राजनीतिक भविष्य तलाशने हिमाचल लौट रहे हैं आनंद शर्मा?

आनंद शर्मा

इन हिमाचल डेस्क।। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा का अचानक हिमाचल में सक्रिय होना चर्चा का विषय बन गया है, खासकर कांग्रेस नेतृत्व में। शिमला में जन्मे आनंद शर्मा भले ही ज़्यादातर समय केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे लेकिन हिमाचल कांग्रेस में भी उनका लगातार दखल रहा है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि वह पहली बार पूरी तरह हिमाचल लौटने पर फोकस कर रहे हैं।

पिछले साल अगस्त में कांग्रेस के जिन 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर राहुल गांधी को निशाने पर लिया था, उनमें आनंद शर्मा भी शामिल थे। राहुल गांधी से असहमति रखने वाले इन सभी नेताओं को अब किसी न किसी तरह से कांग्रेस आलाकमान या यूं कहें कि गांधी परिवार की बेरुखी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन अब ये सभी नेता फिर सक्रिय होते दिख रहे हैं।

पिछले दिनों जब गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म हुआ तो उम्मीद थी कि लंबे अनुभव को देखते हुए आनंद शर्मा को नया नेता प्रतिपक्ष बनाया जाएगा। लेकिन उनकी जगह राहुल गांधी के खास मल्लिकार्जुन खड़के को यह ज़िम्मेदारी दे दी गई। माना जा रहा है कि आनंद शर्मा पार्टी की ओर से इस तरह नजरअंदाज़ किए जाने से आहत हैं। लंबे समय से कांग्रेस को कवर करने वालीं वरिष्ठ पत्रकार पल्लवी घोष सूत्रों के हवाले से लिखती हैं कि ‘कांग्रेस के बाग़ी नेताओं ने तो आनंद शर्मा को नाराजगी जताते हुए इस्तीफा देने की सलाह दे दी थी, मगर ऐसा हुआ नहीं।’

आनंद शर्मा

जानकारों का कहना है कि आनंद शर्मा जानते हैं कि पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल होना उनके लिए फायदे का सौदा नहीं होगा क्योंकि कभी भी उन्हें वहां पर वह रुतबा हासिल नहीं हो पाएगा, जो कांग्रेस के अंदर था। हाल ही में अन्य पार्टियों से बीजेपी में शामिल हुए नेता इसके उदाहरण हैं।

अब चूंकि उनके राज्यसभा कार्यकाल को खत्म होने में एक साल का ही समय बचा है, उन्हें लगता है कि पार्टी उनके साथ भी वही करेगी जो गुलाम नबी आजाद के साथ हुआ। यानी दोबारा राज्यसभा नहीं भेजेगी। इसलिए वह राजनीतिक विकल्प तलाश रहे हैं। ऐसे में उनकी कोशिश है कि हिमाचल आकर अपनी जन्मभूमि शिमला से चुनाव लड़ने की कोशिश करें। टिकट मिलना या न मिलना बाद की बात है, वह राजनीतिक जड़ें जमाने की कोशिश में अभी से जुट जाना चाहते हैं।

आनंद शर्मा ने इन दिनों शिमला में सामाजिक मेल-मिलाप बढ़ाना शुरू कर दिया है। इसी महीने की छह तारीख़ को आनंद शर्मा की मां प्रभारानी शर्मा का निधन हो गया था। वह पिछले कई सालों से शिमला में नहीं रहती थीं। आनंद शर्मा ने 28 फरवरी को शिमला के पीटरहॉफ में उनके लिए शोकसभा रखी है। सियासी जानकार निधन के इतने दिनों बाद किए जा रहे इस आयोजन के राजनीतिक मायने भी निकाल रहे हैं।

खास बात यह है कि 27 फरवरी को हिमाचल कांग्रेस चुनावी रणनीति को लेकर बैठक करेगी जिसमें कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता शिरकत करेंगे। यह आयोजन शिमला से कुछ ही दूरी पर कसौली में होगा। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि कई नेता कांग्रेस की बैठक के अगले दिन शिमला पहुंच सकते हैं। साथ ही, विधानसभा का बजट सत्र जारी होने के कारण सभी विधायक भी शिमला में मौजूद हैं। सूत्रों के मुताबिक़, सभी को बाकायदा फोन करके इस कार्यक्रम की सूचना भी दी गई है।

