एमबीएम न्यूज नेटवर्क, सोलन।। हर साल की तरह इस बार भी सोलन में आयोजित होने वाला राज्य स्तरीय शूलिनी मेला 23 जून से शुरू हो गया है। यह मेला ऐतिहासिक ठोडो मैदान में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। शुक्रवार को सोलन गांव में विराजमान मां शूलिनी देवी अपनी बड़ी बहन दुर्गा से मिलने के लिए गर्भगृह से बाहर निकली। मां शूलिनी पूरे शहर की परिक्रमा करने के उपरांत रात्रि के वक्त गंज बाजार स्थित मां दुर्गा के मंदिर में ठहरेंगी। पूरे तीन दिन तक मां दुर्गा के मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु शीश नवाने पहुंचेंगे। मेले के अंतिम देर सांय दोनों बहनें एक वर्ष के लिए फिर जुदा हो जाएंगी और मां शूलिनी अपने स्थान पर चली जाएंगी।
माना जाता है कि माता शूलिनी सात बहनों में से एक थी। अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं। माता शूलिनी देवी के नाम से ही सोलन शहर का नामकरण हुआ था। सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करती थी। इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी। बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की प्रारंभ में राजधानी जौणाजी, तदोपरांत कोटी और बाद में सोलन बनी। राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे।
रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है। जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसंन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे। लोगों का विश्वास है कि माता शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता है बल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। मेले की यह परंपरा आज भी कायम है। बदलते परिवेश के बावजूद भी यह मेला अपनी प्राचीन परंपरा को संजोए हुए है।
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इस मेले का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है। माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की कुल श्रेष्ठा देवी मानी जाती हैै। वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग के किनारे विद्यमान है। इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाएं मौजूद है। सोलन जिला के अस्तित्व में आने के पश्चात् इसका सांस्कृतिक महत्व बनाए रखने व इसे और आकर्षक बनाने के अलावा पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तरीय मेले का दर्जा प्रदान किया गया और इसे तीन दिवसीय उत्सव का स्वरुप प्रदान किया गया है। इसके फलस्वरूप अब इस मेले को परंपरागत ढ़ंग से मनाए जाने के साथ-साथ समाज के बदलते प्रारूप के अनुरूप इसे ग्रीष्मोत्सव के रूप में ढाला गया है।
यह मेला प्राचीन व आधुनिक संस्कृति का एक अनोखा संगम बनकर उभरा है। मेले का शुभारंभ हर वर्ष माता शूलिनी देवी की शोभा यात्रा से होता है, जिसमें माता की पालकी के अलावा विभिन्न धार्मिक झांकियां निकाली जाती है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग माता शूलिनी के दर्शन व मनौती अर्पित करके सुख समृद्धि के लिए आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। पारंपरिक लोक वाद्यों एवं लोक धुनों के बीच जब माता की पालकी शहर से गुजरती है तो मनमोहक दृष्य देखते ही बनता है जो हर व्यक्ति को भक्ति व आन्नंद सागर में डूबने को मजबूर करता है। शोभायात्रा के संपन्न होने के पश्चात् माता की पालकी शहर के मध्य स्थित माता के एक अन्य मंदिर में तीन दिन तक लोगों के दर्शनार्थ रखी जाती है। प्रदेश सरकार द्वारा मां शूलिनी मंदिर को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से माता शूलिनी मंदिर न्यास का गठन किया गया है।