हिमाचल: कौन है वोटर लिस्ट से लोगों के नाम गायब करने वाला?

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आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनाव के दौरान यह देखने को मिल रहा है कि बड़ी संख्या में लोगों का नाम मतदाता सूचियों से गायब है। कई पंचायतों में यह संख्या दहाई के आंकड़े तक को पार कर गई है। कई लोगों को तो उस समय झटका लग गया जब उन्होंने चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली मगर बाद में पता चला कि उनका भी नाम मतदाता सूची में नहीं है। इस कारण वे न तो वोट दे पाएंगे और न ही चुनाव लड़ सकेंगे। अगर अपनी समस्या को लेकर कोर्ट जाएंगे तो फैसला शायद तब आएगा, जब पांच साल बीत गए हों।

सवाल उठता है कि ऐसे हालात पैदा क्यों होते हैं? यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हो रहा है। हर बार पंचायत चुनावों से पहले ऐसी खबरें आने लगती है कि फ्लां जगह पर बड़ी संख्या में लोगों के नाम मतदाता सूची से बाहर कर दिए हैं। कुछ समय पहले होने वाले लोकसभा और विधानसभा में वोट डालने वाले लोग यह बात नहीं समझ पाते कि आखिर चंद महीनों में ऐसा क्या हो गया कि उनका नाम ही लिस्ट से गायब हो गया।

इस बात को लेकर कांगड़ा के डीसी राकेश प्रजापति एक समाचार पत्र से कहते हैं, “पंचायतीराज संस्थाओं के चुनावों में हिस्सा लेने के लिए मतदाताओं का नाम राज्य चुनाव आयोग की ओर से जारी मतदाता सूचियों में होना जरूरी है। अगर मतदाता का नाम इन सूचियों में नहीं है तो वह वोट नहीं डाल पाएगा। राज्य और राष्ट्रीय चुनाव आयोग अलग-अलग तरीके से मतदाता सूचियां तैयार करता है।”

डीसी साहब की ओर से कही गई आखिरी लाइन पर गौर कीजिए। वह कहते हैं- राज्य और राष्ट्रीय चुनाव आयोग अलग-अलग तरीके से मतदाता सूचियां तैयार करता है। मगर आम जनता क्यों खामिजाया भुगते? राज्य और राष्ट्रीय चुनाव आयोग क्या मतदाताओं को अलग-अलग मतदाता पहचान पत्र जारी करते हैं? जब एक ही मतदाता पहचान पत्र के आधार पर वोट डालने की अनुमति दी जाती है तो फिर अलग-अलग लिस्ट बनाने की क्या जरूरत? और क्यों नहीं दोनों लिस्टों को एक जैसा बनाया जाता, क्यों आपस में डेटा शेयर नहीं किया जाता?

इस तरह के सवाल उठने पर अधिकारी कहते हैं- यह मतदाता का फर्ज है कि वह अपना नाम मतदाता सूची में चेक करे और अगर वह इसमें नही है तो आयोग की ओर से समय भी दिया जाता है ताकि वह अपना नाम शामिल करवा सके। अधिकारी कहते है कि अपना नाम चेक करना मतदाता की जिम्मेदारी है। लेकिन क्या अधिकारी यह जवाब देंगे कि वे अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाते हैं? वे अपडेट की गई मतदाता सूची को किस माध्यम से जनता तक पहुंचाते हैं ताकि लोग अपना नाम चेक कर सकें? क्या सभी के पास इंटरनेट ऐक्सेस या उसे इस्तेमाल करके अपना नाम ऑनलाइन चेक करने के स्किल हैं? और कोरोना काल में, जब लोगों को बाहर निकलने से बचने के लिए कहा गया है, तब वे कहां जाकर यह काम करते?

पंचायती राज विभाग क्यों नहीं अगले चुनाव करवाने से पहले पिछले जन प्रतिनिधियों की ड्यूटी लगाता है कि वे अपने इलाके में लोगों के नाम चेक करें।

जब वर्तमान में मौजूद मतदाता ही वोट डालने के अधिकार से वंचित रहते हैं तो चुनाव आयोग किस आधार पर 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेने वाले नए मतदाताओं को पंजीकरण के लिए प्रोत्साहित करने का अभियान चलाता है?

जनता को मतलब नहीं कि मतदाता सूची राज्य आयोग बनाए, राष्ट्रीय चुनाव आयोग बनाए या फिर कोई अंतरराष्ट्रीय चुनाव आयोग बनाए। उसे मतलब है कि अगर वह वोट देने का अधिकार हासिल कर चुका है, वह वोट देता रहा है, उसने अपना पता नहीं बदला है और वह मरा नहीं है तो उसे हर बार होने वाले चुनाव में मतदान का अवसर मिलना चाहिए।

मतदाता सूची को अपडेट करने का मतलब है- मृत व्यक्तियों का नाम हटाना, कहीं और अपना पंजीकरण करवाने वालों का नाम हटाना और नए मतदाताओं का नाम जोड़ना। सूची अपडेट करने का मतलब यह नहीं कि बिना किसी वजह से किसी का नाम हटा देना। यूं आपको कहीं किसी सरकारी कागज से किसी का नाम बदलवाना हो तो पच्चीस तरह के कागज मांगे जाते हैं। मगर चुनाव आयोग के अधिकारी आंख मूंदकर नाम हटा देते हैं।

किसी का नाम हटना मानवीय भूल नही हो सकती। खासकर कंप्यूटर के इस दौर में तो इसकी बिल्कुल गुंजाइश नहीं। ऐसे में, सरकारी अधिकारी फालतू के नियमों का हवाला देकर अपनी अक्षमता के कारण होने वाली असुविधा का ठीकरा जनता पर नहीं फोड़ सकते। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अगर किसी व्यक्ति का नाम अकारण मतादाता सूची से हटता है और वह इस कारण वोट नहीं दे पाता तो इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि उसने एक शख्स को उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित किया है।

(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं)

ये लेखक के निजी विचार हैं