SpaceX Starlinks: जब स्याह आसमान में भविष्य की चमक देख हैरान हुए लोग

एक कतार में नजर आते हैं स्टारलिंक सैटलाइट्स

इन हिमाचल डेस्क।। कल रात हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसी खबर आने लगी कि आसमान में कुछ अलग रोशनी दिख रही है। कुछ लोगों ने इसे धूमकेतु बताया, कुछ ने उल्कापिंड तो कुछ ने यूएफओ या उड़न तश्तरी। बहुत से लोग ऐसे थे जो जानते थे कि ये हैं तो सैटलाइट यानी कृत्रिम उपग्रह मगर उन्हें भी जिज्ञासा थी कि आखिर ये पहली बार क्यों नजर आए और एक कतार में क्यों हैं।

इस संबंध में शुरुआती जानकारी मिलने पर इन हिमाचल ने दो पोस्ट डालकर लोगों की जिज्ञासा शांत करने की कोशिश की थी। पोस्ट का कॉन्टेंट बहुत से लोगों और पेज वगैरह ने शेयर और कॉपी-पेस्ट किया। इसके बाद भी हमें मिलने वाले संदेशों का सिलसिला जारी रहा। पाठकों की अपील थी कि हम इन उपग्रहों के बारे में और जानकारी उपलब्ध करवाएं। इसके लिए हमारे सहयोगियों ने प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिकाओं पर प्रकाशित लेखों का अध्ययन किया और कम शब्दों में यह लेख तैयार किया ताकि सभी समझ सकें कि आसमान में दिखी चमकदार लकीर आखिर थी क्या।

इलॉन मस्क की छाप
जो चमकदार सी लकीर आपने आसमान में देखी, उसे आप अंतरिक्ष में इलॉन मस्क की छाप मान सकते हैं। इलॉन मस्क एक इनोवेटर  और उद्यमी हैं। दक्षिण अफ्रीका में जन्मे मस्क अभी अमेरिका, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका, तीन देशों के नागरिक हैं। उनकी उम्र है 50 साल।नए-नए आइडिया पर काम करना उनका शौक है और काफी आइडियाज को धरातल पर उतारने में वो सफल भी हैं। उनकी गिनती दुनिया के सबसे अमीर लोगों में होती है। इस महीने उनकी संपत्ति का आकलन किया गया-  285 बिलियन डॉलर। उनकी कई सारी कंपनियां हैं, जिनमें प्रमुख हैं- स्पेसएक्स, टेस्ला, न्यूरोलिंक और ओपनएआई।

अभी हम बात करेंगे SpaceX की। स्पेसएक्स के कई प्रॉजेक्ट हैं। जैसे कि अंतरिक्ष में लंबी यात्राओं के लिए स्पेसशिप बनाना। मंगल ग्रह पर इंसानों के लिए बस्ती विकसित करना ताकि पृथ्वी पर कोई संकट आने पर इंसानों को विलुप्त होने से बचाया जा सके। इसके अलावा हार्डवेयर से लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग से जुड़े कई प्रॉजेक्ट्स पर स्पेसएक्स काम कर रही है। ऐसी ही एक परियोजना है- स्टारलिंक।

अंतरिक्ष से इंटरनेट
इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने सैटलाइट नेटवर्क तैयार किया है। इसे नाम दिया गया है स्टारलिंक। कंपनी की योजना है कि इस नेटवर्क के माध्यम से पूरी दुनिया में हाई स्पीड इंटरनेट दिया जा सके। खासकर ग्रामीण और सुदूर इलाकों में। इसके लिए बस एक डीटीएच की तरह डिश लगानी होगी जो सीधे उपग्रह से इंटरनेट स्ट्रीम करेगी।

बस, ऐसी डिश लगानी होगी। कहीं भी हाई स्पीड इंटरनेट ऐक्सेस किया जा सकेगा।

इस प्रॉजेक्ट के तहत स्पेसएक्स ने अब तक सैकड़ों उपग्रह लॉन्च किए हैं। कंपनी को ऐसे 12000 उपग्रह भेजने की इजाजत अमेरिका की ओर से मिली हुई है। कंपनी का दावा है कि इन स्टारलिंक सैटलाइट्स के नेटवर्क के माध्यम से फाइबर ऑप्टिक केबल से 47 प्रतिशत ज्यादा स्पीड वाला इंटरनेट स्ट्रीम किया जा सकता है।

