स्कूल में पढ़ाई जा रही है हिमाचल की इस बहादुर बेटी की कहानी

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एमबीएम न्यूज, घुमारवीं।। अपनों के प्रति प्यार हमें वह ताकत देता है जिसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। रक्षाबंधन पर हम लाए हैं एक ऐसी ही प्रेरक कहानी, जिसमें भाई-बहन के स्नेह के आगे मौत ने भी घुटने टेक दिए थे।

रक्षाबंधन पर आमतौर पर यह मान्यता है कि भाई वचन देता है अपनी बहन की रक्षा का। मगर बिलासपुर के घुमारवीं की एक बहन की बहादुरी की चर्चा आज भी होती है। यह बच्ची अपने भाई को बचाने के लिए तेंदुए से भिड़ गई थी।

शिल्पा और अंशुल
शिल्पा और अंशुल (Image: MBM News Network)

घुमारवीं उपमंडल की भराड़ी उप-तहसील के बडोन में शिल्पा शर्मा 29 अक्तूबर 2012 को भाई अंशुल के साथ स्कूल जा रही थी। इसी दौरान तेंदुए ने अंशुल पर हमला कर दिया। उस समय खुद शिल्पा की उम्र 11 साल की थी और भाई की उम्र  13 साल थी।

बहन के अंदर न जाने कहां से ताकत आई और वह तेंदुए से दो-दो हाथ करने को तैयार हो गई। उसने बिना घबराए पत्थरों व लकड़ियों के टुकड़े से तेंदुए पर हमला कर दिया। उसने भाई को उसके स्कूल बैग से अपनी तरफ खींच लिया।

कुछ ही पलों के अंदर का यह घटनाक्रम बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि शिल्पा हिम्मत हार जाती तो तेंदुआ आराम से अंशुल को लेकर चला जाता। मगर तेंदुआ शिल्पा के जवाबी हमले से सकपका गया। तब तक शोर सुनकर लोग वहां आ गए।

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नन्हे अंशुल को घायल करने के बाद भी आदमखोर तेंदुआ झाडिय़ों में ही घात लगाए बैठा रहा, जिसे बाद में लोगों ने भगाया। बहन ने अपनी जान दांव पर लगा कर भाई की जान बचा ली। पांच दिन तक अंशुल अस्पताल में दाखिल रहा। लेकिन बहादुर बेटी अपने भाई को आदमखोर तेंदुए के पंजों से छुड़वाने में कामयाबी हो चुकी थी।

राज्य सरकार के अनुमोदन पर बहादुर बेटी को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी सम्मानित किया था। शिल्पा आज भी उस दिन को याद करके सिहर उठती हैं। वह कहती हैं कि भाई को उस हालत में देख न जाने कहां से मेरे अंदर ताकत आ गई थी। इन दिनों वह बी फार्मा कर रही हैं। बोर्ड ने उनकी कहानी को तीसरी क्लास के सिलेबस में शामिल किया है।

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है)