मंडी।। मंडी जिला के कोटरोपी में हुए भयावह हादसे के बाद आईआईटी मंडी ने भूस्खलन की चेतावनी देने वाले सेंसर लगाए थे, लेकिन उनके परिणाम बेहतर नहीं आए हैं। 13 अगस्त 2017 को हुए इस हादसे में 46 लोगों की जान चली गयी थी। ऐसा हादसा दोबारा न हो, इसके लिए यह तकनीक ईजाद की गई थी।
भूस्खलन से संवेदनशील क्षेत्रों में ऐसे अलार्मिंग सिस्टम लगाए जाने थे। जमीन पर किसी तरह की हलचल को भांपकर सेंसर ने अलर्ट भेजना था। लाल बत्तियां जलते हुए सायरन बजना था। साथ ही लैंडस्लाइड के खतरे वाले क्षेत्र के लोगों को मैसेज के माध्यम से इसकी सूचना मिलनी थी। लेकिन अफसोस यह तकनीक ज़मीनी स्तर पर काम करती नहीं दिख रही है।
अमर उजाला के अनुसार, कोटरोपी में लगाये गए अलार्मिंग सिस्टम से चार साल में करीब एक या दो बार ही सायरन बजा है, जबकि यहां समय-समय पर भूस्खलन होता रहा है। कोटरोपी घटनास्थल का क्षतिग्रस्त भाग अभी भी कच्चा है। पठानकोट की ओर सड़क के दूसरे छोर पर अलार्मिंग स्टेशन लगा है। बरसात को देखते हुए यहाँ होमगार्ड जवान की ड्यूटी भी लगाई गई है। लेकिन अलार्मिंग सिस्टम से सायरन बजे, इसकी गारंटी नहीं।
एक व्यक्ति ने जानकारी दी कि कुछ दिन पहले यहाँ साफ मौसम में ही सायरन बज गया था। जिला परिषद सदस्य रवि चंद ने बताया कि साफ मौसम में सायरन बजने की सूचना प्रशासन को दे दी गई थी।
इस बारे डीसी मंडी अरिंदम चौधरी ने कहा कि हाल ही में ज्वाइन किया है। सिस्टम को दोबारा रिव्यू किया जाएगा। सेंसर और इसके संचालन में क्या परेशानी है, इस पर मंथन होगा।