इस योजना के तहत छोड़े गए उपग्रह, जिन्हें स्टारलिंक्स कहा जाता है, वे रात को लकीर की तरह नजर आ जाते हैं। ये इतनी ऊंचाई पर होते हैं कि सूर्य की रोशनी पड़ने के कारण रात भी चमकदार नजर आते हैं। एक कतार में दिखने वाले इन उपग्रहों को मेगाकॉन्सस्टलेशन (महा तारामंडल) कहा जाने लगा है। चूंकि भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में पहली बार ऐसा नजारा दिख रहा है, इसलिए लोग कौतूहल में इसे यूएफओ समझने लग गए हैं।

30,000 उपग्रह भेजने की योजना
स्टारलिंक के जरिये इंटरनेट देने की योजना इलॉन मस्क ने आज से छह साल पहले 2015 में पेश की थी। लोगों को भी सैटलाइट से इंटरनेट का आइडिया पसंद आया। प्रतिष्ठित पोर्टल अर्थस्काई के मुताबिक, अमेरिका के संघीय संचार आयोग (फेडरल कम्यूनिकेशंस कमिशन) ने स्पेस एक्स को 12000 उपग्रह स्थापित करने की इजाजत दी है। भविष्य में मस्क की योजना 30,000 तक उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने की है।

स्टारलिंक सैटलाइट ट्रेन नाम से भी पुकाने जाने लगे हैं ये उपग्रह

स्टारलिंक उपग्रह पृथ्वी की सतह से साढ़े पांच सौ किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित हैं। स्टारलिंक के एक उपग्रह का वजन 227 किलोग्राम है। ये पृथ्वी के काफी नजदीक हैं और आने वाले कुछ सालों में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे आ जाएंगे और वायुमंडर में प्रवेश करते ही जलकर नष्ट हो जाएंगे। इन्हें निचली कक्षा में इसलिए रखा गया है ताकि बेकार हो जाने के बाद वे कचरा बनकर स्पेस में न घूमते रहें।

लेकिन चिंता की बात भी है
खैर, सैटलाइट के जरिये इंटरनेट मिलने की बात जितनी अच्छी लगती है, उतना ही इस प्रॉजेक्ट का नुकसान भी है। जो खगोलविद या प्रकृतिप्रेमी रात के आसमान का अध्ययन करते हैं, उन्हें अब दिक्कत आ रही है। चूंकि स्टारलिंक उपग्रह काफी चमकीले नजर आते हैं, इसलिए रात के आसमान का प्राकृतिक नजारा ही बदल गया है। जैसा कि हिमाचल में कई जगह पर लोगों ने देखा।

अमेरिका में भी इस बात का विरोध हुआ। कई खगोलविदों ने इस प्रॉजेक्ट की आलोचना की। जवाब में स्पेसएक्स ने कहा कि उसने अपने नए उपग्रहों पर काले रंग की विशेष परत चढ़ाई  है जिससे उनकी चमक कम होगी। चूंकि ये इतनी ऊंचाई पर होते हैं कि जब धरती पर रात होती है तो भी इनपर सूर्य की रोशनी पड़ रही होती है। इस कारण से चमकदार नजर आते हैं। वैज्ञानिक समुदाय भी इस विषय में काम कर रहा है और सुझाव दे रहा है कि उपग्रहों को ऐसा कैसे बनाया जाए कि सूर्य की रोशनी उनपर पड़े तो वे चमकदार न दिखाई दें।

Are Elon Musk's 'megaconstellations' a blight on the night sky? | Satellites | The Guardian
चमकीले स्टारलिंक सैटलाइट्स के कारण के रात को आसमान की लॉन्ग एक्सपोजर फटॉग्रफी करने पर ऐसी लकीर दिखाई दे रही है।

हिमाचल कई कई दूर-दराज के इलाकों में नेट कनेक्टिविटी नहीं है। ब्रॉडबैंड छोड़िए, कई जगह फोन के सामान्य सिग्नल भी नहीं आते। ऐसे क्षेत्रों के लिए यह योजना वरदान हो सकती है लेकिन यह भविष्य की बात है। अभी भारत सरकार ने स्टारलिंक के ऑपरेशन को इजाजत नहीं दी है और लोगों को भी सलाह दी है कि वे कंपनी की सेवाओं के लिए पंजीकरण न करवाएं।

भविष्य में हो सकता है कि नियमों को लेकर सहमति बनने पर यहां भी सेवाएं शुरू हो जाएं मगर ये बहुत महंगी होंगी। यह भी संभव है कि स्पेसएक्स के बाद और भी कई सारी कंपनियां इसी कारोबार में उतरें। इससे प्रतियोगिता बढ़ेगी और सैटलाइट से मिलने वाला हाई स्पीड इंटरनेट सस्ता होगा। तब तक रात के आसमान में स्टारलिंक्स की इस कतार जिसे लोग स्टारलिंक्स सैटलाइट ट्रेन भी कहते हैं, उसे देखकर ही काम चलाना होगा।

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