शिमला।। हिमाचल में कोई भी आदमी 150 बीघा से अधिक जमीन नहीं रख सकता। मगर धार्मिक संस्थाओं को इस सीलिंग से इस शर्त के साथ बाहर रखा गया है कि ये इस जमीन को न तो बेचेंगी, न गिफ्ट करेंगी, न ही गिरवी रखेंगी। ऐसा करने पर जमीन सरकार को चली जाएगी।
राधा स्वामी सतसंग ब्यास नाम की धार्मिक संस्था के पास हिमाचल में बहुत जमीन है। इस संस्था ने सीएम वीरभद्र सिंह की सरकार के समय अक्टूबर 2017 को सरप्लस जमीन बेचने के लिए आवेदन किया था। कहना था- बहुत जमीन दान में मिली है, संभल नहीं रही।मगर मीडिया में हंगामे के बाद सरकार कोई फैसला नहीं ले पाई। फिर अगली सरकार बनी बीजेपी की। उससे भी मांग की गई कि जमीन बेचने की छूट दो।
जनवरी 2021 में जयराम सरकार की कैबिनेट मीटिंग में इस पर चर्चा हुई और प्रेजेंटेशन भी दी गई। लेकिन मीडिया में फिर बात उठी और सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया। राधास्वामी सतसंग ब्यास के हिमाचल में लाखों अनुयायी हैं। इसीलिए नेता चुनावों के दौरान वहां के चक्कर भी काटते हैं। बताया जाता है कि सरकारों पर ऐसी संस्थाओं को लेकर भारी दबाव रहता है कि कहीं उनके अनुयायी नाराज न हो जाएं और भविष्य में वोटों का नुक़सान न हो जाए।
बहरहाल, अब नया मामला उठा है। राधा स्वामी सतसंग ब्यास हमीरपुर के भोटा में अस्पताल की भूमि अपनी सिस्टर ऑर्गनाइजेशन के नाम करना चाह रहा है लेकिन धारा 118 में छूट के बिना लैंड ट्रांसफर नहीं की जा सकती है। सीएम सुक्खू कह रहे हैं कि पूर्व भाजपा सरकार ने इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया मगर वह कानून बदल देंगे।
सीएम ने कहा- जब इस अस्पताल के लिए उपकरणों की खरीद होती है तो उस पर GST देना पड़ता है, इसीलिए उसे जमीन अपनी सिस्टर संस्था को ट्रांसफ़र करनी है। सीएम ने कहा कि जनसेवा में लगीं संस्थाओं के कल्याण के लिए सरकार कानून में परिर्वतन करने से भी पीछे नहीं हटेगी।
सीएम का कहना है कि वह ऑर्डिनेंस के माध्यम से ऐसा करेंगे जिसके लिए अधिकारियों को कहा गया है, बाद में विधानसभा में भी इस विषय को ले जाएंगे। लेकिन प्रश्न यह उठ रहा है कि कहीं सरकार के इस कदम से 118 से छेड़छाड़ का कोई बैकडोर न खुल जाए।
समस्या इस बात में है कि सीएम के अनुसार, सरकार अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ऑर्डिनेंस यानी अध्यादेश के माध्यम से कानून में बदलाव कर सकती है।
हिमाचल प्रदेश लैंड सीलिंग ऐक्ट, जिसमें 118 जैसा संवेदनशील प्रावधान है, सरकार उसमें सीधे बदलाव करे तो चिंता पैदा होती है।
जब तक सरकार इस मामले को विधानसभा में लाएगी, तब तक अध्यादेश के आधार पर ज़मीन ट्रांसफ़र आदि की प्रक्रिया हो चुकी होगी। ऐसी स्थिति में, अगर सरकार के अध्यादेश में कोई लूप होल हुआ, जिससे राधा स्वामी सतसंग ब्यास या अन्य संस्थाओं ने जमीनें दूसरे इस्तेमाल के लिए ट्रांसफर कर दीं तो उससे कैसे निपटा जाएगा।
बेहतर होगा कि सरकार भोटा वाले मामले में ही बतौर अपवाद रियायत दे और शर्तें बनाए। ताकि बाकी ज़मीनों के साथ ट्रांसफर या अन्य बदलाव जैसे घटनाक्रम न हों। मगर कानून के जानकारों का कहना है कि इससे एक नई समस्या उभर सकती है। अगर सरकार एक ही संस्था को छूट देती है तो बाकी संस्थाएं कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर अपने लिए भी वही सुविधा मांग सकती है और कोर्ट भी उनके हक में फैसला दे सकता है क्योंकि कोई भी कानून एक व्यक्ति या एक संस्था के लिए नही हो सकता।
और अगर सरकार सभी संस्थाओं के लिए यह प्रावधान करती है तो फिर से सवाल उठना लाजिमी है। वैसे भी, अध्यादेशों पर सवाल इसलिए उठते हैं क्योंकि वे ऐसे कानून होते हैं, जिनपर सत्ता और विपक्ष की बहस नहीं हुई होती है, उसके लूपहोल्स आदि पर काम नहीं हो पाता। जानकारों का कहना है कि जब विधानसभा के शीत सत्र के लिए चंद हफ्ते बचे हैं, तब अध्यादेश लाने के बजाय, सीधे सत्र में विधेयक लाना चाहिए, ताकि सदन के सदस्य चर्चा करके सही ढंग से नियम बना सकें।