शेयर करने और टैग करने में लोग जुट जाते हैं मानो इसके बिना तो जानकारी पहुंचेगी ही नहीं।
क्यों ऐसी खबरें फैलाते हैं लोग?
बहुत से स्मार्ट लोगों को पता है कि सोशल मीडिया यूज़ कर रही जनता में ‘वेबकूफ़ों’ की संख्या ज्यादा है। उन्हें पता है कि लोगों को जानकारी के नाम पर डराने, उन्हें खुश करने वाली, उन्हें हैरान करने वाली या फिर इमोशनल रूप से अपील करने वाली कोई पोस्ट डालेंगे तो वे शेयर करेंगे। इसीलिए वे सनसनी फैलाते हैं। अपने मंसूबे में वे कामयाब रहते हैं। उनकी पोस्ट वायरल हो जाती है और उनके पेज के लाइक बढ़ने लगते हैं। फिर आराम से वे मजे लेते हैं। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि इससे क्या नुकसान हो रहा है। अफवाह फैलाने वाले लोग उन लोगों की वजह से कामयाब होते हैं जो लापरवाह होते हैं और अपनी समझ का इस्तेमाल नहीं करते।
जनता को क्या करना चाहिए?
सबसे पहले तो यह बात गांठ बांध लें कि सोशल मीडिया में झूठ की भरमार रहती है। सिर्फ स्थापित समाचार पत्रों, समाचार चैनलों, प्रतिष्ठित वेबसाइटों और विश्वसनीय न्यूज एजेंसियों की खबरों पर ही भरोसा करें। ऐसा नहीं कि ‘लहरिया खबरिया’ या ‘घातक खबर’ जैसे पेजों पर डाली पोस्ट को सच मान लिया जाए। साथ ही शक करने की आदत डालें। अगर लगे कि खबर नकली हो सकती है, तो तुरंत उस क्षेत्र की प्रतिष्ठित वेबसाइट जाकर क्रॉस चेस करें कि वाकई ऐसा हुआ है या नहीं।
ऑनलाइन पोर्टल पढ़ने की आदत डालें
जब आप घंटों फेसबुक पर वक्त बिता सकते हैं तो क्या 5 मिनट आपको न्यूज पोर्टलों पर जाकर खबर पढ़ने में नहीं लग सकते? अगर आप खुद को जानकारियों से अपडेट रखेंगे तो कोई आपको ‘वेबकूफ’ नहीं बना पाएगा। साथ ही अगर आपको लगता है कि आपके किसी दोस्त ने गलत जानकारी वॉट्सऐप या फेसबुक पर शेयर की है तो उसे टोकें और समझाएं। न कि आंख मूंदे उसे आगे बढ़ा दें।
इस तरह के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार से आप उन लोगों को परेशान करते हैं जिनसे फेक न्यूज जुड़ी होती है। 2 महीने पुरानी खबर को गलत ढंग से पढ़कर वह शख्स परेशान हो सकता है जिसका अपना उसी बस से जा रहा है, जिसकी आज आपने फेक न्यूज शेयर की। हम यह मान रहे हैं कि अगर आप फेसबुक यूज कर रहे हैं तो यह तो तय है कि आप साक्षर हैं यानी पढ़-लिख सकते हैं। इसलिए पढ़ने-लिखने की योग्यता का फायदा उठाएं, सच्ची खबरें पढ़ें, न कि झूठी खबरें फैलाएं। वरना ऐसा न हो कि अफवाह फैलाने के जुर्म में आप मुश्किल में फंस जाएं।