ठाकुर वी. प्रताप || भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जो एक संविधान से चलता है। यह संविधान सभी को कुछ मौलिक अधिकार देता है, जिसे कोई भी संकीर्णता छीन नहीं सकती है, उनमें से एक है देश में कहीं योग्यता के आधार पर नौकरी करने का अधिकार। हिमाचल में भी अन्य राज्यों से कुछ लोगों को योग्यता के आधार पर नौकरी लग गई। इसका हमारी देश की सबसे पुरानी पार्टी ने विरोध किया। ऐसे ही देश बांटा जाता है। ऐसे ही हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी बाहरी की तरह आइडेंटीफ़ाई होते हैं।
अब मुद्दे पर आते हैं नौकरी कैसे लग गई?
नौकरियों में बढ़ते भ्रष्टाचार, सिफ़ारिश, भाई-भतीजावाद और पैसे के खेल को देखते हुए मोदी सरकार ने योजना बनाई कि कम से कम तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में इंटरव्यू ख़त्म कर दिया जाए तो ऊपर के जितने खेल हैं सभी खुद बंद हो जाएंगे। इसलिए इंटरव्यू खत्म कर दिया गया। अब जो काबिल है जो लिखित परीक्षा में ज़्यादा अंक पाएगा वही सिलेक्ट होगा। भारत केवल लोकतांत्रिक देश ही नहीं एक लाजवाब संघीय ढांचा भी है।
इसलिए अनारक्षित पदों पर किसी को भी अप्लाई करने से मना नहीं किया जा सकता है। इस बीच हिमाचल की ये विवादिद भर्ती आई। इंटरनेट से जुड़ी दुनिया में ऑनलाइन अप्लाई करना था। कहीं से भी लोगों ने अप्लाई कर दिया। एग्जाम दिया, कम्प्यूटर द्वारा निष्पक्ष आंकलन किया गया और मेरिट लिस्ट जारी कर दी।
हुआ वही
अब हवाएं ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला
जिस दीये में जान होगी बस वही रह जाएगा
इस भर्ती प्रक्रिया में चयनित होने वाले एक-एक आदमी से जाकर पूछा जा सकता है, भाई किसकी सिफ़ारिश लगाए गए हो? किस नेता के पैर पड़े हैं आपके मां-बाप या फिर आपने? कितने रुपए दिए हैं? सारे सवालों का जवाब सिफर आएगा।
अगला सवाल इसे कैसे रोका जाए?
इसे सीधे रोका ही नहीं जा सकता असंवैधानिक प्रक्रिया है। हां, कुछ रिजनेबल रिस्ट्रिक्शन जरूर लगाए जा सकते हैं। जैसे अन्य राज्यों में इस राज्य की स्थानीय भाषा आनी चाहिए। वह क्वॉलिफ़ाइंग होती है। चाहे आप बाकी सब्जेक्ट में टॉप कर जाएं, लेकिन उसमें पास नहीं हुए तो आप फेल।
कोस-कोस पर पानी तीन कोस पर बानी के सबसे सटीक उदाहरण हिमाचल के संदर्भ में यह संभव नहीं है। यहां की कोई ऐसी भाषा है ही नहीं जिसमें सारे हिमाचली कम्फ़्टर्बेल हों।
सवाल यह हैं कांग्रेस ने हिमाचली हित के लिए क्या किया?
सितंबर, 2015 में मोदी सरकार द्वारा तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में इंटरव्यू की व्यवस्था ख़त्म करने के बाद बाक़ी राज्यों पर भी इस तरह का नैतिक दबाव बना। तो हिमाचल प्रदेश में भी स्वर्गीय वीरभद्र सिंह सरकार में 17 अप्रैल 2017 को प्रदेश के लिए केंद्रीय व्यवस्था लागू कर दी।
यहां तक कि जो भर्तियां प्रक्रियागत थी उसके लिए अनुपूरक विज्ञप्ति लाकर इंटरव्यू ख़त्म कर दिया गया, लेकिन इस बारे में बिलकुल नहीं सोचा कि आख़िर हिमाचली हितों की रक्षा कैसे हो। भौगोलिक विविधता वाले हिमाचल में कैसे यह सुनिश्चित हो सके कि यहां के ही लोगों को रोज़गार मिले। इसके लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।
यह समस्या सामने आई सचिवालय के लिए हुई भर्ती में। मामले का संज्ञान लेते हुए तुरंत मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इसे रोकने के लिए आर एंड पी रूल्ज़ में संशोधन किया।
फिर कैसे हुआ बाहरी राज्यों के लोगों का चयन?
जयराम सरकार द्वारा आर एंड पी रूल्ज़ में संशोधन नवंबर 2019 में हुआ, लेकिन यह भर्ती प्रक्रिया 2018 में शुरू हो गई थी और उसी वर्ष ही लिखित परीक्षा भी हो गई। जिसके कारण यह बदलाव जेई की भर्ती पर लागू नहीं हुआ।
तो ऐसे इसे कैसे रोका जा सकता है?
सचिवालय में हुई भर्ती में यही मुद्दा था तो इसके लिए जयराम सरकार एक नियम बनाया तृतीय क्लास के नॉन हिमाचली के लिए हिमाचल से दसवीं और बारहवीं, चतुर्थ क्लास के लिए आठवीं और दसवीं की परीक्षा पास करना अनिवार्य पात्रता शर्त कर दी गई।
तो काबिल तो बनना पड़ेगा!
हिमाचल युवाओं को यह भी समझना होगा जयराम सरकार का यह नियम कोई स्थाई समाधान नहीं हैं। क्योंकि हिमाचल में हज़ारों मज़दूरों का परिवार भी रहता है, जिनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा यहीं से हो रही हैं। तो आगे वह लोग चुनौती बनेंगे ही। और सरकारें चाहकर भी ऐसा नियम नहीं ला सकती कि नॉन हिमाचली को नौकरी नहीं मिलेगी।
यह मामला जैसे ही कोर्ट में जाएगा तो जस्टिस सरकार को डांटकर ऐसे नियम रद्द कर देगी। तो नौकरी के लिए काबिल बनना पड़ेगा। अब नौकरियां राजघराना नहीं आपकी क़ाबिलियत तय करेंगी। या फिर हिमाचल को उसी राह पर लौटना होगा। जहां युवाओं का मुस्तकबिल इंटरव्यू तय करेंगे।
इसके उलट भी मैं आपको बता देता हूं हिमाचल घूम के देख लो 90 प्रतिशत ऐसे लोग मिल जाएंगे जो रिटन में टॉपर थे और सिलेक्शन हुआ इस नेता के चमचे का उस नेता के बेटे का। जो ना टॉप 10 में। था और ना टॉप 100 में तो आख़िर ऐसा क्या परफॉर्म कर दिया उसने इंटर्व्यू में जो आंधी की तरह आया और तूफ़ान की तरह सबको बर्बाद करके अपना सिलेक्शन करवाया और चला गया।
भर्तियां कैसे होती थी यह समझने के लिए सिर्फ़ यह देखना चाहिए कि राजा साहब के समय में चयनित हुए दो जजेज की सेवाएं 8 साल बाद हाई कोर्ट द्वारा रद्द कर दी गई और हाई कोर्ट की जज की टिप्पड़ियां इतनी तल्ख़ की कानों से लहू निकल आए।
चलते चलते एक नामी शे’र’ और बात ख़त्म
अब उजाला दे दे शायद ठोकरें ही
रात जंगल में शम्मआ जलाने से रही
( ये लेखक के निजी विचार हैं)