कांग्रेस भूल गई कि सेना पर हमला करना हिमाचल की संस्कृति नहीं

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पं. इंद्र शर्मा।। कांग्रेस की स्थिति देखकर आज राष्ट्र कवि ‘दिनकर’ की पंक्तियाँ याद आ रही हैं- “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।”

बलिदानी वीर वैसे तो सम्पूर्ण देश के होते हैं लेकिन फिर भी राष्ट्र की रक्षा के लिए हिमाचली वीर जवानों को 4 परमवीर चक्र समेत लगभग 1096 वीरता पुरस्कार मिलने का गौरव प्राप्त है। ऐसे प्रदेश में कांग्रेस ने सबसे पहले तो उस नक्सलवादी विचारधारा के समर्थक को स्टार प्रचारक के रूप में भेजा जो न केवल जेएनयू में भारतीय सैनिकों की वीरगति पर जश्न मनाने वाले समूह का हिस्सा था अपितु उसने यह तक कहा था कि कश्मीर में भारतीय सेना बलात्कार करती है।

कांग्रेस की स्थिति आज ऐसी हो गई है कि उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि चुनाव लड़ें तो लड़ें, मगर किस आधार पर। ऐसी स्थिति में जब भाजपा ने कारगिल युद्ध के नायक ब्रिगेडियर ख़ुशाल ठाकुर को मंडी लोकसभा उपचुनाव के लिए प्रत्याशी के रूप में उतारा तो कांग्रेस की प्रत्याशी प्रतिभा सिंह ने शायद कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा दिल्ली से भेजे गए नक्सलवादी स्टार प्रचारक के प्रभाव में आकर कारगिल युद्ध को ही छोटा और साधारण बता दिया।

कांग्रेस प्रत्याशी के अनुसार “कारगिल का युद्ध कोई बड़ा युद्ध नहीं था।” कारगिल युद्ध में देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुए 527 वीर जवानों (जिनमें से 52 हिमाचल प्रदेश से थे) को कांग्रेस आज यह श्रद्धांजलि दे रही है। हिमाचल कांग्रेस तो कम से कम नक्सलवादियों के प्रभाव से निकलकर प्रदेश के गौरवमयी इतिहास और वीर परम्परा का दामन थाम कर रखती।

देश की मिट्टी और स्वभाव से कटे हुए आपके राष्ट्रीय नेतृत्व को तो नक्सलवादियों को स्टार प्रचारक बनाने की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन बहुत दुःखद है कि प्रदेश कांग्रेस भी प्रदेश के स्वभाव के विरुद्ध नक्सलवादियों के प्रभाव में आकर बलिदानी वीरों का आज अपमान कर रही है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)