जम्मू में पक रही है खिचड़ी के मायने क्या?
इस बीच, आनंद शर्मा का जम्मू में गुलाम नबी आजाद और सात अन्य ‘बागी’ नेताओं के साथ दिखना भी चर्चा का विषय बन गया है। माना जा रहा है कि गांधी परिवार से मतभेदों के चलते ये नेता भविष्य की किसी योजना पर काम कर रहे हैं। दरअसल, राज्यसभा कार्यकाल खत्म होने के बाद सहयोगी दलों ने गुलाम नबी आजाद को अपने यहां से राज्यसभा भेजने की पेशकश की थी मगर कांग्रेस ने इसे खारिज कर दिया।

ऐसी खबरें हैं कि गुलाम नबी आजाद और उनके करीबी वरिष्ठ नेता पार्टी के इस रवैये से नाराज हैं। और इसी के तहत सात ‘बागी’ नेता जम्मू में आज़ाद से मिलने पहुंचे हैं। इनमें आनंद शर्मा, भूपेंद्र हुड्डा, मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा, राज बब्बर और अखिलेश प्रसाद सिंह शामिल हैं। लंबे समय से कांग्रेस पार्टी को कवर कर रहीं वरिष्ठ पत्रकार पल्लवी घोष ने इन नेताओं की तस्वीर ट्वीट की है और लिखा है- “कुछ तो है जम्मू में।”

जम्मू में मौजूद इन नेताओं ने कहा कि कांग्रेस पार्टी देश के पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों में पूरी शिद्दत से लड़ेगी और जीत हासिल करेगी। लेकिन जानकार पूछ रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में तो चुनाव हो नहीं रहा, फिर वहां ये नेता क्यों जुटे हैं? क्या यह पांच राज्यों में होने वाले चुनाव से पहले आलाकमान पर दबाव बनाने की रणनीति है या नई पार्टी बनाने की कोशिश? पल्लवी घोष ने ट्वीट किया है, “राहुल गांधी के एक करीबी नेता ने मुझे बताया कि आठ लोगों के इस ग्रुप ने जानबूझकर ऐसा समय चुना है क्योंकि राहुल चुनावों के लिए मेहनत कर रहे हैं और ये लोग बीजेपी को मौका दे रहे हैं। ये काम माफ़ी लायक नहीं है।”

चिट्ठी लिखने वाले वरिष्ठ नेता लगातार नजरअंदाज किए जाने पर शायद समझ गए हैं कि अब पार्टी में कोई उनकी सुनने वाला नहीं। ये बात हाल के घटनाक्रम से भी साफ हो गई है। जैसे कि तमिलनाडु में होने वाले चुनावों के लिए डीएमके और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे पर चर्चा होनी है। लेकिन गुलाम नबी आज़ाद की जगह इस चर्चा के लिए कांग्रेस ने रणदीप सुरजेवाला को भेज दिया जो कि राहुल गांधी के खास हैं। जबकि आजाद को डीएमके के साथ काम करने का लंबा अनुभव था। अब सुरजेवाला को तरजीह दिए जाने से हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा भी नाराज हो गए हैं। क्योंकि कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के साथ उनकी लंबी प्रतिद्वंद्विता रही है। आनंद शर्मा को भी कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस सब को देखते हुए आनंद शर्मा को अहसास है कि जब तक कांग्रेस में राहुल गांधी और उनकी चलेगी, उन नेताओं को मुश्किल आती रहेगी जिन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर आवाज उठाई थी। इसीलिए, अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर आलाकमान पर दबाव बनाने के साथ-साथ वह अपना राजनीतिक आधार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन आनंद शर्मा को चुनावों और जनता के सीधे संपर्क में आने का अनुभव कम है, इसलिए उनके लिए भविष्य की राह आसान नहीं रहेगी।

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